Report-Sanjeev Kumar, Senior Journalist
बिहार की सियासत का रंग भी निराला है, ऊंट कब किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल है. सत्ता की ललक में समीकरण कब कौन सा रूप ले ले कहना कठिन है . बिहार के सियासी इतिहास को देखें तो समय समय पर बहुत सारी अनहोनियां देखी गयी. जंगल और मंगल राज को कभी गले लगाते देखा तो कभी एक दूसरे के पीठ पर खंजर घोंपते भी दिखे. अलग अलग परिस्थितियों में इसका आकलन भी सियासी विश्लेषकों ने किया और उसके अलग अलग मायने भी बताए. इन दिनो सियासी दुनिया से अलग थलग पड़े शिवानंद तिवारी जो कभी नीतीश कुमार के खास हुआ करते थे वो नीतीश कुमार के सियासी हैसियत की परिभाषा समय समय पर देेते रहते हैं. हालाकि इन दिनो शिवानंद राजद खेमे में हैं इसलिए कहा बी जा सकता है कि ये लाजिमी है कि वो राजद की पैरवी और नीतीश की खिलाफत की भाषा ही बोलेंगे.
आइए जरा देखें अभी शिवानंद क्या कहते हैं-
“लगता है नीतीश जी अंदर से हिल गए हैं. आज अपनी पार्टी की बैठक में उनका भाषण तो यही बता रहा है. परिष्कृत भाषा और शैली में शालीनता नीतीश कुमार की पूँजी रही है. वह पूँजी चुकती दिखाई दे रही है. आज के उनके भाषण में धमकी का स्वर सुनाई दे रहा था. निशाने पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी तो थे ही. अपने गठबंधन के उनलोगों को भी नीतीश जी ने अपने निशाने पर लिया जो उनके नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं. तेजस्वी के आरोपों का जवाब उन्होंने नहीं दिया. बल्कि उपहास उड़ाते हुए कहा कि उनको राजनीति का ककहरा तक मालूम नहीं है. उन्होंने दावा किया कि विधान सभा चुनाव के बाद तेजस्वी का अता-पता नहीं चलेगा. इसको हम तेजस्वी की जीत के रूप में देखते हैं. लगता है तेजस्वी को सुशील मोदी और संजय सिंह की रोज़ाना गाली से नीतीश जी संतुष्ट नहीं हैं. इसलिए उन्होंने कमान अब अपने हाथ में ले लिया है.
लेकिन समय अब बदल गया है. जवाब मिलने में विलंब नहीं हुआ. दोनों ओर से जवाब मिला. तेजस्वी ने तो जवाब दिया ही. गिरिराज भी तैयार ही बैठे थे. सबसे आश्चर्य तो यह है कि नीतीश जी ने अपने के सी त्यागी को भी लपेटे में ले लिया.
नीतीश जी ने अपनी राजनीति की एक नैतिक आभा बनाई थी. अपने सीमित जनाधार के साथ राजनीति की उनकी यह नैतिक आभा ही उनकी राजनीति का सबल आधार था. नीतीश जी की राष्ट्रीय छवि इसी वजह से बनी थी. लेकिन महागठबंधन से पाला बदल ने उनके उस नैतिक आभा को धुलधूसरित कर दिया. सरकार में भ्रष्टाचार की कहानियाँ हर पत्रकार के पास है. जनता बेदम है. सरकारी दफ़्तरों में सुनवाई नहीं है. राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नीतीश जी सत्ता सभांलते ही दलाल घोषित कर दिया था. किसी की मत सुनिए का संदेश उन्होंने सरकारी तंत्र को दे दिया था. कुल मिलाकर नीतीश जी की राजनीति के समापन की घड़ी दिखाई देने लगी है. लगता है नीतीश जी भी उसको देख रहे है इसीलिए उनका आत्मनियंत्रण हिल गया लगता है.”
साभार-
-शिवानन्द