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पैसे तो सभी कमा लेते हैं पर पैसे को कमाने के बाद उसका सदुपयोग होता है या फिर दुरूपयोग वो यह तय करता है कि पैसा कमाने के उद्धेश्य नेक हैं या नहीं . बॉलीवुड की दुनियां में पैसे और ग्लैमर की चकाचौंध है पर यहां कुछ इंसान भी बसते हैं.ऐसा ही एक मिसाल कायम करने जा रही है ‘द स्काई इज पिंक’ .
बाॅलीवुड फिल्म ‘द स्काई इज पिंक’ 11 अक्टूबर काे देशभर के सिनेमाघराें में रिलीज हाेगी। इससे पहले मुंबई में 10 अक्टूबर काे इसका प्रीमियर शाे हाेगा। इस शाे की कमाई के सारे पैसे ग्रामीण इलाकाें में बाल कुपाेषण पर काम कर रही चक्रधरपुर की संस्था ‘एकजुट’ काे दान में दी जाएगी। यह संस्था काेल्हान के आदिवासी बच्चाें के स्वास्थ्य और विकास पर यह राशि खर्च करेगी।
प्रीमियर शाे के लिए वेबसाइट https://saltscout.com पर 100 रुपए का कूपन काटा जा रहा है। ऑनलाइन कूपन कटाने के बाद लकी ड्राॅ हाेगा। इसमें जीतने वाले फिल्म के मुख्य कलाकार अभिनेत्री प्रियंका चाेपड़ा और अभिनेता फरहान अख्तर से प्रीमियर शाे पर मुलाकात कर सकेंगे। इसमें भाग लेने के लिए प्रियंका चाेपड़ा भी भारत अा रही हैं। ‘एकजुट’ संस्था काेल्हान के कई जिलाें के साथ ओडिशा और छत्तीसगढ़ में बाल कुपाेषण पर काम कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संस्था के माॅड्यूल काे अपनाया है।
मोटिवेशनल स्पीकर आयशा चौधरी की जिंदगी पर आधारित है ये फिल्म
यह फिल्म माेटिवेशनल स्पीकर आयशा चाैधरी की जिंदगी पर आधारित है। अायशा पल्मनरी फाइब्राेसिस नामक बीमारी से पीड़ित थी और इस बीमारी के कारण 18 साल की उम्र में माैत हाे गई थी। जन्म के समय से ही आयशा काे इम्यून डेफिसिएंसी डिसोर्डर था। फिल्म में प्रियंका चाेपड़ा आयशा की मां अदिति चाैधरी और फरहान अख्तर पिता नरेन चाैधरी का किरदार निभा रहे हैं। चूंकि एकजुट संस्था ऐसी ही बीमारियाें से बचाव के लिए काम कर रही हैं। इसलिए प्रीमियर शाे के पैसे आदिवासी बच्चाें के नाम समर्पित किया जा रहा है। इस फिल्म का पहला गाना दिल ही ताे है…काे यू-ट्यूब पर 15 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है। दिल्ली की गलियाें में शूट किए गए इस गाने काे अरिजीत सिंह और अंतरा मित्रा ने आवाज दी है।
पल्मनरी फाइब्रोसिस एक गम्भीर बीमारी है
पल्मनरी फाइब्रोसिस फेफड़ों की एक बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है। इसमें फेफड़ाें में धब्बे बन जाते हैं, जाे लगातार बढ़ते जाते हैं। इससे पीड़ित मरीजाें काे सांस लेना मुश्किल हाे जाता है। इन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है। दुनियाभर में हर साल पांच लाख से अधिक लाेग इस बीमारी से पीड़ित हाेते हैं।