By Anuranjan Jha
आज विश्व पर्यावरण दिवस है, हर साल आज के दिन हम प्रकृति को याद करते हैं, अच्छी अच्छी बाते करते हैं, पेड पौधों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, कुछ नहीं तो गूगल से डाउनलोड कर ही शेयर कर देते हैं और दुनिया को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हैं। लेकिन हकीकत इसके उलट है, अगर हम वाकई में इतनी चिंता कर रहे होते तो जिस दौर से इऩ दिनों गुजर रहे हैं उससे नहीं गुजरना पड़ता। कोरोना फोरोना जैसी बीमारियां हमारे पास या तो फटकती नहीं या फिर आ भी जाती तो हमारे इम्यून सिस्टम से टकरा कर बिखर जाती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और आगे भी ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती। क्योंकि हमारे खाने और दिखाने के अलग अलग दांत हैँ। तो सवाल उठता है कि क्या किया जाए ? हम व्यक्तिगत तौर पर थोड़े आशावादी हैं इसलिए जल्दी हार नहीं मानते और इसी में रास्ता तलाशने की कोशिश करते हैं।
जब इस निराशा की घड़ी में हम अपने आसपास नजर दौड़ाते हैं तो हमारी नजर एक ऐसे युवा पर जा टिकती है जिसे देख रश्क होता है कि काश अपन भी इसी शिद्दत से ऐसा कर पाते। और भी लोग होंगे जो इस नौजवान की तरह कर रहे होंगे लेकिन ये इंसान तो अलहदा है। पानी-पौधे-जंगल-नदी-तालाब रटते रटते अनुपम मिश्र तो अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन इस युवा सरीखे लोग उम्मीद जगाते हैँ। कहानी लॉकडाउन से पहले की है, हर रोज सुबह ये शख्स अपनी स्कूटी पर कुछ पौधे लाद किसी न किसी गांव या किसी न किसी कस्बे की ओर चल देता है, बिना नागा किए, बिना किसी साथी का इंतजार किए। ये सिलसिला लगभग तीन सालों से बदस्तूर जारी है। और जानते हैं इस सिलसिले का परिणाम क्या है ? जिस चम्पा के जंगलों की वजह से पूरे इलाके का नाम चम्पारण यानी चम्पा का अरण्य पड़ा था वहां फिर से एक बार विलुप्त हो चुके चम्पा के पौधे अब लोगों के बाग-बगीचों और दरवाजों पर देखे जाने लगे हैं। इन तीन सालों में इस अकेले शख्स ने ऐसी मुहिम चलाई जिससे अभी तक 80 हजार से ज्यादा चम्पा के पौधे इलाके में लगाए जा चुके हैँ।
जी हम बात कर रहे हैं अपने शहर मोतिहारी के सुशील कुमार की। सारी दुनिया सुशील को तब से जानती है जब उनने अमिताभ बच्चन के सामने बैठकर कौन बनेगा करोड़पति में पहली दफा 5 करोड़ की रकम अपने नाम कर ली। लेकिन सुशील कई दूसरे प्रतियोगियों की तरह कुछ अलग करने की जिद वाले निकले। अब करोड़पति सुशील की पहचान धुमिल हो रही है और एक ऐसे सुशील में तब्दील हो रही है जो सनातन रहने वाला है। अभी तक लोग कहते हैं ये वही सुशील हैं जिन्होंने केबीसी में पांच करोड़ जीता था, लेकिन वो दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे कि चम्पा वाले सुशील हैं ये और इनकी एक और खासियत है केबीसी में पांच करोड़ पहली बार जीता था। अब सुशील चम्पा के साथ साथ, नीम, बरगद और पीपल के पेड़ भी लगाते हैं। किसी से पैसा भी नही लेते। बस आप उनको बता दीजिए आप पौधे लगवाना चाहते है वो अपनी स्कूटी पर पौधे लाद आपके दरवाजे पहुंच जाएँगे। निश्चित तौर पर सुशील ने जो प्रकृति से पाया है उसका कर्ज उतारने की कोशिश कर रहे हैं, हमें देखना है कि हम कर रहे हैं क्या?
आज के दिन आप पौधे लगाइए लेकिन साथ ही सुशील जैसे व्यक्ति की बातों को, उनके काम को लोगों तक पहुंचाइए, दूर देश तक । ऐसा करके ही हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। जिनकी प्रेरणा स्वत:स्फूर्त नहीं होती उऩ्हें लोगों को देख देख कर प्रेरणा मिलती है इसलिए सुशील कुमार की बातों को उनके काम को जन जन तक पहुंचाने की जरूरत है। क्योंकि पेड-पौधे होंगे तभी हम होंगे। तभी हमारी अगली पीढियां होंगी और हमें भला-बुरा नहीं कहेंगी। क्योंकि हालात ऐसे हैं कि अगर हम अपने पर्यावरण से ऐसा ही बर्ताव करते रहे जैसा इन दिनों कर रहे हैं तो कोरोना का भाई फोरोना आ जाएगा और हम देखते रह जाएँगे। अगर हमने अपने व्यवहार बदले और प्रकृति से प्रेम दिखाया तो कोरोना का बाप खोरोना भी आ जाए तो हम आसानी से झेल जाएँगें।
पिछले पांच सालों में हमने अपने गांव में और उसके आस-पास तकरीबन दो हजार पेड़ पौधे लगाए होंगे। जिसमें कुछ फल देने वाले हैं, कुछ सिर्फ फूल तो कुछ बस पौधे हैं खूबसूरत लगते हैं और हवा देते हैं। हमारे जानने वालो को मालूम है कि हम लगभग हर दो महीने पर गांव में होते हैं। अक्सर सुशील अपने पौधो के साथ हमारे पास भी आते हैं और हम नई जगह चुनकर पौधे लगाते हैँ। अब सुशील ने एक नया प्रस्ताव दिया पिछले दिनों, खाली पड़ी जमीनों पर जंगल बसाने का। जल्द ही सुशील के उस प्रस्ताव पर अमल होगा। इस पर्यावरण दिवस पर हम सुशील कुमार को ये भरोसा दिलाते हैं कि हालात सामान्य होते ही 10 हजार स्क्वायर फीट की जमीन पर हमारे गांव में जंगल बसाया जाएगा। सुशील कुमार को उनके कामों के लिए हम साधुवाद देते हैं और साथ ही राज्य सरकार, केंद्र सरकार, हमारे स्थानीय नेतागण, सांसद- विधायक और जिले के अधिकारियों सबसे गुजारिश करते हैं कि सुशील का नाम इस साल पद्म पुरस्कारों के लिए भेजा जाए।