Report: Sanjeev Kumar,Senior Journalist
जम्मू कश्मीर में 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनने के लिए वोटिंग होगी। इस चुनाव में पीडीपी, एनसी और कांग्रेस के कई नेताओं ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया है।जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद वहां पहली बार चुनाव होने जा रहा है प्रखंड विकास परिषद (बीडीसी) के चुनाव से पहले वहां दिलचस्प समीकरण बन रहे हैं. कहा जा रहा है कि एनसी और पीडीपी के पंचायत प्रतिनिधि इस चुनाव में बीजेपी का समर्थन करने जा रहे हैं. एनसी, पीडीपी और कांग्रेस के कुछ पंचायत प्रतिनिधियों ने तो बीजेपी में शामिल होने का मन बना लिया है.
अबइस तरह की खबर या समीकरण का क्या मतलब निकाला जाए ? क्या कश्मीर में सबकुछ ठीक है ? क्या जम्मु कश्मीर की जनता और वोटर वहां के वर्तमान हालात से संतुष्ट है ? क्या वहां के सियासी माहौल में बड़ा बदलाव आया है ? अभी तक धारा 370 की तरफदारी करने वाले खुद की सोच को बदल चुके हैं ? इस तरह की ना जाने कितने ही सवालों के सही जबाब का इंतजार हर किसी को है.
तो आईए जबाब भी हमे और आपको ही तलाशना होगा .जम्मु और कश्मीर में हर समय वहां के स्थानीय और भावनात्क मुद्दों पर राजनीति की गयी जो अभी भी ब-दस्तूर जारी है .बात पीडीपी की महबूबा की हो या अब्दुल्ला परिवार की, हर किसी ने कश्मीर को गोद के शिशु की तरह लिया और उसे सदा ही विशेष केयर युनिट में रखकर अपना खेल खेलते रहे. लेकिन जबसे 370 को हटाया गया उसके बाद से नजारा बदला है . सियासी जगत के अमूमन स्थानीय नेता जो कश्मीरीयत के राग के सहारे ही राजनीति कर रहे थे अब वे कैद या नजरबन्द कर लिए गए. ये सारे लोग वर्तमान की व्यवस्था में कुछ कर भी नहीं पा रहे, कश्मीर अमूमन शांत है. ऐसे में स्थानीय दलों के लोग किसप्रकार इस चुनाव में जाएंगे खुद नहीं समझ पा रहे हैं.
दरअसल, स्थानीय पार्टियों के आला नेता, एनसी के फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, अभी बीते 5 अगस्त से ही नजरबंद रहे हैं। ऐसे में इनके पंचायत प्रतिनिधियों को लगता है कि वे अपने शीर्ष नेताओं की अनुपस्थिति में जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव फिर से स्थापित कर पाएंगे। खबर है कि नैशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के साथ-साथ कांग्रेस के भी कुछ पंचायत सदस्यों ने बीजेपी में शामिल होने तक का फैसला कर लिया है ताकि वे बीडीसी के चेयरपर्सन के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को अपना समर्थन दे सके। यही नहीं बीजेपी भी अन्य दलों के प्रभावशाली पंचायत सदस्यों को साथ लाने और बीडीसी चुनाव में अपने प्रत्याशी को समर्थन देने के लिए संपर्क कर रही है।
अब चुनाव तो होने हैं और संवैधानिक प्रक्रिया में जो शामिल होगा वही कुछ हासिल भी कर पाएगा . तो एक मजबूरी है सत्ता में भागीदारी की कोशिश करना . दूसरी ओर अंदरखाने की ये भी खबर है कि अब कश्मीर के लोग और कार्यकर्ता भी हिंसा से ऊब चुके हैं . खासकर 370 हटने के बाद फिज़ंा के नए रंग और धमाकों के बिना शांत कश्मीर अच्छा लग रहा है यहां के लोगो को . ऐसे में स्थानीय लोग भी अब अपना वजूद नए तरीके से बनाना चाहते हैं और यही खास वजह भी है कि अब अपने पुराने मसीहा को छोड़कर भाजपा की ओर तकने लगे हैं .