डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे, आर्यभट्ट के बाद दूसरे गणितज्ञ कहे जाने वाले, रामानुजन के बाद दूसरे रामानुजन कहे जाने वाले वशिष्ठ बाबू के साथ देश और समाज ने वो किया जो किसी भी सभ्य समाज को शोभा नहीं देता। वशिष्ठ बाबू चाहते तो सारी जिंदगी ऐशोआराम की जीवन गुजार सकते थे। जो शख्स 19 साल की उम्र में अमेरिका के बर्कले से पीएचडी कर गया हो वो तो कुछ भी कर सकता था। बर्कले से ही वशिष्ठ बाबू ने अपने मित्र को आज से पचास साल पहले एक पत्र लिखा था । यह पत्र उनकी हिंदुस्तान और दुनिया के बारे में सोच की बानगी है ।
प्रिय रामप्रसाद, बर्कले
तारीख :-31.10.1968
तुम्हारे पत्र का जवाब देने में बहुत देर की है मैंने, इसके लिए क्षमा करना। तुम्हारी परीक्षा तो बहुत अच्छी गई ही होगी, तब भी लिखना कि परीक्षा कैसी गयी? हिन्दी में पत्र पाकर प्रसन्नता हुई, कोई असुविधा नहीं हुई। अब मेरा यहां पर चौथा साल है। मेरी प्रगति अच्छी रही है। वहां और यहां के जनसाधारण के जीवन में काफी फर्क है। लेकिन असली फर्क पैसे का है और पैसे के प्रति विचार का है।
यहां के मध्यवर्गीय परिवार धनी हैं। जरूरत की चीजें हैं उनके पास और अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देते हैं। संयुक्त परिवार शायद ही हों। भारत के विषय में यहां के अधिकतर लोग कुछ नहीं सोचते। भारत अगर धनी और ताकतवर देश होता तो बहुत सोचते। तब भी कुछ लोग हैं, जो भारत के विषय में बहुत सोचते हैं और अपने देश से सहानुभूति रखते हैं। यहां की आम जनता भारतीय जनता से ज्यादा संपन्न है और कई दृष्टियों से ज्यादा सुखी है। किन्तु कुछ ख्याल से कम सुखी है।
जिस व्यक्ति के हृदय में देशप्रेम जोर नहीं मारता और जिसे यहां की आराम और विलास की वस्तुओं के सेवन का अभ्यास हो जाता है, देश लौटने की नहीं सोचता। कुछ व्यक्ति इस कारण से भी देश नहीं लौटते कि देश में अच्छी संस्थाएं नहीं हैं, जहां पर समझदार व्यक्ति बातचीत करने को मिलेंगे, जहां पर जरूरत से ज्यादा राजनीति नहीं चलती होगी और जहां पर पुस्तकें और जर्नल्स मिलेंगी।
मैं तो देश अवश्य लौटूंगा, लेकिन कुछ काल के बाद। बीच में नेतरहाट स्कूल को कुछ प्रतिभाशाली छात्र उत्पन्न करने चाहिए, जो भविष्य के गणितज्ञ और वैज्ञानिक बन सकें। लौटकर आने पर खोज करने और पढ़ाने-लिखाने का विचार है। मैंने अपनी थिसिस लिख रखी है फंक्शनल एनालिसिस में। अब ज्योमेट्री में भी खोज कर रहा हूं। आने वाले स्प्रिंग में डिग्री मिल जाएगी…
– तुम्हारा वशिष्ठ