इंडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत के कार्यक्रम अर्धसत्य की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तारीफ की है। पीएम मोदी ने उन्हें उनके इस कार्यक्रम के लिए बधाई दिया और उनके उद्देश्य की सराहना करते हुए उन्हें स्वच्छता अभियान से जुड़ने के लिए आग्रह किया। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक चिट्ठी के जरिए उन्हें स्वच्छता की सेवा मिशन से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया गया है। राणा यशवंत ने इस विषय पर अपने फेसबक पेज पर पोस्ट लिखकर प्रधानमंत्री जी का शुक्रिया किय़ा। पढ़िए राणा यशवंत का पोस्ट…
एडिटोरियल मीटिंग निपटाने और कुछ दूसरी जरुरी चीज़ों से फारिग होने के बाद किसी मेल का जवाब दे रहा था. तभी दफ्तरी कमरे में आया और एक बड़ा सा लिफाफा टेबल पर रख गया. ऊपर अशोक स्तंभ का प्रतीक था और नीचे प्रधानमंत्री कार्यालय लिखा हुआ था. पीछे गोंद वाली दो बड़ी बड़ी सील लगी हुई थी. मैंने उठाया और उसके मुंह को फाड़कर खोला. लगा तो यही था कि किसी सरकारी योजना/अभियान के बारे में सूचना-पत्र होगा. खोला तो दंग रह गया. हार्डबाउंड जिल्द ( होल्डर कहिए) के भीतर लंबी-सी चिट्ठी पड़ी थी. सबसे ऊपर मेरा नाम और सबसे नीचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हस्ताक्षर. शुरुआती दो तीन पैरा पढने पर यही लगा कि “स्वच्छ भारत अभियान”के ताजा संस्करण “स्वच्छता ही सेवा” के बारे में सरकार के प्रयासों/संकल्पों की जानकारी है. लेकिन नीचे जाने पर पता चला कि यह पत्र आपके लिए निजी तौर पर लिखा गया है और आपसे कुछ अपेक्षा भी की गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिट्ठी कहती है कि – “ इंडिया न्यूज के कार्यक्रम अर्धसत्य के माध्यम से आपने दर्शकों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई है. संपादक होने के साथ-साथ आप कवि-हृदय भी हैं, इसलिए देश और समाज को देखने-समझने का आपका नजरिया बारीक है. हम चाहते हैं कि आपकी इस समझ का स्वच्छता अभियान को सफल बनाने में उपयोग किया जाए. मैं व्यक्तिगत रुप से आपको “स्वच्छता ही सेवा” अभियान से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं.” इस पत्र में सफाई के लिए गांधी जी के आग्रह और भारत को स्वच्छ बनाने के उनके सपनों के साथ साथ प्रधानमंत्री के निजी विचार और संकल्प की भी चर्चा है.
मेरे बारे में मेरी राय यही रही है कि मैं इस देश का एक आम आदमी हूं. पेशे से पत्रकार हूं, इसलिए काम में मेरी साधारण बुद्दि और सामान्य विवेक, देश समाज के हक में जो अच्छा मानते हैं, उसके आधार पर चीजों को लोगों के सामने रखने का काम करता हूं. मैं कहीं से भी कुछ खास नहीं हूं. प्रधानमंत्री जितना कुछ लिख गए, यह उनका बड़प्पन है, नेकदिली है. वे देश को साफ-सुथरा रखने के अपने एक बड़े मिशन के लायक हमें मान रहे हैं, पढकर अच्छा लगा. यह काम ना सिर्फ नेक है बल्कि देश की तस्वीर-तकदीर बदलने के लिये जरुरी भी है. यह भी सही है कि इसमें किसी को घर से हींग फिटकिरी नहीं देना बल्कि आदत और सोच सुधार लें तो दो तिहाई काम हो जाएगा . इसलिए, इंडिया न्यूज नेटवर्क लोगों को जागरुक करने के जितने भी संभव रास्ते हैं. उनपर चलकर महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने की कोशिश करेगा.
मैं खुद को ठीक से समझता हूं और यकीन से कहता हूं कि मुझसे सही को गलत और गलत को सही कहना नहीं हो सकता. ना किया और ना कर सकता हूं. जीवन में जीने की शर्ते होनी चाहिए और काम करने की भी. पत्रकार के नाते सत्ता में सवाल ढूंढना और व्यवस्था में खोट पकड़ना हमारा काम है. जो सत्ता-व्यवस्था पत्रकार की तारीफ करने लगे या पत्रकार, सत्ता व्यवस्था के गीत गाने लगे या फिर किसी दल के पाले में खड़ा होकर विरोधी दल की कुंडली बांचने लगे तो समझिए उसकी जाति बदल गई. इसलिए आदमी को खुद को बार बार ठोकते-बजाते रहना चाहिए ताकि सनद रहे कि वो जो कहता है, वह है ना? मैंने हाल में मोदी सरकार के खिलाफ कई सवाल उठाए- गोकशी से लेकर किसानों के साथ धोखे तक. ठीक वैसे ही जैसे राज्यों में बैठी सरकारों के खिलाफ उठाता हूं. जो आदमी दिनभर देह पीटकर अपना घर चलाता है और बेटे-बेटियों की पढाई-लिखाई के लिेए समय से पहले बाल पका लेता है उस आदमी के लिये खड़ा होना वैसे भी बनता है. पत्रकार को तो खड़ा होना ही चाहिए. ऐसे में संभव है प्रधानमंत्री और उनकी सरकार फिर से सवालों के घेरे में आए. यह जानते हुए भी अगर आप मान रहे हैं कि अर्धसत्य के जरिए देश, समाज को बदलने, जगाने की ( भले ही मामूल सही) कोशिश हुई है तो आपका हार्दिक आभार! हम अगर सवाल उठाते हैं, विरोध करते हैं तो उसी जनता के लिये जिसके जीवन को अच्छा करने का संकल्प/शपथ लेकर सरकारें बनाई जाती हैं. हमारी मंशा किसी व्यक्ति, संगठन या विचारधारा का विरोध करना नहीं होती, बल्कि हर तरह के दोपहरेपन और निकम्मेपन को बेपर्दा करने की होती है.
