विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में महामहिम के द्वारा बिहार के एक सामान्य व्यक्ति को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह भारत व बिहार की धरती को गौरवान्वित करने वाला क्षण था। इस पुरस्कार से सम्मानित होकर बिहार का मान बढ़ाने वाले रामचंद्र मांझी प्रसिद्ध भोजपुरी लोक कलाकार हैं। वह ‘लौंडा नृत्य’ के प्रसिद्ध नर्तक हैं।
कौन हैं रामचंद्र माझी :
बिहार में छपरा जिले के तुजारपुर ग्राम के रहने वाले रामचंद्र मांझी, भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के नाच मंडली के कलाकारों में से एक हैं। बचपन से ही वे भिखारी ठाकुर की नाटक मंडली में शामिल हो गए और 1971 में भिखारी ठाकुर की मृत्यु होने तक उनके साथ काम किया। अपने जीवन में उन्होंने सुरैया, वहीदा रहमान, मीना कुमारी, हेलेन आदि जैसे कई बड़े नामों के सामने अपनी प्रस्तुति दी है।रामचंद्र मांझी को ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड 2017’ से नवाजा जा चुका है। बिहार सरकार द्वारा इन्हें “लाइफटाइम एचिवमेंट अवार्ड” से भी सम्मानित किया गया है।
एक समय रामचन्द्र मांझी गरीबी और गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। इनको गुमनामी से बाहर निकालने में ‘भिखारी ठाकुर प्रशिक्षण व शोध संस्थान’ के निदेशक डॉ. जैनेंद्र दोस्त का सराहनीय योगदान रहा है। इन्होंने मांझी को राष्ट्रीय मंच दिलाया और डॉक्यूमेंट्री फिल्म “नाच भिखारी नाच” भी बनाई जिससे इनकी पहचान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बनी।
क्या है लौंडा नाच :
‘लौंडा नृत्य’ बिहार के प्राचीन लोक नृत्यों में से एक है। ‘लौंडा’ का शाब्दिक अर्थ जवान लड़के के लिए संबोधन के रूप में है। इस नाच में लड़का, लड़की की तरह वेशभूषा पहन कर नृत्य करता है। बिहार में किसी भी शादी एवं शुभ अवसर पर लोग अपने यहां इसका आयोजन कराते हैं। इनके अंदर भाव सम्प्रेषण तथा सुर ताल का अच्छा समन्वय होता है। लौंडा नाच कुछ साल पहले तक उस गंवई समाज के किसान मजदूरों की अभिव्यक्ति और मनोरंजन की सबसे सशक्त विधा थी। इस नाच का मूल तत्व गायकी के साथ नृत्य है लेकिन कालांतर में फिल्मी गानों पे नृत्य करके इसने अपनी अस्मिता खो दी। आज समाज में लौंडा नृत्य की लोकप्रियता हासिये पर चली गई है।