Report: Sanjeev Kumar, Senior Journalist
लगता है कॉग्रेस के बुरे दिनों का तुरन्त कोई अंत नहीं ,या कहलें कॉग्रेस की डूबती नैया का खेवनहार कोई नहीं. उल्टे कॉग्रेसी नैया को अपने ही लोग डुबोने की कोशिश में लगे हुए हैं.दरअसल इन दिनों कॉग्रेस नेतृत्व विहीन पार्टी लग रही है जिसे कोई एक भी पायलट नहीं चला रहा है . ताजा उदाहरण पार्टी के वरिष्ठ नेता शलमान खुर्शीद के द्वारा पार्टी के बारे में व्यक्त किये गए विचार हैं .
अब खुर्शीद साहेब ने एक पत्थर तो चला दिया पर उसके बाद पार्टी में खलबली सी मच गयी लगती है . पार्टी के एक दूसरे खेमे के नेता राशिद अल्वी ने सलमान के बयान को आड़े हाथो लिया.
पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के बयान पर कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने पलटवार पर किया है. राशिद अल्वी ने कहा कि पार्टी के भीतर ऐसे नेता हैं, जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
दरअसल, कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे पर कहा कि हमें यह जानने की आवश्यकता है कि हम उस स्थिति में क्यों हैं, जिसमें आज हम हैं. दुर्भाग्यवश हमारे पुरजोर आग्रह के बावजूद राहुल गांधी ने पद छोड़ने और अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला किया.
उन्होंने कहा कि हम चाहते थे कि राहुल गांधी पद पर बने रहे लेकिन यह उनका फैसला था और हम इसका सम्मान करते हैं. खुर्शीद ने कहा कि इतिहास में शायद यह एकमात्र मौका है जब एक बड़ी हार के कारण पार्टी को अपने नेता पर विश्वास नहीं खोना पड़ा है. अगर राहुल गांधी रुकते तो हम अपनी हार के कारणों को बेहतर समझ सकते थे.
पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने शीर्ष नेतृत्व को लेकर बड़ा बयान दिया था. सलमान खुर्शीद ने कहा था कि आज कई लोग पार्टी छोड़कर चले गए. इस मौजूदा परिस्थिति की समीक्षा की जानी चाहिए. सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘मुझे बहुत दर्द और चिंता है कि हम आज एक पार्टी के रूप में कहां हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या होगा लेकिन हम पार्टी नहीं छोड़ेंगे. सलमान खुर्शीद ने कहा है कि कांग्रेस से उनका मोहभंग नहीं हुआ है. साथ ही उन्होंने कहा है कि कांग्रेस को हालात की समीक्षा करनी चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे पर खुर्शीद ने कहा कि राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, हम उनके निर्णय का सम्मान करते हैं, लेकिन राहुल पार्टी के अहम नेता हैं और रहेंगे. खुर्शीद ने कहा कि इतिहास में शायद यह एकमात्र मौका है जब एक बड़ी हार के कारण पार्टी को अपने नेता पर विश्वास नहीं खोना पड़ा है. अगर राहुल गांधी रुकते तो हम अपनी हार के कारणों को बेहतर समझ सकते थे.