नई दिल्ली। पत्रकार गौरी लंकेश की बेंगलुर स्थित उनके घर में बेहरमी से हत्याकर दी गई। हमलावरों ने उनके घर े घुसकर उन्हें ताबड़तोड़ गोलियां मारी, जिसके बाद मौके पर ही उनकी मौत हो गी। इस तरह से पत्रकार की हुई हत्या को लेकर वरिष्ठ पत्रकारों ने इस पर नाराजगी जताई। वरिष्ठ पत्रकार अनुंरजन झा ने इस हत्या दुख जताया और पत्रकारों के जीवन को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि अभी तक सभी पत्रकारों की हत्या में राजनेता पर उँगली उठी है . शिवानी भटनागर से राजदेव तक . अब गौरी लंकेश भी. न तो पत्रकारों की संस्थाएँ कुछ कर पाईं न ही सरकारों की मंशा दिखती है. अगली बारी किसी की भी हो सकती है . बचा कर रखिए अपने आप को . जमाना 2019 के बाद भी होगा .
वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने गौरी लंकेश की हत्या पर दुख जताया और प्रेस क्लब में इस हत्या के खिलाफ बैठक में पत्रकारों के साथ-साथ राजेताओं और कन्हैया कुमार को बुलाए जाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने लिखा कि लोगों की राय है कि गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ प्रेस क्लब के जमावड़े में राजनेताओं के आने में क्या बुराई है. बेहतर होता कुछ और दलों के लोग आते. मेरी इससे असहति है, लिहाजा अपनी बात रखना जरुरी समझता हूं. अगर ऐसा ही है तो फिर तो हम खिचड़ी पकाएं, खाएं, चाव से बतिआएं कि कितनी ज़ायकेदार बनी है और फिर घर जाएं. काहे को इतना हांय-हांय करें, छाती पीटें! अदालत भी किसी को ज़मानत की सोचती है तो देखती है कि यह बाहर जाकर कहीं गवाह, सबूत से छेड़छाड़ तो नहीं कर देगा. संभव है वह बिल्कुल निर्दोष हो लेकिन उस वक्त संदेह के घेरे में रहता है. विश्वनीयता और प्राकृतिक न्याय की खातिर ऐसी बातों पर अदालतें विचार करती हैं. अभी गौरी लंकेश की हत्या में पॉलिटिकल एंगल का अंदेशा है. इसलिए राजनीतिक दल और उनसे जुड़े लोगों को पत्रकारों के मंच पर जगह देना सरासर गलत है. उनकी मंशा किसी को गुनहगार ठहराने और किसी को बचा ले जाने से ज्यादा की हो ही नहीं सकती. पेशेवर लोगों की प्रतिबद्दता सच के साथ होगी. वे एक संगीन सवाल लेकर खड़े हैं. इंसाफ चाहते हैं, लोकतंत्र में विरोध का सम्मान चाहते हैं- उन्हें होना चाहिए. होने पर सवाल भी नहीं उठना चाहिए. लेकिन नेता आखिर क्या करने आएगा, जिसकी नीति और नीयत पहले से पता है? पत्रकारों के मंच पर नेता बवासीर है. ना दिखा सकते ना बर्दाश्त कर सकते.
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने लिखा कि गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में प्रेस क्लब में सैकड़ों पत्रकारों का जुटना इस बात का संकेत है कि चिंता और बेचैनी किस हद तक है …एक महिला पत्रकार को गोलियों से छलनी किया जाना एक कायराना और बर्बर मानसिकता के विस्तार का सबूत है …क्यों मारा ? किसने मारा ? इसकी जल्द से जल्द जाँच होनी चाहिए और क़ातिलों को उनके अंजाम तक पहुँचाया जाना चाहिए …कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर किसी को भरोसा नहीं है सो सीबीआई को जाँच की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए …
ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोशिएशन के महासचिव के तौर पर मैंने भी इस शोक सभा /विरोध सभा में हिस्सा लिया और अपनी बात रखी …
मेरा निजी तौर पर मानना है कि पत्रकारों की तरफ़ से पत्रकारों के लिए आयोजित ऐसे कार्यक्रमों से नेताओं को दूर रखना चाहिए ..
नेता ऐसे आयोजनों को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल न कर पाएँ , इसकी कोशिश होनी चाहिए ..लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाया …