तीनों राज्यों में सत्ता परिवर्तन के बाद अब पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में परिवर्तन का दौर चल रहा है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के संघ समर्पित कुलपतियों की विदाई हो चुकी है और राजस्थान में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने उस विश्वविद्यालय की कमान सँभाल ली है जिसे वसुंधरा सरकार ने बंद कर दिया था। ये परिवर्तन बहुत ज़रूरी थे। ख़ास तौर पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के लिए क्योंकि यहाँ पत्रकारिता के पठन-पाठन के अलावा सब कुछ हो रहा था। इन दोनों विश्वविद्यालयों को संघ की शाखाओं में तब्दील कर दिया गया था और उसकी विचारधारा वाले लोगों से भर दिया गया था। न योग्यता का खयाल रखा गया और न ही अनुभव का। एजेंडे पर पूरी तरह से हिंदुत्व था और छात्रों को उसकी बौद्धिक सेना बनाने का लक्ष्य सर्वोपरि। इसीलिए तमाम गतिविधियाँ जिनमें गौशाला खोलना तक शामिल हैं, संघ-निष्ठा से प्रेरित रहती थीं और ऐसे ही लोगों का समागम भी किया जाता था। शोध आदि के विषय भी शाखाओं में ही तय होते रहे होंगे शायद। यही नहीं, धन के दुरुपयोग की शिकायतें भी आती रही थीं। कायदे से जाँच होगी तो बहुत सारे रहस्यों और कुकर्मों से परदा उठेगा।
लेकिन शीर्ष पर हुआ परिवर्तन यदि पूरे विश्वविद्यालय में परिवर्तन की भूमिका न बना तो बेमानी हो जाएगा। निश्चय ही ये बहुत कठिन काम है, क्योंकि इसके लिए लोगों को बदलना होगा, संस्थान के ढंग-ढर्रे को बदलना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अकादमिक वातावरण बनाना होगा। मीडिया के विस्तार और उसके प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ दुनिया भर में उसको लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। अब वह मानव समाज में केंद्रीय भूमिका में आ गया है। इस संदर्भ को समझकर कदम उठाने होंगे। इसके लिए ऐसे लोगों को जोड़ना होगा, जो योग्य और अनुभवी हों। हालाँकि पुराना निज़ाम जब तक रहेगा, वह रोड़े अटकाता रहेगा। संघ को समर्पित और हिंदू राज कायम करने की मुहिम में तैनात लोग हर परिवर्तन का जी-जान से विरोध करेंगे, मगर इस चुनौती से निपटना होगा, अन्यथा स्थितियाँ सुधरने के बजाय बिगड़ती चली जाएंगी और ये अवसर हाथ से निकल जाएगा।
लेकिन शीर्ष पर हुआ परिवर्तन यदि पूरे विश्वविद्यालय में परिवर्तन की भूमिका न बना तो बेमानी हो जाएगा। निश्चय ही ये बहुत कठिन काम है, क्योंकि इसके लिए लोगों को बदलना होगा, संस्थान के ढंग-ढर्रे को बदलना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अकादमिक वातावरण बनाना होगा। मीडिया के विस्तार और उसके प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ दुनिया भर में उसको लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। अब वह मानव समाज में केंद्रीय भूमिका में आ गया है। इस संदर्भ को समझकर कदम उठाने होंगे। इसके लिए ऐसे लोगों को जोड़ना होगा, जो योग्य और अनुभवी हों। हालाँकि पुराना निज़ाम जब तक रहेगा, वह रोड़े अटकाता रहेगा। संघ को समर्पित और हिंदू राज कायम करने की मुहिम में तैनात लोग हर परिवर्तन का जी-जान से विरोध करेंगे, मगर इस चुनौती से निपटना होगा, अन्यथा स्थितियाँ सुधरने के बजाय बिगड़ती चली जाएंगी और ये अवसर हाथ से निकल जाएगा।
(मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार )