Report: Media Sarkar,Bureau
चंद्रमा का मौजूदा दिन (लूनर डे) समाप्त हो गया है इसलिए विक्रम लैंडर से संपर्क की संभावनाएं खत्म हो गई हैं । चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अब छाया आ गई है और अंधेरा गहराने लगा है। इसरो के पूर्व चेयरमैन ने कहा कि विक्रम से संपर्क की अब कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि उसके उपकरणों के चालू रहने के लिए जितनी एनर्जी दी गई थी, उसकी समयसीमा भी खत्म हो चुकी है और वहां उन्हें रीचार्ज करने की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि अभी तक डेटा एनालिसिस से यह बात उभरकर आई है कि लैंडर करीब 200 किमी रफ्तार से चंद्रमा की सतह से टकराकर क्रैश हो गया।
ऑर्बिटर से विक्रम की जो तस्वीरें मिली हैं, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि तेज गति से टकराने के चलते उसके कम से कम दो पांव या तो चंद्रमा की सतह में धंस गए या टकराकर मुड़ गए हैं। वह एक करवट से गिरा है लेकिन तस्वीर में वह टूटकर बिखरा नहीं दिख रहा है। फिलहाल यह माना जा रहा है कि लैंडर के ऑटोमैटिक लैंडिंग प्रोग्राम में गलती की वजह से यह हादसा हुआ।
आइसोटोप हीटर होता तो बचाए जा सकते थे पेलोड
इस वक्त चांद पर इस हद तक अंधेरा होता कि वहां पर कोई भी चीज देखना नामुमकिन हो जाता है. ऐसे में इसरो ही नहीं दुनिया की कोई भी स्पेस एजेंसी (Space Agency) विक्रम लैंडर की तस्वीर नहीं ले सकेगी. चांद पर ये अंधेरा अगले 14 दिन तक बना रहेगा. ऐसे में अगले 14 दिन तक लैंडर विक्रम को बिना किसी सहारे के अकेले चांद पर रहना होगा. ऐसे में उसके सलामत रहने की उम्मीद न के बराबर हो जाएगी.
इसरो के अधिकारी ने बताया कि अब दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 183 डिग्री हो जाएगा, इतने कम तापमान में लैंडर व रोवर के पेलोड निष्क्रिय हो जाएंगे। यदि लैंडर में आइसोटोप हीटर लगा होता तो उसके पेलोड रेडियोएक्टिव रेडिएशन से बचाए जा सकते थे। इस दौरान बैटरी बंद रखते और अगले लूनर डे पर चालू कर देते। इसके बावजूद अगले लूनर डे (7-20 अक्टूबर) के दौरान 14 अक्टूबर को एक बार फिर लैंडर से संपर्क की कोशिश की जाएगी.
इसरो अब 14 अक्टूबर को अगले लूनर डे की रोशनी में फिर विक्रम को ढूंढ़ेगा
गौरतलब है कि 7 सितंबर को आधी रात को 1:50 बजे के करीब विक्रम लैंडर का चांद के साउथ पोल पर पहुंचने से पहले संपर्क टूट गया था. जब ये घटना हुई तब चांद पर सूरज की रोशनी पड़नी शुरू हुई थी. यहां आपको बता दें कि चांद पर एक दिन यानी सूरज की रोशनी वाला पूरा वक्त पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. ऐसे में 7 तारीख के बाद से 14 दिन बाद यानी 20-21 सितंबर को चांद पर काली रात शुरू हो गई है.