जगन्नाथ पुरी में 23 जून मंगलवार यानी आज रथयात्रा निकाली जा रही है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी। कोर्ट ने कहा है कि मंदिर कमेटी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के को-ऑर्डिनेशन में यात्रा निकाली जाए, लेकिन लोगों की सेहत से समझौता नहीं होना चाहिए। अगर हालात बेकाबू होते दिखें तो राज्य सरकार यात्रा या उत्सव को रोक सकती है। साथ ही कहा कि पुरी के अलावा ओडिशा में कहीं और यात्रा नहीं निकाली जाएगी। सुप्रीम अदालत के इस आदेश के बाद राज्य के मुख्यमंत्री नबीन पटनायक ने एक हाई लेवल मीटिंग की और कैसे रथयात्रा निकली जाए इस पर आदेश जारी किए।
समूचे जिले में 48 घंटे का कर्फ्यू लगाया गया है
2500 साल से ज्यादा पुराने रथयात्रा के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकल रही है, लेकिन भक्त घरों में कैद हैं। कोरोना महामारी की वजह से पुरी शहर को टोटल लॉकडाउन कर दिया गया है। पूरे जिले में सोमवार रात से बुधवार रात तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है। रथयात्रा को मंदिर के 1172 सेवक गुंडिचा मंदिर तक ले जाएंगे। इन सभी सेवकों को क्वारंटीन रखा गया फिर इऩके कोरोना टेस्ट कराए गये। ये सभी सेवक कोरोना की जांच में निगेटिव आए। आज यही सारे लोग रथ खींच रहे हैं। इनमें से कोई भी इस भयानक बीमारी की चपेट में नहीं है।
कैसी होती है ये रथयात्रा
रथयात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यहां सात दिन रुकने के बाद आठवें दिन फिर मुख्य मंदिर पहुंचते हैं। कुल नौ दिन का उत्सव पुरी शहर में होता है। मंदिर समिति पहले ही तय कर चुकी थी कि पूरे उत्सव के दौरान आम लोगों को इन दोनों ही मंदिरों से दूर रखा जाएगा। पुरी में लॉकडाउन हटने के बाद भी धारा 144 लागू रहेगी। इस 2.5 किमी की इस यात्रा के लिए मंदिर समिति को सुप्रीम अदालत तक का सफर पूरा करना पड़ा।
शंकराचार्य ने अदालत के फैसले की की सराहना, पहले कहा था रास्ता निकालें कोर्ट
पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने अदालत के फैसले की सराहना की है। 18 जून को दिए अपने आदेश में सुप्रीम अदालत ने कहा था कि अगर इस महामारी के काल में हमने रथयात्रा की अनुमति दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। उसके बाद पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक बयान जारी कर कहा कि सुप्रीम अदालत की ये भावना अच्छी है कि लोगों के जीवन को बचाने की मंशा दिखती है लेकिन हमारी सदियों की परंपरा का ख्याल भी अदालत को करना चाहिए, साथ ही शंकराचार्य ने कहा था कि क्या वैदिक परंपरा टूटने पर भगवान हमें माफ करेंगे। उसके बाद कई संगठनों ने सुप्रीम अदालत में विचार याचिका दाखिल की। अदालत ने तमाम शर्तों के साथ रथयात्रा को अऩुमति दे दी।