हमारी न्याय व्यवस्था को भी आत्ममंथन करना होगा .
“झारखंड की राजधानी रांची की एक अदालत ने फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाली एक छात्रा को सशर्त जमानत दी। अदालत ने छात्रा को निर्देश दिया कि उसे विभिन्न संस्थाओं को मुसलमानों की पवित्र पुस्तक कुरान की 5 प्रतियां बांटे। इससे पहले आपत्तिजनक पोस्ट मामले में छात्रा के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
दुनियाभर की अदालतों के आश्चर्यचकित कर देने वाले फैसले और उनमें आने वाले अजीबोगरीब मामलेे अक्सर लोगों को हैरान करते हैं। हमारे यहां भी समय-समय पर विभिन्न राज्यों की अदालतों ने भी इस तरह के फैसले दिए हैं।
सबको हैरान कर देने वाला एक फैसला लुधियाना की एक जिला अदालत ने रेलवे द्वारा एक किसान संपूर्ण सिंह को उसकी जमीन का मुआवजा न देने पर लुधियाना रेलवे स्टेशन और स्वर्ण शताब्दी ट्रेन का मालिक बना दिया और उक्त दोनों की कुर्की के आदेश दे दिये। ये फैसला लुधियाना के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज जसपाल वर्मा ने सुनाया। आदेश के बाद किसान स्वर्ण शताब्दी पर कब्जा हासिल करने के लिए वकील के साथ लुधियाना स्टेशन भी पुहंच गया।
9 अप्रैल 2015- जमीन अधिग्रहण का मुआवजा दो किसानों को न देने पर हिमाचल प्रदेश की ऊना जिला अदालत के सेशन जज मुकेश बंसल ने 9 अप्रैल को एक आदेश जारी किया था कि दिल्ली-ऊना जनशताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन को जब्त कर लिया जाए और अगर 16 अप्रैल तक रेलवे किसानों को मुआवजा नहीं देता है तो दोनों किसानों को उक्त ट्रेन का कानूनी तौर पर मालिक बना दिया जाए।
2015, खंडवा की लोक अदालत ने पति, पत्नी और वो के बीच का विवाद सुलझाते हुए यह अजब फैसला सुनाया था। जिसमें पति के बंटवारे के साथ-साथ मकान और संपत्ति का भी बंटवारा किया गया था। शांति नाम की महिला ने पति बसंत माहूलाल के खिलाफ लोक अदालत में शिकायत की थी कि वह लगभग 10 साल से उसके अलावा एक दूसरी महिला रामकुमारी से लिव-इन रिलेशनशिप में है। लोक अदालत में मामला स्पेशल जज गंगाचरण दुबे के पास पहुंचा। पहले बसंत को दूसरी महिला से अलग रहने के लिए कहा तो उसने इंकार कर दिया। उसने कहा कि अगर अब वह दूसरी महिला को छोड़ता है तो वह भी केस कर देगी। अदालत ने तीनों के बीच मकान और संपत्ति के बंटवारा करते हुए साथ रहने का फैसला सुनाया।
एक और मामला,दिल्ली के एक व्यक्ति ने तलाक के लिए याचिका दायर की। उसका कहना था कि उसके मोटापे की वजह से पत्नी अपमानित करती है। वह उसे अक्सर घर में या सार्वजनिक तौर पर मोटा गैंडा एवं हाथी का बच्चा कहकर पुकारती है। कई बार समझाने पर भी नहीं मानती। ऐसे हालात में वह अपना पूरा जीवन उसके साथ नहीं बिता सकता। इसलिए उसे अपनी पत्नी से तलाक चाहिए। हाईकोर्ट ने उक्त व्यक्ति के पक्ष में तलाक का फैसला सुनाया था।
जुलाई 2008, गाजियाबाद की एक जिला अदालत ने फैसला सुनाते हुए एक व्यक्ति को उसके पड़ोसी की खिड़की बंद कराने का आर्डर दे दिया था। मगर बाद में भूल सुधार करते हुए याचिका को खारिज गाजियाबाद में रहने वाले मोइम्मद इदरीस ने पड़ोसी इमरान की खिड़की बंद कराने के लिए सिविल केस दायर किया था। उसका कहना था कि घर में बने बाथरूम में छत नहीं है। आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि छत डलवा सके। मकान के सामने इमरान का घर है, उसकी पहली मंजिल के कमरे में एक खिड़की है। जब भी उसकी पत्नी और बहन नहाने जाती हैं तो इमरान अपनी खड़की खोल कर बैठ जाता है और उन्हें देखता है। इसलिए इमरान को आदेश जारी किया जाए कि वह खिड़की बंद रखे। लेकिन बाद में कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
21 जनवरी 2014, इंदौर हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका पर रूपकली को एक सप्ताह में ढूंढ कर कोर्ट में पेश करने का आदेश जारी किया था। रूपकली कोई महिला नहीं बल्कि एक हथिनी का नाम था। उस समय अदालत का यह फैसला काफी चर्चा का विषय बना था। पुलिस ने हथिनी को ढूंढा, मगर वह भारी भरकम होने की वजह से हाईकोर्ट नहीं जा सकी। मामले का निपटारा कर दिया गया।
