गलवान में हिंसक झड़प के 7 दिन बाद आखिरकार भारत के दबाव के आगे चीन झुक गया। सोमवार को चीन सीमा के मॉल्डो में दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हुई थी। बातचीत में पूर्वी लद्दाख में टकराव वाली जगह से दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमति बनी है।
द वेब रेडियो से साभार
इस बीच, थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने लेह का दौरा किया और चीनी सैनिकों को सबक सिखाने वाले जांबाजों से मुलाकात की। भारतीय अफसरों ने गलवान में हुई हिंसक झड़प को चीन की सोची-समझी साजिश और क्रूर बताया था। भारत की मांग थी कि चीन लद्दाख में अपने सैनिकों की पोजिशन अप्रैल की यथास्थिति पर लाए। चीन की सेना ने पहली बार माना कि 15 जून को गलवान में हुई झड़प में उसके कमांडिंग ऑफिसर समेत 2 सैनिक मारे गए। गलवान में चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर कंटीले तारों से हमला किया था, जिसमें 20 जवान शहीद हो गए थे।
चीन क्यूं आया दबाव में
दरअसल मामला जितना सीधा दिख रहा है उतना चीन के लिए नहीं है। चीन से विवाद के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस के दौर पर हैं। रूस ने पहले ही भारत के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की है और एक बार फिर यूएन सिक्युरिटी काउंसिल में स्थाई सदस्यता के लिए भारत का समर्थन कर रहा है। इस बीच जर्मनी के नाजियों पर रूस की जीत के 75 साल पूरे होने पर रूस में कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, इसी सिलसिले में एक वर्चुअल मीटिंग हुई में जिसमें भारत-रूस और चीन के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। इस मीटिंग में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी – की मौजूदगी में मौजूदा हालात पर अपना रुख साफ किया। जयशंकर ने कहा- दुनिया की अगुआई करने वाले देशों को हर मायने में मिसाल पेश करने वाला होना चाहिए। जयशंकर के रुख और रूस के तेवर से चीन को इतन तो समझ मे आ ही गया कि मौका थोड़ा नाजुक है और इसकी नजाकत समझनी चाहिए। बैठक में रूस के विदेश मंत्री सर्गी लैवरॉव ने गलवान झड़प पर किसी भी मध्यस्थता की बात को नकार दिया। उन्होंने कहा, “भारत और चीन को किसी बाहरी की मदद की जरूरत नहीं है। जब देश का मामला हो तो उन्हें कोई मदद नहीं चाहिए। हाल की घटनाओं के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि भारत और चीन इसे खुद सुलझा लेंगे।” जाहिर है चीन के लिए ये साफ संकेत हैं कि विवाद के मामले में रुस का साथ नहीं मिलने वाला। इन्हीं अतंरराष्ट्रीय दबावों की वजह से चीन ने अपने कदम पीछे हटाने में ही अपनी भलाई समझी है।