मीडिया पर आरोप,फैलाती है भ्रम,मीडिया के खिलाफ बुराड़ी के लोग
दिल्ली के बुराड़ी में इग्यारह लोगों की सामुहिक मौत पर आज भी सवाल वहीँ के वहीँ हैं जहाँ मौत के अगले पल उठा था। हत्या या आत्महत्या?साजिश का सूत्रधार कौन ?घटना का जिम्मेवार कौन?घटना कैसे हुयी? इन सारे सवालों पर अलग-अलग थ्योरी पर पुलिस और जाँच एजेंसियां काम कर रही हैं,परन्तु अभी भी निष्कर्ष फंदे पर ही लटका दिख रहा है। यानि कि सभी मौतों के कई कारण और खलनायक दिख रहे है। हलाकि पुलिस को इतनी जल्दबाजी भी नहीं है और अभी तक अंतिम खुलासे का दावा भी नहीं कर रही। हाँ ये अलग बात है कि तहकीकात कई मोड़ पर भी पहुँचकर मंजिल तक न पहुँच पायी है।
पर इस मामले पर एक पक्ष हर रोज एक नए खुलासा करता है और अंजाम तक पहुंचा देता है। ये अलग बात है कि खुद के ही अगले तहकीकात में एक और अलग कारण की ब्रेकिंग चलाकर सनसनी पैदा कर देता है। जी हाँ,यहाँ तथाकथित देश के मजबूत स्तम्भ मीडिया पुलिस से भी ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी निभाती दिखती है और टी आर पी के रेस में बढ़ने का दावा भी करती है। बुराड़ी की ब्रेकिंग खबर की रीच,वियुअरशिप और सनसनी क्रिएट करने की चर्चा रात में ए सी कमरे में बंद रंगीन पानी और टांगों के साथ करने में मशगूल होते इन लोगों ने बुराड़ी में अब जिन्दा बचे लोगों के लिए बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
अभी तक मीडिया ने तंत्र-मन्त्र और टोने-टोटके को अहम् कारण बताया है,हलाकि इसके अलावा कई और कारणों पर भी अपनी नजर दौड़ायी है। लेकिन मीडिया का जमावड़ा जिस तरह संतनगर-बुराड़ी की इस गली में लगा वो अब वहां के निवासियों पर भारी पड़ रहा है। किसी ने भटकती आत्मा की बात की तो किसी ने इसे भविष्य के किसी और बड़ी अनहोनी के आसार के रूप में दिखाया।’अब इस इलाके में भयानक डर का माहौल है,लोग गलियों में निकलते नहीं, दुकाने बंद हैं,कई घरों के दरवाजे बंद हैं,’आदि-आदि-आदि,ऐसा बार-बार कई चैनल और अख़बार बता रहे हैं। इस बात को लेकर यहाँ के निवासियों में काफी आक्रोश है।ये आक्रोश उस समय देखने को मिला जब शुक्रवार को स्थानीय लोगों ने वहां मीडिया के खिलाफ जमकर बवाल काटा। 6 जुलाई को घटना वाली गली में जो भी मीडियाकर्मी पहुंचे उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा। कईयों को गली में घुसने तक नहीं दिया गया और बैरंग वापस लौटा दिया। कुछ चैनल और पत्रकारों के साथ गालीगलौज भी किया गया। गली के हर प्रवेश पर बैरिकेड लगा दिया गया था। हलाकि घटना की जगह पुलिस भी तैनात है लेकिन इसके बावजूद स्थानीय लोगों के विरोध के आगे पुलिस भी कुछ नहीं कर पायी।
यहाँ ये सवाल उठता है कि आखिर मीडिया कर्मियों को क्यों अपमान झेलना पड़ा और क्यों विरोध का सामना करना पड़ा?जब यहाँ के लोगों की बातें सुनी गयी तो समझ में आया आखिर माजरा क्या है?जो वजह लोगों ने बताया,वो अपने लिहाज से जायज भी लगा। दरअसल पिछले कई दिनों से मीडिया में इस इलाके के बारे में तरह तरह के कयासों पर आधारित ख़बरें चलायी जा रही है,कुछ गिने चुने स्वनिर्मित (फैब्रिकेटेड) बयानों के हवाले से कई सारे डरावने,दिग्भ्रमित करनेवाली ख़बरें चल रही है,जिसका मानसिक तौर पर काफी ख़राब असर दिखा रहा है। घर के बच्चे,बूढ़े,महिलाओं में डर का माहौल बना दिया गया है। यहाँ के लोगों का आरोप है कि बार-बार मीडिया दिखा रहा है कि इलाके के लोग इतने भयभीत हैं कि कई लोग अपने घर,फ्लैट को बेचने को मजबूर हैं,कई घरों में लोग डर के मारे घरों में ही कैद हैं,कई लोग अपनी ड्यूटी पर नहीं जा रहे,बच्चे स्कूल नहीं जा रहे या डर की वजह से उनकी पढ़ाई नहीं चल रही। इस तरह की ख़बरें चलने की वजह से जो कुछ अभी तक यहाँ नहीं हो रहा था वो अब हो सकता है जो यहां के लोगों के लिए घातक है।जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है,हां ये अलग बात है कि घटना घटी है तो लोगों के जेहन में घटना के दृश्य से थोड़ी परेशानी जरूर हुयी लेकिन अब लोग सामान्य जीवन जीने लग गए हैं। इसलिए मीडिया को अपनी सकारात्मक भूमिका ही दिखानी चाहिए,किसी भी मामले को दिलचस्प बनाने की फ़िराक में समाज को कहाँ ले जाना चाहती है ये मीडिया?
वाकई यहाँ के निवासियों ने कई गंभीर सवाल उठाया है,मसलन पिछले कई दिनों से मीडिया इतनी दिलचस्पी से मिर्च-मसाला लिए यहीं क्यों बैठी है? वो इंतज़ार करे जाँच के परिणाम का। बेवजह मामले से ज्यादा यहाँ की गलियों में सनसनी पैदा करने पर क्यों तुली है? इस समाज और देश में कई जरूरी मामले हैं,उसमे अपनी रूचि दिखाए तो समाज और लोगों का भला होगा। अब देखना ये है कि मीडिया शुक्रवार की घटना से कुछ सीखती है या यथावत अपनी आदत में फिर उसी रास्ते पर चलती है ?