28 जुलाई 2016- बाम्बे हाईकोर्ट ने एक अजीबोगरीब फैसला सुनाते हुए दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी पुणे के एक व्यक्ति को कहा कि वह पीड़िता के खाते में 10 लाख रुपये जमा करा दे और उसके खिलाफ दुष्कर्म का केस खत्म कर दिया जाएगा। इस आदेश को स्वीकार कर आरोपी ने दुष्कर्म के केस से राहत भी पा ली। कोर्ट के आदेश के अनुसार महिला के खाते में फिक्स डिपाजिट में यह रकम 10 साल के लिए जमा होगी। जिसमें से महिला केवल ब्याज ही निकाल सकेगी। दरअसल पुणे पुलिस ने एक व्यापारी के खिलाफ एक गर्भवती महिला की शिकायत पर मुकदमा दर्ज किया था। महिला का कहना था कि व्यापारी ने उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
अब आईये ताजा मामले को भी देखिये ,न्यायिक मैजिस्ट्रेट, रांची, मनीष सिंह ने सोशल साईट पर आपत्तिजनक पोस्ट के जरिए सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की आरोपी रिचा भारती को जमानत दे दी और कहा कि वह कुरान की एक कॉपी अंजुमन इस्लामिया कमिटी और 4 अन्य कापियां विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों को दान करें। रिचा के वकील राम प्रवेश सिंह ने कहा, ‘अदालत ने सशर्त जमानत दी । इसके तहत रिचा को प्रशासन की मौजूदगी में अंजुमन इस्लामिया को कुरान की एक प्रति सौंपनी होगी और उसकी रशीद लेनी होगी।”
यही वो सुर्खी है इन दिनो चारो तरफ लोगों की जुबान पर है. चर्चा जिन जरुरी मुद्दों पर होनी चाहिये उसपर पर्दा डाल दिया जाता है . सवाल ये है कि जब करोड़ों की संख्या में मुकदमे देशभर की अदालतों में सुनवाई की तारीख का इंतजार कर रहे हैं तो यह कितना न्यायोचित है कि सिर्फ कुछ विशेष मामलों की ही सुनवाई आधी रात को या फिर इस तरह के मामले पर अदालत सुनवाई करने और फैसले देने में लग जाती है ?
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में भारत की सर्वोच्च अदालत में हजारों की संख्या में मुकदमे लंबित हैं जबकि निचली अदालतों में ये संख्या करोड़ों में है। सुप्रीम कोर्ट में 4 मई 2018 तक कुल 54,013 मुकदमे लंबित हैं।
नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के मुताबिक,2018 में निचली अदालतों में कुल 22 लाख 90 हजार 364 मामले 10 वर्ष से भी ज्यादा समय से लंबित हैं। इनमें से 5.97 लाख मामले दीवानी प्रकृति के और तकरीबन 16.92 लाख मामले आपराधिक प्रकृति के मामले हैं। दीवानी मामलों में आम तौर पर व्यक्तियों या फिर संगठनों के बीच निजी विवाद होते हैं। फौजदारी मामलों में ऐसे मामले शामिल होते हैं जिन्हें समाज के लिये हानिकारक माना गया है।
अब सवाल यह उठता है कि अदालतों में बैठे हमारे माननीयों की दृष्ट्रि सबसे पहले इसी तरह के मामलों पर क्यूं जाती है. कहीं अब वो भी सुर्खियों के सम्मोहन में तो नहीं आ गए हैं .कुछ अजूबा फैसला सुनाने और लाइमलाईट में आने की उत्कंठा तो नहीं ये . वरना समाज के कई अहम माामले और उनकी फाईलें वर्षों से धूल खा रही है. इंतजार कर रही है एक अदद तारीख का. माामले फौजदारी के हों या दीवानी सुनवायी नहीं हो पा रही है या तारीखें टल जा रही है. कभी समय की कमी तो कभी जजों की कमी का रोना. एक आरोपी हो सकता है केवल शक और आरोप की वजह से जेल काट रहा हो और आरोप साबित होने के बाद भी बिना सजा के जितने दिन जेल काट चुका होता है फैसले के बाद उससे काफी कम सजा होती या फिर निर्दोष निकलता है . ऐसी अवस्था में दोषी कौन होता है. कोर्ट,जज या भुक्तभोगी. जरा इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचना होगा .
दूसरी अहम बात एक पल के लिए सोच लिया जाए रिचा दोषी है साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए तो सजा दी जाए लेकिन क्या कुरान बांटकर ही. एक पल को इस मामले को यूं लीजिये,रिचा की जगह रजिया होती और उसने यही किय़ा होता तो मजिस्ट्रेट साहब रजिया से गीता बंटवाने का फरमान दे पाते. जनाब अभी तक आपके खिलाफ फतवा जारी हो चुका होता और आप या तो नतमस्तक हो चुके होते या फिर समाज के तानेबाने
पर कई आघात लग हो चुके होते.
खैर मामला कोर्ट का है,मानना जरूरी है पर रिचा ने इनकार भी कर दिया है देखना यह है कि इस तरह की तुष्टिकरण और अखबारों में सुर्खियां बनने के लिए इस तरह के अजीबोगरीब फैसलों के द्वारा न्याय का माथा कितना ऊंचा किया जा सकता है ?