कत्ल के इल्जामों से बरी होकर एक कातिल बाहर आता है और उसके रिसीव करने के लिए राज्य की पुलिस फौज के साथ मंत्री भी मौजूद हों तो इस रिहाई का आरोप अदालत पर नहीं डाला जा सकता है। निश्चित तौर पर यह सरकार का फैसला और उसका दबाव है। आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात का जवाब देना चाहिए कि आखिर किन हालातों में आज से ग्यारह साल पहले उऩकी सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट बिठाकर बिहार के एक दुर्दांत अपराधी को जेल में ठूंसा था। या तो वो तब गलत थे या फिर आज गलत हैं। सैकड़ों लग्जरी गाड़ियों के साथ हजारों गाड़ियां का काफिला एक कातिल की रिहाई पर उसका जश्न मनाने अगर जेल के दरवाजे पर खड़ा है तो निश्चित मानिए कि यह सरकार ही है जिसके सहारे और इशारे पर यह सब हो रहा है । जेल से छूटते ही शहाबुद्दीन से जिस तरीके से लालू यादव को अपना नेता माना और नीतीश कुमार को परिस्थिति जन्य मुख्यमंत्री बताया उससे भविष्य के संकेत मिल गए। वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने बिल्कुल ठीक कहा कि “गवाह गूंगा हो गया….कानून अँधा हो गया…सिस्टम बहरा हो गया और क़त्ल के इल्जामों से बरी होकर कातिल बाहर आ गया ..अब वो पाक साफ है,बेदाग है …जय बोलो शहाबुद्दीन की” ( नोट ः शहाबुद्दीन जमानत पर बाहर है, किसी मामले में बरी नहीं हुआ है)