लॉकडाउन की 54 दिन की अवधि में जब अधिकांश कंपनियां बंद थीं या पूरी तरह से काम नहीं कर पाईं, उस दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जाए या कंपनियां कटौती कर सकती हैं, इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती देने वाली कंपनियों की याचिकाओं पर जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की खंडपीठ ने सुनवाई की। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 हफ्ते में विस्तृत हलफनामा पेश करने को कहा है।
कंपनियों पर नहीं होगी कड़ी कार्रवाई
कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान कंपनियों पर किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कंपनियां और कर्मचारी आपस में मामले को सुलझाने की कोशिश करें। यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो श्रम मंत्रालय की मदद ले। उद्योग धंधे और मजदूर एक दूसरे से जुड़े हैं। इसलिए सामंजस्य बनाकर चलना जरूरी है।
लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था की कमर टूटी है
केस की अगली सुनवाई जुलाई में होगी। बता दें लॉकडाउन लगने के बाद केंद्र सरकार ने कंपनियों से कहा था कि कर्मचारियों का वेतन न काटा जाए। इसके खिलाफ कुछ कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट (SC) का दरवाजा खटखटाया था। बीती चार जून को इस मामले में आखिरी सुनवाई हुई थी। तब केंद्र सरकार ने ने अपने हलफनामे में कहा था कि उसकी 29 मार्च की अधिसूचना असंवैधानिक नहीं है। इस आदेश में वेतनभोगी और निचले वर्ग के श्रमिकों, कामगारों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सरकार ने विधि सम्मत तरीके से यह फैसला लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थायी प्रावधान नहीं था और केवल लॉकडाउन की अवधि के लिए ही था। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों का रुख जानने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। कंपनियों का कहना था कि सरकार ने जरूरी चीजों से जुड़े कामकाज और सेवाएं जारी रखने का आदेश दिया था, लेकिन वेतन न काटे जाने की शर्त जानने के बाद कई कर्मचारी जानबुझ कर काम पर नहीं लौटे। यही कारण है कि कंपनियां पूरा वेतन नहीं देना चाहतीं।
कंपनियों की ओर से यह भी कहा गया कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन उनकी कमर तोड़कर रख दी है। ऐसे में पूरा वेतन देने की बाध्यता उनकी बैलेंस शीट को और बिगाड़ देगी।