वरिष्ठ पत्रकार व संपादक अनुरंजन झा ने अपनी पुस्तक ‘गांधी मैदानः Bluff of Social Justice’ में बिहार के पिछले 30 सालों का लेखा-जोखा उधेड़ने की कोशिश की है।पिछले 30 सालों में किस प्रकार की घटनाएं घटी,बिहार ने क्या पाया,क्या खोया? इन्हीं तमाम मुद्दों की चर्चा इस पुस्तक (गांधी मैदान) में की गई है।
‘इस किताब की कहानी बिहार के दो मुख्यमंत्री लालू यादव और नीतीश कुमार के इर्दगिर्द घूमती है।शुरुआत होती है लालू यादव के राजनीतिक संघर्ष से,किस प्रकार लालू यादव को सत्ता मिलती है।सत्ता में काबिज होने के बाद किस प्रकार राजनीति से अपराध की दुनिया में कदम रखते हैं।किस प्रकार से लगातार एक के बाद एक घोटाले करके जेल के अंदर-बाहर हो रहे थे।’
‘फिर बिहार को एक नए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मिलते हैं।नीतीश राज्य में एक नया सिस्टम खड़ा कर दिया,वह सिस्टम जो लालू राज में लालू ही सिस्टम थे।उस सिस्टम पर नकेल कसने की कोशिश की।जो अपराधी लालू राज में सत्ता के हिस्सेदार थे,वो नीतीश राज में जेल की सलाखों के पीछे थे।नीतीश की पूरी राजनीति 15 सालों के जंगलराज के इर्दगिर्द घूमती रही। जयप्रकाश नारायण के दोनों चेले लालू और नीतीश बारी-बारी से बिहार की सत्ता पर काबिज तो हुए लेकिन लेकिन सामाजिक न्याय के नाम पर पिछले 30 सालों में बिहार की जनता के साथ धोखा ही किया।’
“इस किताब में वीर कुँअर सिंह का आरा कैसे ब्रह्मेश्वर मुखिया का आरा कैसे हो गया? जेपी और कर्पूरी ठाकुर का बिहार कैसे लालू और नीतीश का होगया।देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू के गाँव जीरादेई से खरतनाक गुंडों में से एक शाहबुद्दीन विधायक और संसद बनगया।गांधी के चंपारण में कैसे गैंगवार ने जगह लेली।वाल्मीकि के जंगल को कैसे डकैतों ने मिनी चंबल बना दिया।”
अनुरंजन झा की पुस्तक रामलीला मैदान के बाद दूसरी क़िताब है “गांधी मैदान”।उस किताब में उन्होंने ने अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी के राजनीतिक सफर की सच्चाई सामने लाने की कोशिश की थी।उसी प्रकार ‘गांधी मैदान’ में 30 सालों का हिसाब बताने की कोशिश की है।
बुद्ध-महावीर की धरती बिहार के पिछले 30 सालों की राजनीति को समझने के लिए “गांधी मैदानः Bluff of Social Justice” को सबको पढ़नी चाहिए।खासकर अगर बिहारी हैं तो बिल्कुल पढ़ना चाहिए, अगर राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं तो उनको जरूर पढ़ना चाहिए।
अरुणेश कुमार ✍️