यात्रा वृतांत और मानव कौल के किरदार ……..श्रुति श्रृंखला की प्रस्तुति
एक ओर जहां लोग मानव कौल के अभिनय के कायल हैं वहीं दूसरी तरफ उनकी लेखिनी के भी आजकी युवा पीढ़ी दीवानी हो चली है . ऐसा ही कुछ आज तब देखने को मिला जब वो अपनी यात्रा वृतांत नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में सुना रहे थे. ” मुझे बड़ी आसानी से प्यार हो जाता है ” ऐसा कभी मानव ने किसी साक्षात्कार में कहा था .लेकिन आज सचमुच लगा कि मानव अनायास ही किसी से प्यार कर बैठते हैं या फिर किसी को अपना दिल बिना कोई ताम-झाम के ही दे देते हैं . हालाकि आज कोई साक्षात्कार या प्रेस कांफ्रेंस नहीं था , ना ही किसी ने आज कोई सवाल ही किया था.किसी हसीन चेहरे के सामने इजहार-ए-मुहब्बत का कोई दिलकश और रोमांटिक इकरारनामा भी नहीं था. लेकिन यकीन मानिये आज फिर अपनी उस पुरानी बातों को तब दुहरा दिया जब आज की यात्रा में उनके साथ बड़ी ही संजीदगी से कैथरीन शामिल हो गयी . बहुत दूर ….कितनी दूर ,यह सवाल बार बार कौंधता रहा मानव की जहन में,शायद हमारे मन में भी बार बार यही सवाल उठ रहा था,मानव यात्रा के पहले पड़ाव से आगे निकलकर पेरिस चले गए तो क्या वहां कैथरीन उनके साथ नहीं रही ?
बड़ी ही साफगोई से मानव कौल ने अपनी यात्रा को हमारे सामने रखा पर यह भी सच ही है कि मानव चाहकर भी बाद की यात्रा में शामिल कैथरीन को छुपा नहीं पाए. अपने दोस्त को जर्नी में इंट्री तो करा दिया पर वहां भी कैथरीन मानव के दिलो-दिमाग पर छायी रही .बेहतरीन यात्रा कराई मानव ने लेकिन यह भी सच है कहानी अधूरी या यात्रा अधूरी बताकर मानव ने अपनी लेखनी को मेनूप्लेट नहीं किया पर हमारी सोच तो यही कहती है कि मानव अपने दिल को वाकई मेनूप्लेट नहीं कर पाते हैं और उनकी जीवन-यात्रा में किसी ना किसी कैथरीन की भूमिका अवश्य रहती है .
अच्छी प्रस्तुति थी मानव की जिसे NSD के प्रांगण में खूब तवज्जो मिली ,स्कूल निदेशक सुरेश शर्माजी की पहल अच्छी रही और वरिष्ठ पत्रकार शिव कुमार जी के सवालों पर भी बेबाकी से जबाब देकर मानव कौल ने अपनी स्वाभाविक शैली का परिचय दिया .