घुसपैठियों के मुद्दे पर अपने आलाकमान की खिलाफत ,टी एम सी नेताओं ने दिया इस्तीफ़ा
तृणमूल कांग्रेस की असम के प्रदेश अध्यक्ष द्वीपन पाठक और दो अन्य नेताओं ने एनआरसी के समर्थन में ममता का साथ छोड़ दिया। एन आर सी के अंतिम मसौदे के प्रति पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के रूख के खिलाफ आज कई नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। तृणमूल कांग्रेस के रुख पर असम के कई दलों और संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।इन सबने ममता के कदम को आत्मघाती बताया है और इसपर जमकर विरोध की बात कही है। द्वीपन पाठक का इस्तीफा बंगाली बहुल बराक घाटी में सिलचर हवाई अड्डे पर तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के पहुंचने और पुलिस द्वारा उसे बाहर निकलने से रोके जाने के कुछ ही घंटे के अंदर आया। बनर्जी के निर्देश पर प्रतिनिधिमंडल असम गया था।
इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में एक और गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर ममता बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी। असम में सत्तारुढ़ भाजपा और अन्य दलों ने कहा है कि बराक घाटी में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है।टी एम सी नेताओं के इस कदम से ममता की मुहीम को बड़ा झटका लगा है और आसाम में अभी और ज्यादा विरोध उठने की संभावना बन गयी है। ऐसे में इसका प्रभाव पश्चिम बंगाल की राजनीती पर भी पड़ सकता है।
पूर्व विधायक पाठक ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी के प्रकाशन के बाद उन्होंने पार्टी नेताओं को असम की जमीनी हकीकत से अवगत कराया था और ममता बनर्जी से राज्य में प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने की अपील की थी।2011-2016 तक तृणमूल के विधायक रहे पाठक ने कहा,‘‘पार्टी ने मेरे सुझाव पर ध्यान नहीं दिया और यहां की जमीनी स्थिति समझने से इनकार कर दिया। इस पृष्ठभूमि में मेरे लिए उस पार्टी में बने रहना संभव नहीं है जो असमी भावना को महत्व नहीं देती। उन्होंने कहा, ‘‘असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है।’पार्टी के दो नेताओं – प्रदीप पचानी और दिगंता सैकिया ने भी यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि वे उस पार्टी में नहीं बने रहना चाहते हैं जो मूल असमी लोगों की पहचान से समझौता करना चाहती है। ब्रह्मपुत्र घाटी के चारैदेव और सोनितपुर जिलों में छात्र संगठनों ने बनर्जी के पुतले फूंके। उन्होंने तृणमूल और पार्टी सुप्रीमो बनर्जी को असम के मामले में दखल नहीं देने की चेतावनी दी।
इस बीच बराक घाटी के करीमगंज उत्तरी के विधायक कमलख्या डि पुरकायस्थ ने कहा, ‘‘तृणमूल की एनआरसी के बारे में कई गलत धारणाएं हैं और उन्हें (प्रतिनिधिमंडल को) आने देना चाहिए था ताकि मसौदे के बारे में उनकी गलतफहमियां दूर होती। ’’
इतना तो जरूर है कि जिस विश्वास के साथ ममता ने इस मामले को तूल दिया था अब वही ममता के लिए संकट बनता जा रहा है। धीरे धीरे ममता विरोध की आग पूरे आसाम में फ़ैल सकती है जिसका सीधा असर पश्चिम बंगाल के बंगाली समुदाय पर पड़ सकता है।