Report : Arunesh kumar
सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं जिनसे आज के दौर का युवा वर्ग प्रेरणा लेता है। सरकार ने नेताजी को जन्मदिन को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की है।
आइए जानते हैं नेता जी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी :
“साल 1939 की एक रात जसीडीह स्टेशन पर कोलकाता जाने वाली पंजाब मेल खड़ी थी। स्टेशन से गाड़ी खुलने का समय हो चुका था मगर ट्रेन को हरी झंडी दिखाने की हिम्मत गार्ड में नहीं थी। वेटिंग हॉल में गहरी नींद में सो रहे एक यात्री के इंतज़ार में पंजाब मेल उस दिन देर हो गई। यहां तक कि स्टेशन मास्टर भी उस यात्री को नींद से जगाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। तब स्टेशन मास्टर ने लंबोदर मुखर्जी से आग्रह किया कि वे उस आदमी को नींद से जगाएं। गहरी नींद में सोते हुए यात्री के कंधे पर हाथ रखकर लंबोदर मुखर्जी ने कहा, “नेताजी! ट्रेन आ गई है।
यह घटना उस वक्त की है जब सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन का निर्णय लिया था। देशभर के विभिन्न इलाकों में स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात कर संस्था के निर्माण पर चर्चा कर रहे थे। इसी सिलसिले में उनका दुमका आना हुआ था। उस वक्त लंबोदर मुखर्जी संथाल परगना के सर्वोच्च स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।
इस घटना के एक दिन पहले की बात है। उन दिनों दुमका का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन जसीडीह हुआ करता था। लंबोदर मुखर्जी के साथ कई स्थानीय क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस को लेने दुमका से जसीडीह स्टेशन आए हुए थे। सूरज ढल चुका था। और अंधेरा होने तक ट्रेन आ गई। नेताजी ने लंबोदर मुखर्जी से पूछा, “देर बहुत हो चुकी है, क्या अब तक संथाली भाई बंधु लोग मीटिंग के लिए मेरे इंतज़ार में बैठे होंगे?”
लंबोदर मुखर्जी ने नेताजी को अपनी गाड़ी में बैठाया और क्रांतिकारियों के साथ सीधे दुमका के उस फसलों से घिरे खेत में ले गए जहां मीटिंग होनी थी। संथाल परगना में लंबोदर मुखर्जी को मारंग बाबा के नाम से जानते थे। उन्होंने संथाली भाषा में आवाज लगाई, “नेता जी हमारे बीच आ चुके हैं”। अंधेरे झाड़ियों के बीच मशाल जलने लगे। संथालियों ने देर तक सुभाष चंद्र बोस को सुना। वह रात नेता जी ने दुमका में लंबोदर मुखर्जी के घर पर ही गुज़ारी थी।
उनकी क्रांतिकारी पत्नी उषारानी मुखर्जी के विचारों से सुभाष चंद्र बोस काफ़ी प्रभावित हुए थे। यही वजह रहा होगा जो नेता जी ने संथाल परगना में उषारानी मुखर्जी को फॉरवर्ड ब्लॉक का पहला अध्यक्ष बनाया।
अगले दिन सुभाष चंद्र बोस को दुमका से कोलकाता के लिए रवाना होना था। स्थानीय क्रांतिकारियों के साथ लंबोदर मुखर्जी नेताजी को जसीडीह स्टेशन तक छोड़ने गए। ट्रेन आने में कुछ घंटे बचे थे तो सुभाष चंद्र बोस स्टेशन के वेटिंग रूम में जाकर विश्राम करने लगे।”
तस्वीर नेता जी की जीवनी “आमी सुभाष बोलची” के उस अध्याय की है जिसमें लंबोदर मुखर्जी और उषारानी मुखर्जी के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान एवं नेताजी के साथ संपर्क का उल्लेख है।
बात दें कि लंबोदर मुखर्जी मोतिहारी के प्रसिद्ध चिकित्सक थे।इनके पौत्र बिश्वजीत मुखर्जी भारत जनसंचार संस्थान (नई दिल्ली) के छात्र रहे हैं।इनका निवास स्थान मोतिहारी के मीना बाजार चौक पर स्थित है।
(नोट :- बिश्वजीत मुखर्जी से बातचीत के आधार पर….)