हमारा मानना है कि 2020 के बाद दुनिया बदल जाएगी। आपको इसे स्वीकार करना होगा और आप जितनी जल्दी स्वीकार करेंगे उतनी सुविधा होगी। आपको समझना होगा कि दुनिया पहले कैसे चलती थी। कैसा उसका अस्तित्व था। विकास की प्रक्रिया में हमने उसको कितना खराब किया है। हर आविष्कार के साथ दुनिया का स्वरूप बदलता रहा है, चाहे वो पुरा पाषाण काल के आग का आविष्कार हो, साढ़े तीन हजार साल पहले पहिए का आविष्कार हो या फिर पिछले सौ साल के अंदर टेलीविजन, कंप्यूटर, मोबाइल फोन या फिर सबसे आधुनिक इंटरनेट का आविष्कार हो। अगर विकास के साथ दुनिया बदल जाती है तो निश्चित तौर पर विनाश के साथ भी दुनिया बदल जाएगी।
और आप कल्पना कीजिए कि ये कोरोना जैसी महामारी कोई पाषाण काल या पुरा पाषाण काल में नहीं आई है। ये तब आई है जब अंतरिक्ष में हमारा दबदबा बढ़ रहा है, मंगल ग्रह तक पहुंच गए हैँ। चांद पर आशियाना बनाने की सोच रहे हैं वैसे हालात में दुनिया उलट-पुलट गई है।
आप दुनिया को अब दो हिस्सों में देखिए … 2020 के पहले और 2020 के बाद । ठीक वैसे ही जैसे हम चर्चा करते हैं- ईसा पूर्व और ईसवी सन् की। क्योंकि आज तक कभी ऐसा नही हुआ कि दुनिया की 70 फीसदी आबादी घरों में कैद हो गई हो और वो भी एक अदृश्य वायरस की वजह से ।
हमारा मानना है कि आज के दौर में जीवन को चार अहम बिंदुओं पर देखना होगा
सामाजिक, व्यावहारिक, शैक्षणिक और आर्थिक
सामाजिक जीवन में जो बदलाव आएगा उसमें आपको भीड़ से बचना होगा, समाज को बचाने के लिए सामाजिक भीड़ से दूर होना होगा। सभा-सम्मेलन, बाजार, हाट, सिनेमा- थिएटर – मॉल, पार्क इन सबसे आपको दूर होना होगा। कम से कम अगले दो साल तक सार्वजनिक जगहों पर जाने से जितना संभव हो बचना होगा । ये आपके जीवन का एक सामाजिक बदलाव होगा जिसे अब आपको अपनाना ही होगा।
व्यावहारिक तौर पर आपकी जीवन शैली में मास्क, गमछा, ग्लव्स, ने जगह ले ली है। भले ही आप बनियान नहीं पहने लेकिन अगले कुछ वक्त तक आप बिना मास्क और ग्लव्स के नहीं रह सकते। हाथ मिलाने से, गले मिलने से गुरेज करना होगा। साबुन और सेनिटाइजर यानी साफ-सफाई इस वक्त की हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। और हां जहां-तहां थूकने की हम हिंदुस्तानियों की जो सबसे खराब आदत रही है उसे तो अभी से त्याग दीजिए। थूक फेंकने से पहले सोचिए कि क्या आप आसमान पर थूक रहे हैं। जैसे ही यह कल्पना करेंगे सही जगह थूकेंगे। ये आपके व्यवहार का परिवर्तन होगा जिसे आपको अपनाना होगा।
साथ ही आपको शिक्षा के बारे में गंभीरता से सोचना होगा, सरकार तो सोच ही रही है, ये बीमारी ऐसे वक्त में आई है जब आपके पास इससे लड़ सकने के लिए कम से कम साधन तो हैं। शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रुप से चलाने के लिए साधन है। होम स्कूलिंग के बारे में सोचिए। कल्पना कीजिए कि ये बीमारी तब आई होती जब इंटरनेट और मोबाइल नहीं होता और ज्यादा पुरानी बात थोडे ही है महज पच्चीस-तीस साल पहले फिर क्या करते तो शैक्षिक स्तर पर इसको गंभीरता से सोचिए कि क्या बदलाव अपनाएँगे। गुरुकुल पद्धति में जा नही सकते लिहाजा होम स्कूलिंग, ऑनलाइन शिक्षा पर गंभीर होईए कम से कम दो सालों के लिए। ये होगा आपका शैक्षणिक बदलाव
अब सबसे अहम बदलाव जिस पर आपका जीवन निर्भर होगा वो है आर्थिक बदलाव, यकीन मानिए अब हममें से बहुत ऐसे होंगे तो दफ्तर नहीं जा पाएँगे, कुछ डर से कुछ बेरोजगार होकर तो आखिर जीवन कैसे चलेगा। ये तो आपको भी दिख ही रहा होगा कि देश में बहुत बड़ा तबका बेरोजगार होगा। नौकरियां जाएंगी, सैलरियां कटेंगी। हमें कर्ज के जाल से बाहर आऩा होगा। खुद का कारोबार तलाशना होगा। ग्रामीण भारत ही हमारी ताकत बनेगा। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हमारी जनसंख्या हमारी ताकत बनेगी। क्यूंकि यहां डिमांड और सप्लाई का खेल चलता रहेगा क्यूंकि हमारे पास 135 करोड़ लोगों का बाजार है लिहाजा उस बाजार को साधने की जरुरत होगी। अपने खर्चों में कटौती करना होगा, जिस विलासिता को हमने अनिवार्य आवश्यकताओँ में तब्दील कर दिया था उसे फिर से विलासिता वाली कैटेगरी में ही डाल दीजिए। मूलभूत जरुरतों के अलावा खर्चों पर लगाम लगा दीजिए, जो पैसे आपके पास हैं उसको बहुत सोच समझ कर खर्च कीजिए, ये सोच कर कि शायद ये आखिर पैसा है आपके पास, तभी जाकर इस बदहाल हो चुकी अर्थव्यवस्था में आप अपने लिए जगह बना पाएँगे। तभी खुद को संभाल पाएँगे, बेहतर भविष्य का निर्माण कर पाएँगे।
फिलहाल लॉकडाउन का पालन कीजिए, घरों में रहिए, एक दूसरे का ख्याल रखिए ।