Report: Sanjeev Kumar, Senior Journalist
सचमुच आज रावण जलेगा क्या ?
हम अपनी परम्परा और सभ्यता को खूब संजो कर रखते हैं,परम्परा को निभाना भी खूब जानते हैं .तभी तो हमारे पुरातन काल या कह लें सदियों से चली आ रही प्रथा या कह ले अपने उस कर्तव्य को निभाते आ रहे हैं जिसके लिए बड़े ही ईमानदार और सजग दिखते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं बुराई और असत्य के प्रतीक रावण की. भगवान राम ने कभी किसी एक राऴण का संहार किया था और उसके बाद से हम लगातार रावण का संहार करते जा रहे हैं पर रावण है कि मरता ही नहीं .
युगों से साल दर साल पूरे देश में रावण का पुतला जलाकर दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। अगर रावण सालों पहले मारा गया था तो फिर वो आज भी हमारे बीच जीवित कैसे है? अगर रावण का नाश हो गया था तो वो कौन है, जो इनदिनों हर पल कोई ना कोई विनाशकारी या राक्षसी रूप में अपने मंसूबे को कामयाब कर जाता है ?
वो कौन है जो आए दिन हमारी अबोध बच्चियों को अपना शिकार बनाता है? वो कौन है, जो हमारी बेटियों को दहेज के लिए मार देता है? वो कौन है जो पैसे और पहचान के दम पर किसी और को अपना शिकार बना लेता है ?
एक वो रावण था, जिसने सालों कठिन तपस्या करके ईश्वर से शक्तियां अर्जित कीं और फिर इन शक्तियों के दुरुपयोग से अपने पाप की लंका का निर्माण किया था। और एक आज का रावण है, जो पैसे, पद, वर्दी अथवा ओहदे रूपी शक्ति को अर्जित करके उसके दुरुपयोग से पूरे समाज को ही पाप की लंका में बदल रहा है। क्या ये रावण नहीं है, जो आज भी हमारे ही अंदर हमारे समाज में जिंदा है? हम बाहर उसका पुतला जलाते हैं लेकिन अपने भीतर उसे पोषित करते हैं।
रावण जो कि प्रतीक है बुराई का, अहंकार का, अधर्म का, आज तक जीवित इसलिए है कि हम उसके प्रतीक एक पुतले को जलाते हैं न कि उसे, जबकि अगर हमें रावण का सच में नाश करना है तो हमें उसे ही जलाना होगा, उसके प्रतीक को नहीं।
वो रावण जो हमारे ही अंदर है लालच के रूप में, झूठ बोलने की प्रवृत्ति के रूप में, अहंकार के रूप में, स्वार्थ के रूप में, वासना के रूप में, आलस्य के रूप में, उस शक्ति के रूप में जो आती है पद और पैसे से, ऐसे कितने ही रूप हैं, जिनमें छिपकर रावण हमारे ही भीतर रहता है, हमें उन सभी को जलाना होगा।
रावण को एक दिन तय कर जलावें ये उचित या संभव नहीं इनके लिए एक दिन काफी नहीं है, इन्हें रोज मारना हमें अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। उस रावण को प्रभु श्रीराम ने तीर से मारा था, आज हम सबको राम बनकर उसे संस्कारों से, ज्ञान से और अपनी इच्छाशक्ति से मारना होगा।