Report : Media Sarkar Bureau
श्री जगन्नाथपुरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ जी की रथयात्रा को रोकने के जो आदेश दिया है उसमें उनकी भावना शुद्ध है, विभीषिका से बचने के लिए ये निर्णय लिया गया है लेकिन इस निर्णय में सूझ-बूझ की कमी दिखती है।
परंपरा का विलोप भी नहीं होना चाहिए, परंपरा केे विलोप का ही परिणाम है विभीषिका
शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि हमें शास्त्र सम्मत परम्परा से प्रशिक्षण प्राप्त है कि देश-काल और परिस्थिति को देखते हुए धर्म का निर्णय लेना चाहिए। यह किसी आस्तिक महानुभाव की भावना हो सकती है कि इस परिस्थिति में रथयात्रा की अनुमति नहीं दी जाए लेकिन ऐसी परिस्थिति में शास्त्रसम्मत प्राचीन प्रथा को देखते हुए निर्णय की आवश्यकता थी।
परपंरा का विलोप होने पर जगन्नाथ जी क्षमा करेंगे क्या ?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोवड़े ने इस साल पुरी की रथयात्रा पर रोक लगाते हुए कहा कि अगर ऐसी परिस्थिति में अगर हमने अनुमति दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। इस पर अपनी बात रखते हुए पुरी के शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि उनकी भावना अच्छी है लेकिन परपंरा का विलोप होने पर जगन्नाथ जी क्षमा करेंगे क्या इस पर भी अदालत को विचार करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश से इस पर विचार कर रास्ता निकालने का अऩुरोध
जगद् गुरू शंकराचार्य ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुख्य न्यायाधीश जो विवेकवान हैं और हमारे प्रिय भी उनसे विनम्र अनुरोध है कि सारी परिस्थितयों को देखते हुए प्रशस्त ढंग से न्याय प्रदान करें। ये न्यायालय का दायित्व है।
ऐसे निर्णय में व्यापक विमर्श और सलाह की जरूरत
पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य जी ने कहा कि 2503 सालों की हमारी प्रशस्त परंपरा है। इस पीठ के हम 145वें मान्य शंकराचार्य हैं, यह ज्ञात होना चाहिए कि धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों के न्यायाधीश तो हम लोग माने ही जाते हैँ। यह परंपरा से भी मान्य है और उच्चतम न्यायालय अनुसार भी, ऐसे में न्यायालय को इन विषयों पर परामर्श और मार्गदर्शन लेना चाहिए। क्योंकि आपकी भावना शुद्ध है तो निर्णय भी उचित हो। विभीषिका का ख्याल रखते हुए, आम जन मानस के जीवन का ख्याल रखते हुए और परंपरा का ख्याल रखते हुए ये निर्णय लिया जाना चाहिए।
पुरी पीठ के बारे में संक्षेप में जानें
भगवत्पाद् आदि शंकराचार्य महाभाग का प्रादुर्भाव जब प्रामाणिक रीति से हुआ तो उन्होंने समस्त सृष्टि पर वैदिक संस्कारों को स्थापित किया। तब विश्व में कोई दूसरा तंत्र यानी क्रिश्चियन तंत्र, मुस्लिमतंत्र या फिर पारसीतंत्र नहीं था। एक चौथाई विश्व एक शंकराचार्य के अधिकार क्षेत्र में आता था। विश्व चार पीठों में विभक्त था, गोवर्धन पीठ पुरी, श्रृंगेरी शारदा पीठ कर्नाटक, द्वारका पीठ गुजरात और ज्योतिर्मठ पीठ बद्रीनाथ। इन्हीं चारों पीठों में एक पीठ है पुरी पीठ। आज भी श्री जगन्नाथ मंदिर श्रीपुरी पीठ के शंकराचार्य के ही साक्षात क्षेत्र में आता है।