लॉकडाउन के कुछ ही दिन बाद की बात है। बेटा नीचे राशन का कुछ सामान लेने गया था। लौटा तो बताया कि होर्डिंग के साये में एक
महिला बैठी है, छोटा सा बच्चा है, बच्चे ने पांव पकड़ लिए, वो महिला आटा मांग रही है। मैंने आटा, करीब तीन-चार किलो चावल, दो किलो के आसपाल गांव से लाया चूड़ा (पोहा वाला) और दो लीटर पानी भिजवा दिया। बेटा लौटा तो बोला कि वो महिला एक बोतल सरसों का तेल भी मांग रही थी। चार दिन पहले मैं पड़ोस की एक दुकान पर कुछ राशन का सामान और दूध वगैरह लेने गया था। दोपहर का वक्त था। एक बच्ची आई बोली अंकल आटा दिलवा दो। मैंने कहा कि कुछ खाओगी, बोली नहीं, बस आटा चाहिए। दुकानदार ने कहा कि भाई साहब उधर ध्यान मत दीजिए, महिलाएं सड़क पार बैठी हैं, इस पार दुकानों पर बच्चे हर ग्राहक के आटा मांग रहे हैं, ये खुला आटा नहीं लेते, पांच या दस किलो का कट्टा चाहिए। लोग तरस खाकर दे देते हैं, जिसे ये सब शाम को पीछे वाले इलाके में बेच आते हैं, इनका रोज का काम है। एक दिन कुछ और खरीदने थोड़ा आगे निकला, एक लाइन से राशन की दुकानें हैं वहां। हर दुकान के सामने दो महिलाएं और आटे का कट्टा दिलाने की मांग करते हुए बच्चे दिखाई दिए। ये जरूरतमंद नहीं थे, ‘गिद्ध’ थे, जो संकट के इस समय लोगों की भावनाओं को छलकर ठगी कर रहे हैं। इनका एक समूह है।
अभी हमारी साहित्यकार मित्र अर्चना चतुर्वेदी जी का फोन आया था। जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है, तबसे पूरी टीम बनाकर जरूरतमंदों तक राशन पहुंचा रही हैं, खुद जमकर खर्च कर रही हैं, जानकारों से भी खर्चा करवा रही हैं। आज बोलीं कि गजब का हाल है। असली जरूरतमंदों तक राशन पहुंच ही नहीं पा रहा है। एनजीओ राशन बांट रहे हैं, हम लोग राशन बांट रहे हैं। एक फोन पर प्रशासन राशन पहुंचा रहा है, लेकिन राशन ज्यादातर उन ‘गिद्धों’ तक पहुंच जा रहा है, जो हर रोज राशन की कतार में लग जा रहे हैं। एक-एक घर से चार-पांच लोग लाइन में लगकर राशन ले जा रहे हैं। जो असमर्थ हैं, अशक्त हैं, वे लाइन से दूर रह जाते हैं।
सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं कि लोग राशन की लाइन में लग रहे हैं, घर पर प्रशासन से राशन मंगवा रहे हैं, जबकि घर में पूरा भंडार भरा है। लोग रोज लाइन में लगकर राशन ले जा रहे हैं। आखिर इसका निदान क्या है, क्यों ना राशन देने के बाद अंगुली में मतदान वाली स्याही लगा दी जाए, क्योंकि ये ‘गिद्ध’ समझाने से मानेंगे नहीं। असली जररूरतमंदों तक मदद पहुंच ही नहीं पाएगी। कोरोना से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम केयर्स में मदद मांगी। देशवासियों ने खुलकर दान देना शुरू कर दिया। ‘गिद्धों’ ने मिलते-जुलते नाम से अकाउंट खोल लिए, दानदाताओं के लाखों रुपये ठग लिए। पहले ही बता दूं कि इन ‘गिद्धों’ में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं। लॉकडाउन के दौरान तमाम लोगों से बात होती है, कई बार कलेजा कचोट जाता है। ग्वालियर की एक डॉक्टर मित्र बता रही थीं अपने डॉक्टर पति का हाल। सुबह अस्पताल के लिए निकल जाते हैं। रात 11 बजे के बाद आते हैं। फिर घंटे भर से ज्यादा चलता है उनके सैनिटाइजेशन और नहाने का काम। सामान्य दिनचर्या में रात 10 बजे तक खा पीकर सो जाने वाले डॉक्टर साहब रात 1 बजे के आस-पास डिनर कर पाते हैं, कई बार तो बिना कुछ खाए सो जाते हैं, खुद शुगर के मरीज हैं, भूखा रहना खतरनाक है, पत्नी उन्हें जगाकर कई बार अपने हाथ से खिला देती हैं। जो भी दो-चार कौर हलक के नीचे उतर जाए।
कोरोना वायरस ने सांप्रदायिक सद्भाव पर गहरा असर डाला है। पहले जमातियों ने बंटाधार किया। अभी कर भी रहे हैं, डॉक्टरों पर थूकने, सोशल डिस्टेंसिंग न मानने, कहीं अभद्रता की शिकायतें लगातार मिली हैं। आज मुरादाबाद में भी पुलिस और डॉक्टरों की टीम पर हमला हो गया। मध्य प्रदेश में तैनात एक डॉक्टर मित्र के साथ भी ऐसा हुआ था, पुलिस टीम के साथ वे मुस्लिम बहुल इलाके में कोरोना संभावित की जांच के लिए गए थे, लोगों ने ईंट-पत्थर मारकर खदेड़ दिया। ऐसे में कैसे बनेगी सद्भाव की बात। यहां तो गलत को गलत कहने में भी लोगों को झिझक होती है। ऐसे लोगों के तमाम हिमायती भी सामने आ जाते हैं।
आखिर रास्ता क्या है। मेरे एक दक्षिणपंथी मित्र कहते हैं कि ऐसे इलाकों में जहां हिंसा की आशंका हो, वहां डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों के साथ मौलानाओं की भी एक टीम ले जानी चाहिए। शायद मौलानाओं की बातें वो लोग सुनें। कोरोना का संदिग्ध अगर कोई उनके बीच है तो उसे डॉक्टरों की टीम को सौंपें। कुछ साल पहले कश्मीर से एक तस्वीर आई थी, जिसमें एक मेजर ने एक कश्मीरी को जीप के आगे बांध दिया था। ये तस्वीर अमानवीय थी, बहुत निंदा हुई, लेकिन एक बात और थी, मेजर को पूरे रास्ते किसी ने टच नहीं किया। हमारे मित्र का आइडिया उसी घटना से प्रेरित था। तीन-चार महीने पहले तक पुलिस और डॉक्टर की जो छवि थी, वो पलट गई है। पैसे के भूखे और टेस्ट के नाम पर मरीजों का कचूमर निकाल देने के लिए बदनाम डॉक्टर सही मायने में मसीहा बनकर सामने आ रहे हैं। कई डॉक्टर तो कोरोना संक्रमितों का इलाज करने के दौरान अपनी जान गंवा बैठे हैं। भ्रष्टाचार के लिए बदनाम पुलिस का भी मानवीय चेहरा सामने आया है। बिना छुट्टी, 12 घंटे से ज्यादा ड्यूटी कर रहे हैं। घर के बाहर नहा रहे हैं, खुद को सैनिटाइज करके भीतर जा रहे हैं, बमुश्किल चार घंटों की नींद और फिर हमारी आपकी सुरक्षा के लिए लाठी लेकर मुस्तैद। इनके लिए ताली बजाएं, थाली बजाएं, दीप जलाएं जो भी करें वो इनकी कर्तव्यपरायणता के आगे बहुत कम है।