पुलिस विभाग में होने वाली आत्महत्याओं का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। ये कोई पहला मामला नहीं है जब किसी पुलिसवाले ने आत्महत्या की हो। उत्तर प्रदेश में दो पुलिस अधिकारियों ने पांच महीने के अंदर आत्महत्या कर ली। इसके पहले भी कई दरोगा, सिपाही और यहां तक की यूपी पुलिस के उच्च अधिकारी तक मौत को गले लगा चुके हैं।अपने अधिकारियों के आत्महत्या करने से यूपी पुलिस परेशान है।आत्महत्या करने वाले अधिकारियों में से एक एटीएस के थे, तो दूसरे कानपुर के एसपी सिटी के पद पर थे।
दरअसल,कानपुर के इस युवा आईपीएस अधिकारी ने विगत पांच सितम्बर को जहर खा लिया था।सुरेन्द्र दास की मौत के बाद उनका सुसाइड नोट मिला जिसमें यह साफ हो गया कि उनकी मौत की वजह दाम्पत्य जीवन का तनाव था, पर सवाल यह उठता है कि ऐसे कौन से कारण हैं जो पुलिस अधिकारियों को इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर कर देते हैं।पुलिसवालों को कहीं ना कहीं राजनेताओं और अधिकारियों के लक्ष्यों व मंसूबों को पूरा करने के दबाव में काम करना होता है। उन्हें दबाव में कभी कभी अपनी ड्यूटी से और अपने ईमान से समझौता भी करना पड़ता है। जिसके चक्कर में वे अत्यधिक तनाव से गुजर रहे होते हैं। कुछ पुलिसवाले इस तनाव को बर्दाश्त नहीं कर पाते और इस तरह के कदम उठा कर अपनी जान दे देते हैं।
लखनऊ के गोमतीनगर में 29 मई 2018 को भी उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ता (यूपी एटीएस) में अपर पुलिस अधीक्षक (ASP) के पद पर तैनात खुशमिजाज राजेश साहनी ने अज्ञात कारणों से अपने कार्यालय में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। फिलहाल अभी तक आत्महत्या की वजह का पता नहीं चल पाया है।इसकी जाँच सीबीआई को सौंप दी गई है। लेकिन उनके सहकर्मियों का कहना है कि अलग-अलग कारणों से वे ‘तनाव’ में थे
पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी. सिंह,ने यह स्वीकार किया कि पुलिस महकमा बेहद तनाव में है, अधिकारियों पर काम का ज्यादा दबाव होने के कारण,लगातार कई घंटों तक काम करने की वजह से उनके ‘व्यक्तिगत जीवन’ पर भी प्रभाव पड़ता है।जिससे वे अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ हो जाते हैं।
राज्य सरकार खुद को एक अलग सरकार के रूप में दिखाने के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करती है। जिसकी वजह से एक वरिष्ठ अधिकारी को पहले से कहीं ज्यादा कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।अधिकारियों पर सभी तरफ से राजनीतिक दबाव है, अधिकारियों का एक झटके में तबादला कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इन चीजों से निपटने के लिए पुलिसकर्मियों को गलतियों के खिलाफ खड़े होने और अपने निजी और पेशेवर जीवन को संतुलित करने की जरूरत है, जबकि राजनीतिक महकमे को यह समझने की जरूरत है कि बेहतर पुलिस व्यवस्था केवल पुलिस और उसके अधिकारियों के साथ बेहतर और सौहार्द्रपूर्ण संबंधों के माध्यम से हासिल की जा सकती है।