18 जून को दिए अपने आदेश में सुप्रीम अदालत ने कहा था कि अगर इस महामारी के काल में हमने रथयात्रा की अनुमति दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। उसके बाद पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक बयान जारी कर कहा कि सुप्रीम अदालत की ये भावना अच्छी है कि लोगों के जीवन को बचाने की मंशा दिखती है लेकिन हमारी सदियों की परंपरा का ख्याल भी अदालत को करना चाहिए, साथ ही शंकराचार्य ने कहा था कि क्या वैदिक परंपरा टूटने पर भगवान हमें माफ करेंगे? उसके बाद कई संगठनों ने सुप्रीम अदालत में विचार याचिका दाखिल की। आज अदालत ने तमाम शर्तों के साथ रथयात्रा को अऩुमति दे दी । निश्चित तौर पर इस यात्रा में आम श्रद्धालुओँ की भागीदारी नहीं होगी।
मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों ने मिलकर निकाला रथ
रथयात्रा के साथ साथ लोगों के जीवन का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए इसी उद्देश्य से मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों ने मिलकर इस वर्ष रथ निकाला। तकरीबन 1200 पुजारी और कर्मचारी मंदिर के अहाते में रहते हैं। सभी का हाल में कोरोना टेस्ट कराया गया और क्वारंटीन भी किया गया था। इस रथयात्रा में आम लोगों की भागीदारी नहीं हुई इसलिए परंपरा भी नहीं टूटी और जीवन के साथ खिलवाड़ भी नहीं हुआ।