‘मैं आपके ऑफिस चल सकता हूं, सारे कागज मेरे पास मौजूद हैं. मैंने एफआईआर दर्ज कराई है. मैं इनसे (राजकमल और वाणी प्रकाशन) 2 करोड़ का जुर्माना वसूल करूंगा.’ 80 साल के लेखक सुरेंद्र वर्मा ये बातें कहते हुए काफी आक्रोश में आ जाते हैं.
देश के सबसे बड़े प्रकाशन माने जाने वाले राजकमल और वाणी प्रकाशन पर लेखक सुरेंद्र वर्मा का आरोप है कि वे उनके नाटक ‘हरी घास पर घंटे भर ’ को उनकी इजाजत, सिग्नेचर के बिना दो यूनिवर्सिटीज के साथ मिलीभगत कर चला रहे हैं, वर्मा ने इसे लेकर एफआईआर कराई है. इसके बाद इन प्रकाशकों ने उन्हें एक-एक हजार रुपये का चेक भेजा है, जिसे उन्होंने अभी तक बैंक से कैश नहीं कराया है.
वर्मा चाहते हैं कि उनकी मर्जी और जानकारी के बगैर छापी उनकी किताब का प्रकाशक हर्जाना दें, उन्हें रायल्टी नहीं चाहिए.
गौरतलब है कि लेखक सुरेंद्र वर्मा को उनके चर्चित उपन्यास ‘मुझे चांद चाहिए’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. व्यास सम्मान से सम्मानित ‘काटना शमी का वृक्ष ‘ उनका दूसरा विख्यात उपन्यास है. ‘सूर्य की अंतिम किरण से, सूर्य की पहली किरण तक’ उनका चर्चित नाटक कई भारतीय भाषाओं में अनूदित हो चुका है और इसका मंचन भी. वह फिल्म ‘स्पंदन’ के लिए स्क्रीन राइटिंग का नेशनल अवॉर्ड भी हासिल कर चुके हैं. दारा शिकोह पर बनाई उनकी डॉक्युमेंट्री पांच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल हो चुकी है.
वाणी प्रकाशन ने कहा- लेखक धोखाधड़ी करना चाहते हैं
वाणी प्रकाशन के मालिक अरुण माहेश्वरी ने कहा, ‘इस मामले में जो भी जवाब देना था मैंने वकील के माध्यम से उन्हें दे दिया है.’
लेखक के आरोपों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘वर्मा जो आरोप लगा रहे हैं वो सही नहीं है, वह वरिष्ठ आदमी हैं मुझे उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना है. बाकी लिखित में सवाल थे, मैंने उनका लिखित में जवाब दे दिया है.’
अरुण माहेश्वरी कहते हैं, ‘सीकर यूनिवर्सिटी में उनकी कोई किताब नहीं चल रही है. मैंने उनकी सारी किताबें वापस कर दी हैं. वह एक एकांकी संकलन है जिसमें उनका नाटक हरी घास पर घंटे भर भी संकलित है, लेकिन उनकी कोई किताब नहीं है.’
इस सवाल पर कि उनकी इजाज़त के बिना उनका नाटक एकांकी संग्रह में भी क्यों शामिल है? तो उनका कहना था, ‘मैंने उन्हें उसकी रॉयल्टी भेज दी है. वह धोखाधड़ी करना चाहते हैं. वह मुकदमा कर रहे हैं. चेक को कैश क्यों नहीं करा रहे हैं’.
राजकमल प्रकाशन ने वर्मा के आरोप को बताया निराधार
वहीं ई-मेल पर दिए जवाब में राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा, ‘आरोप निराधार हैं. ‘रंगायन’ (एंकाकी संकलन- जिसमें लेखका का नाटक हरी घास पर घंटे भर भी शामिल है) की बात श्री सुरेन्द्र वर्मा जी ने की है. इसका प्रकाशन 2009 में किया गया था. इतने वर्षों बाद यह बात उन्होंने गलत तथ्यों के साथ कही है. इस समय इसका औचित्य समझ पाना कठिन है.’
उन्होंने कहा, ‘महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए इसका प्रकाशन किया गया. इसमें छह रचनाकारों की रचनाएं संकलित हैं. हमारे द्वारा भेजा गया चेक श्री वर्मा ने न तो वापस किया, न ही रचना संकलित करने की बात कही. ऐसी स्थिति में इसे स्वीकृति माना गया. पाठ्य पुस्तक उपलब्ध न होने से छात्र परेशान थे. विवशता में पुस्तक प्रकाशित करनी पड़ी. श्री वर्मा हमारा चेक लौटा दें, राशि का भुगतान उन्हें कर दिया जायेगा. ‘फर्जी सिग्नेचर’ की बात समझ नहीं आई. किताब में सिग्नेचर नहीं होते.’
ये खबर द प्रिंट हिंदी से साभार लिया गया है।