प्रधानमंत्री का पत्र अचंभित ज़रुर कर गया. जिस सिस्टम से टकराना ही आपके होने की पहली शर्त है, वहां आपके किए को समझा जाए और मान दिया जाए, हैरत होती है. हम तो वैसे लोग हैं कि किसी के हक में वेवजह तारीफ कर दें तो तनाव हो जाता है कि ऐसा क्यों कर दिया, यह तो बेईमानी है. दरअसल मेरे जैसे लोग घर-दफ्तर के बीच टंगे-तने रहते हैं, बाहर मेलजोल, भेंट-मुलाकात, दावत-डिनर जैसी नेटवर्क-प्रबंधन पक्रिया का हिस्सा नहीं हो पाते, सिर्फ काम के बूते ही खुद को खड़ा रख पाते हैं. ऐसे में आपका किया/कहा “वहां” देखा-सुना जाए, यही बहुत बड़ी बात है. वैसे हमारा काम भी अपनी एक डिफाइंड टेरिटरी रखता है- जिसमें क्या करना है और क्या नहीं, किसके लिये करना है और किसके लिए नहीं, क्यों करना है और क्यों नहीं – सबकुछ काफी हद तक होता है. ऐसा होने की बुनियादी वजगह शिक्षा, समझ और संस्कार होते हैं. गांव-देहात में पलने-बढने से आए संस्कार, किसान-मजदूर, घर-गृहस्थी के परिवेश से पैदा हुए अनुभव और पेशेवर चुनौतियों से मुकाबला करने के हौसले के चलते आप बार-बार कुछ अलग सोचना-करना चाहते हैं. आपके प्रयासों में हमेशा रोटी, इज्जत, आदमी, आदमियत, तकलीफ से जुड़े सवाल सबसे ऊपर जगह रखते हैं. हमारा शहरी सामाजीकरण नहीं हुआ तो हमारा बाजारीकरण भी नहीं हुआ. इसीलिए इस देश को समझने और लोगों के लिए लड़ने की वाजिब और मजबूत वजहें हमारे पास हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शौचालय को लेकर महिलाओं की पीड़ा का जिक्र करते हैं तो समझ आता है कि यह वही आदमी समझ सकता है जो उस तरह के परिवेश से आया है. बहुत सारे मुद्दों पर सरकार पर हम सवाल उठाते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि नरेंद्र मोदी ने देश में समस्याओं को समझने, उन्हें लोगों के सामने रखने और उनको निपटाने के निहायत नए रास्ते अपनाए. उनकी ऊर्जा और उनके बोलने की कला, बात को आम आदमी के दिल में गहरे उतार आती हैं. यह भी बड़े काम की है.
प्र्धानमंत्री जी, आपका पत्र एक दायित्व बोझ भी दे गया है. स्चच्छता अभियान देश में सफल हो और इसमें मुझ जैसे आम नागरिक को भी कुछ करना चाहिए- आपकी यह इच्छा एक विशेष तरह का दबाव पैदा कर गई है. आप स्वयं सफाई को लेकर सजग रहते हैं और यह अनुप्रेरित भी करता है. आज अर्धसत्य में मैंने स्वयं यह शपथ ली कि प्लास्टिक या पॉलिथीन का प्रयोग नहीं करुंगा. दर्शकों से आग्रह भी किया कि ऐसी ही एक शपथ आप भी लें. इसतरह की छोटी-छोटी कोशिशें देश में एक बड़े बदलाव को पैदा कर देंगी. इंडिया न्यूज परिवार स्वच्छता के संकल्प को राष्ट्रीय संकल्प मानता है और इसको पूरा करने के लिये हरसंभव प्रयास करता रहेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, मेरे बारे में आपके विचार और मुझसे आपकी अपेक्षा दोनों को मैं सविनय स्वीकार करता हूं ( फिर कहता हूं मेरी स्व्यं के बारे में ऐसी राय कभी नहीं रही ). आपने पत्र के लिये अपना बहुमूल्य समय निकाला, आपका हृदय से पुन: आभार.