नब्बे के दशक की शुरुआत में जब क़र्ज़ से दबे देश को उबारने के लिए प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उदारीकरण के ज़रिये बाज़ार खोल दिए थे, तब पूरी दुनिया के लिए भारत एक बाज़ार के तौर पर उपलब्ध होने लगा था। उसके बाद से ही विकास की रफ़्तार तेज़ हो गई थी।
लेकिन जब कुछ आगे निकल जाता है तो बहुत कुछ पीछे भी छूट जाता है। नब्बे के दौर में विकास तो आगे बढ़ गया लेकिन समाज शायद पीछे छूट गया। लोगों के पास पैसे की आमद बढ़ी और रिश्तों की अहमियत कम होती चली गई।
इन्हीं सब उथल-पुथल के बीच कुछ युवा ऐसे थे जिनके दिलों में परिवार, समाज और देश की बड़ी अहमियत थी। लेखक अनुरंजन झा ने इसी अहमियत को केंद्रीय भाव बनाकर अपने समय के कुछ युवाओं की प्रेम कहानियों को एक उपन्यास ‘हक़ीक़त नगर’ की शक्ल दी है।
यह उपन्यास अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।
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