Report : Hiralal Prasad
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ ‘परीक्षा पे चर्चा’ की । यह कार्यक्रम दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित किया गया। ‘परीक्षा पे चर्चा 2020’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 2020 केवल नया साल ही नहीं, बल्कि नए दशक की शुरुआत है। इस दौरान देश के विकास में सबसे ज्यादा 10वीं-12वीं के छात्रों की भूमिका होगी।और उसके लिए हमें तैयार होना होगा।
‘असफलता के आगे ही सफलता’
मोदी ने बताया, ‘‘जीवन में शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिन्हें नाकामी से गुजरना न पड़ता हो। कभी कुछ करने के लिए मोटिवेटेड होते हैं, अचानक असफलता मिलने पर डिमोटिवेट हो जाते हैं। चंद्रयान-2 के लिए हम रातभर जागे। आपका उसमें कोई कॉन्ट्रीब्यूशन नहीं था, लेकिन जब वह मिशन असफल हुआ तो आप सब डिमोटिवेट हो गए। कभी-कभी विफलता आपको परेशान कर देती है। कई लोगों ने मुझसे कहा था कि आपको उस कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए। आप जाएंगे और फेल हो गया तो क्या कहेंगे। मैंने कहा- इसलिए तो मुझे जाना चाहिए। जब आखिरी कुछ मिनट थे, तो मुझे दिखा कि वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव है, परेशान हैं। मुझे लगा कि कुछ अनहोनी हो गई है। फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने बताया तो मैंने कहा- ट्राई कीजिए। मैं बैठा हूं। मैंने वहां साइंटिस्ट्स के साथ बातें कीं। कुछ देर बाद अपनी होटल चला गया।’’
‘‘मैं वहां भी चैन से बैठ नहीं पाया। सोने का मन नहीं किया। हमारी पीएमओ की टीम अपने कमरों में चली गई। आधा पौने घंटे बाद मैंने सबको बुलाया। मैंने कहा- सुबह हमें जाना है, तो सुबह थोड़ा देर से जाएंगे। मैं सुबह उन साइंटिस्टों से मिला। मैंने उनके परिश्रम की जितनी सराहना की जा सकती थी, की। देखा कि पूरा माहौल बदल गया। सिर्फ वैज्ञानिकों का नहीं, पूरे हिंदुस्तान का माहौल बदल गया। हम विफलताओं में भी सफलताओं की शिक्षा पा सकते हैं। हर प्रयास में हम उत्साह भर सकते हैं। किसी चीज में विफल हुए हैं तो इसका मतलब यह है कि अब आप सफलता की ओर चल पड़े हैं।’’
‘मार्क्स का चक्कर छोड़ें’
मोदी ने कहा, ‘‘आज जाने-अनजाने सफलता-विफलताओं का पैमाना परीक्षाओं के मार्क्स बन गए है। इस वजह से छात्र सोचते हैं, कि बाकी सब पीछे छोड़े पहले मार्क्स ले आऊं। माता-पिता भी कहते हैं पहले 10वीं निकाल लो, फिर 12वीं के लिए मेहनत के लिए कहेंगे। इसके बाद एंट्रेस एग्जाम निकालने के लिए कहेंगे। वे बच्चे को सिर्फ मोटिवेट करना चाहते हैं। लेकिन अब दुनिया बदल गई है। कोई एग्जामिनेशन जिंदगी नहीं है। सिर्फ एक पड़ाव है। हम इन्हें अपने पूरे जीवन का एक पड़ाव मानना चाहिए, न कि पूरी जिंदगी। मैं पेरेंट्स से कहना चाहता हूं कि बच्चों को यह मत कहें कि ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया लुट गई। बच्चे किसी भी क्षेत्र में जा सकते हैं। हो सकता है स्कूली शिक्षा कम रही हो, लेकिन वे चीजें सीखकर जीवन को बढ़िया बना देता है। परीक्षा का महात्म्य है, लेकिन परीक्षा ही जिंदगी है, इस सोच से बाहर आना चाहिए।’’