Report: sanjeev Kumar,Senior Journalist
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से अदालत में टाइटल सूट वापस लेने की भी अर्जी दी जा सकती है। राम जन्म भूमि के लिए एक वर्ग अपनी दावेदारी छोड़ देगा. आपसी समन्वय से मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा .हिन्दू-मुस्लिम के बीच नहीं रहेगा कोई विवाद .
इस तरह की अटकलें अभी खबरों के बाजार और पब्लिक डोमेन में चल रही है,पर हकीकत को समझने और देखने के लिए अभी इंतजार करना होगा. हालांकि इस पर अबतक कुछ भी साफ नहीं हुआ है। कल की सुनवाई के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने साफ कहा था कि इस तरह के किसी प्रस्ताव की उन्हें कोई जानकारी नहीं है।
आज संविधान पीठ के सभी जज एक साथ सात नंबर चैंबर में बैठ रहे हैं. और अबतक की हुई दलीलों पर चर्चा करेंगे। इस बीच मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट पर भी संविधान पीठ चर्चा करेगा। बता दें कि चालिस दिन की लगातार सुनवाई को बाद इस मामले में मध्यस्थता पैनल ने भी एक रिपोर्ट दाखिल की है।
इस रिपोर्ट पूरी जानकारी तो सामने नहीं आई है लेकिन कहा जा रहा है कि फैसले से पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड और हिंदू पक्ष किसी ठोस नतीजे पर पहुंचे हैं। मध्यस्थता पैनल की इस रिपोर्ट पर भी संविधान पीठ के जज आपस में चर्चा करेंगे। जानकारी मिली है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अयोध्या मामले में मीडिएशन पैनल के सामने एक प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के मुताबिक बोर्ड विवादित ज़मीन पर अपना दावा छोड़ने को तैयार है लेकिन इसके लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कुछ शर्तों को सामने रखा है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जो शर्ते रखी हैं उसमें धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 की रिपोर्ट को लागू करने की बात कही गई है। धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 में ये व्यवस्था है कि देशभर में अयोध्या को छोड़कर जो बाकी विवादित धर्म स्थल हैं वहां यथास्थिति बनाई रखी जाएगी,एएसआई के नियंत्रण वाली मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने की मंजूरी दी जाए और तीसरी शर्त है कि अयोध्या में सभी मस्जिदों की मरम्मत कराई जाए और उन मस्जिदों में भी नमाज़ पढ़ने दी जाए जहां अभी नमाज नहीं होती है।
अब देखना य़ह है कि अगर शर्तों के साथ समझौते की बात पर कोर्ट विचार करता है तो प्रस्तावित शर्तों को कोर्ट किस तरह से मनवाता है, क्या दूसरा पक्ष इसपर राजी है, क्या इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं आएगी, क्या कोर्ट ए एस आई को इस तरह का कोई आदेश देगा,क्या पूरा मुस्लिम समुदाय इसे मंजूर करेगा ? सवाल और भी कई हैं जिनका जबाब तलाशना होगा. डगर काफी कठिन है, पर उम्मीदों की भी बात है.
पर फिलहाल तो एक सवाल लाजिमी बनता है कि क्या समझौते पर सहमति और अपनी इच्छाओं की कुर्बानी मुस्लिम पक्ष देगा , और अगर नहीं तो क्या ये एक बड़ी चूक होगी ?