Report: Sanjeev Kumar, Senior Journalist
‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ जी हां आजकल ऐसा ही हो रहा है ,खासकर बिहार में जहां सूबे के मुखिया सुशासन बाबू कुछ ज्यादा ही भड़क उठे हैं. चारो तरफ से कई तरह के संकटों से नीतीश कुमार धिर से गए हैं. सियासी संकट से उबर तो नहीं पा रहे थे कि हथिया नक्षत्र इनके लिए शनि का साढ़ेसाती बनकर सीधे कपार पर आकर सवार हो गया है .
पचास सालों से ज्यादा का रिकॉर्ड तोड़ा पटना ने
जरा पहले खबर को जान लिजीये,कारण वही है यानि कि पानी की मार,पटना में पानी और पूरे बिहार में बाढ़. पहिलका टर्म में जब राजकाज चल रहा था तब भी बिहार पानी से तबाह हुआ था, हल्ला गुल्ला भी हुआ था. बाढ़ खत्म सरकार का संकट भी खत्म.पर इसबार सीन कुछ और है .चारो तरफ पानी का हाहाकार और उपर से पटना में बाढ़ के बिना ही जलजमाव का हाहाकार .बारिस तो जमकर हुई पर मुम्बई से कम . जी सच कह रहा हूं चाहे तो आंकड़ा देख लें बम्बई से कम ही बरसात बिहार खासकर पटना में हुई. और ताज्जुब इस बात से है कि इतनी बारिस के बाद भी पटना के कई इलाके नहीं डूबे, वहां जलजमाव नहीं हुए. वहां कोई संकट नहीं आया.वजह जानने की कोशिश करेंगे तो समझ में आ जाएगा कि आखिर वजह क्या है कि पटना का कोई इलाका डूब गया और उसी बारिस में किसी इसाके में धूल उड़ती रही. वैसे सीधी सी वजह है पानी की निकासी ,जहां सीवरेज और नाला सुचारु था वहां से पानी निकलता गया और जहां सिस्टम जाम निकला वहां की पटनिया दुनिया डूब गयी.
पटना को मुम्बई और अमरिका बनाया-नीतीश ने
अब पटना अमरिका तो नहीं ,या फिर मुम्बई भी नहीं. पर अगर नीतीश जी कहते हैं तो कुछ देर के लिए उनकी बात मान भी लेते हैं.पर जरा नीतीश कुमार ये बतावें कि पटना को उन्होने कब मुम्बई बना दिया.
चलिए जरा सी एम साहेब के तेवर को देखिये.
पटना में हुए जल जमाव को लेकर पम्पिंग हाउस का निरीक्षण कर एक कार्यक्रम में पहुंचे तो कुछ पत्रकार उनसे चिल्ला-चिल्लाकर सवाल पूछने लगे। नीतीश ने कहा ‘तो भाई आखिर इसका क्या अर्थ होने वाला है? कहां ले जाना चाहते हैं समाज को, किस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं?
नीतीश कुमार ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपको कोई भ्रम है क्या कि आपकी भाषा के प्रयोग करने से कुछ होता है? कुछ नहीं होता है। जनहित में जनता के हित में जो काम किया जाता है हम उसके लिए पूरे तौर पर समर्पित हैं। हम प्रचार के लिए समर्पित नहीं हैं और आज के युग में जो काम नहीं करता है, वो अपना प्रचार खुद करवाता है।’ अमरिका और मुम्बई का नाम पटना से जोड़ दिया और पत्रकारों से कह डाला कि मुम्बई में इससे भी ज्यादा जलजमाव हुआ तो किसी ने हाय तौबा नहीं मचाया,पत्रकारों ने भी पटना की तरह हल्ला नहीं किया .
नसीहत देते गरम हुए नीतीश
तिलमिला जा रहे है नीतीश कुमार आजकल तभी तो गांधी जी की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में भाषाई तौर पर हिंसक भाषा बोल पड़ते हैं . देखिये नीतीश कुमार की भाषा को ,’सभी को अपनी भाषा पर संयम रखना चाहिए। संवेदनशील होना चाहिए। आप किसी के विचार से असहमत हो सकते हैं, किंतु इसके चलते आपस में तनाव नहीं होना चाहिए।’, ‘हर किसी को दूसरे की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। दूसरे के विचारों को सम्मान देना चाहिए। समाज में प्रेम-सद्भाव एवं भाईचारे का माहौल बनाए रखना है। हमने कभी किसी की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। हम जनहित के काम में पूरी निष्ठा से करते हैं। सेवा ही हमारा धर्म है।’ ‘ हम मीडिया वालों से प्रेम करते हैं लेकिन मंगलवार की शाम जब कार्यक्रम में भाग लेने गए तो कुछ मीडिया वाले चिल्लाने लगे और कैसी-कैसी भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने साफ किया कि लोगों को उनकी आलोचना का अधिकार है और वे उसका स्वागत भी करते हैं। नीतीश ने कहा कि ‘मीडिया वाले को हम प्रणाम करते हैं, क्या-क्या लैंग्वेज है भाई.’
अब इसतरह की भाषा को क्या कहेंगे ? कभी कभी इसतरह की खबरों के बाद लगता है कि विरोध की भाषा बोलनेवाले उनके प्रतिद्वन्दी चाहे शिवानंद तिवारी हों या फिर लालू यादव या रघुवंश प्रसाद जो बार बार नीतीश पर प्रहार करते हैं वो सच ही कहते हैं कि नीतीश कुमार अब राजनीति मूल्यों पर करते हैं .
अगांधी नीतीश ?
खैर वजह कुछ भी हो,चाहे इनदिनो अपने ही सत्ता-सहयोगी दल के कुछ उत्प्रेरक बयानबाजों खासकर गिरिराज सिंह और संजय पासवान जैसे लोगों से नीतीश जरूर कुछ विचलित नजर आ रहे हैं. अब नीतीश जी को क्या करना है ये तो उनके सलाहकार प्रशांत और आर सी पी जैसे लोग ही बता पाएंगे लेकिन हमसे तो बस यही कहा जाएगा नीतीश जी जरा गांधी के दर्शन को एकबार फिर से देख लें तो कुछ भला हो जाएगा वरना फिर कोई पत्रकार कह उठेगा ,’नीतीश कुमाार अगांधी हो गए हैं’. बाकी आप तो समझदार हो ही गए हैं.