कैसे जीतेंगे 2019 की लड़ाई,शह-मात का खेल यू पी से शुरू?
पूरा देश चुनावी मोड़ में आ गया सा लग रहा है। किसका किससे जुड़ाव होगा,कौन मौजूदा जगह से छिटकेगा और किसकी नीति में कौन सा बदलाव आएगा देखने का वक्त आ गया है? हर तरफ अब तोड़ने और जोड़ने की बात ज्यादा हो रही है। ये जोड़ जनता या वोटर के साथ की नहीं बल्कि अपना पार्टनर जो सियासी खेल में साथ दे सके उनकी तलाश जोर-शोर से शुरू है। लिहाजा सूबा कोई हो सारे दल अपना अपना आधार मजबूत करने में लग चुके हैं।
2014 से जिस मिशन की शुरुआत भाजपा ने मोदी और शाह के नेतृत्व में किया है वही करिश्मा भाजपा फिर 2019 में दुहराना चाहेगी। दूसरी तरफ देश में सर्वाधिक समय तक सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस का जो हश्र 2014 और उसके बाद लगातार होता आ रहा है उसे भी अब करो या मरो वाली स्थिति में ला खड़ा किया है। लेकिन इन सबके बीच बाकि सभी क्षेत्रीय दलों की भी अहमियत बरक़रार हैं क्योंकि किंगमेकर बन कर ये काफी मजबूत हो जाते हैं। ऐसे में मेल-मिलाप,तोड़-जोड़ की मुहिम शुरु है। दिल्ली की सत्ता के लिए उत्तरप्रदेश का मैदान काफी अहम् होता है क्योंकि यहाँ से अधिकांश सीटें लेने के बाद कोई भी दल अच्छी स्थिति में आ जाता है। 2014 लोक सभा चुनाव में मोदी और शाह का करिश्मा उत्तरप्रदेश में जमकर चला। अब एकबार फिर समय आया है जब भाजपा वहां पुरानी जीत को दुहराना चाहेगी। भाजपा को इस काम के लिए इसबार कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी,ये अभी से दिख रहा है। नरेंद्र मोदी खुद भी इस चीज को समझ रहे है तभी तो अभी से उत्तरप्रदेश में अपना सबकुछ झोंक देने के मोड में आ गए हैं। मगहर उनकी शुरुआत है और अब ये क्रम लगातार जारी रहेगा क्योंकि मोदी अब महीने उत्तरप्रदेश में रैली करेंगे और जनता के बीच अपनी बात रखेंगे।
ये सब अचानक लिया गया फैसला नहीं है। दरअसल इसकी बुनियाद उपचुनावों में करारी शिकस्त के बाद ही रख दी गयी थी। विपक्षी एकता के आगे खुद को लाचार होते देख मोदी शाह की ये मजबूरी बन गयी कि अभी से किलाबंदी कर वोटों को बिखरने से रोक सकें। खासकर कैराना की हार के बाद इन्हे ये भी डर सताने लगा कि इनका हिंदुत्व ध्रुवीकरण भी सटीक निशाने पर नहीं लग रहा। ऐसे में यदि 2019 में यही स्थिति बनी तो बाजी हार में न बदल जाये।
मगहर से जिस तरह का एलान मोदी ने किया उससे ये बात साफ़ दिख रही थी कि कहीं न कहीं मोदी के मन में एक खौफ जरूर है,और वो खौफ है अपने मुख्य विपक्षी पार्टियों सपा,बसपा और कांग्रेस के एक जुट होने का। क्योकि गोरखपुर और फूलपुर सीटों को भी भाजपा नहीं बचा पायी क्योंकि यहाँ भी भाजपा को विपक्षी एकता का सामना करना पड़ा। इस लिए भाजपा और मोदी की ये जरूरत आन पड़ी है कि सबपर करारा प्रहार किया जाये। इसलिए अभी मगहर में हुई सभा में मोदी ने तीनो मुख्य विरोधियों को निशाने पर लिया। विपक्षियों की गोलबंदी पर ही सवाल उठाते हुए जनता को समझाना चाहा कि ये एकता मौका परस्ती है। आपातकालवाली पार्टी के पास सभी जा रहे दल अपनी नैतिकता गवाँ चुके हैं। अपनी सरकार के द्वारा किये गए विकास पर फोकस होकर पिछले साठ साल की सरकारों को कोसा। मोदी ने सपा और बसपा को ढोंगी और झूठा कहा।
ये तो महज बानगी थी अब आनेवाले समय में मोदी और शाह के साथ भाजपा की गर्जना और जोर-शोर से उत्तर प्रदेश में दिखेगी। अब अगली रैली मुलायम के गढ़ आजमगढ़ में होनी है और उसके बाद भी हर माह कम से कम एक रैली जरूर होगी। इन रैलियों में मोदी का निशाना यही सारा विपक्ष होगा जो उत्तरप्रदेश में एकजुट होने की कवायद में लगे हैं। 2019 से पहले भाजपा के लिए उत्तरप्रदेश में अयोध्या एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा है जिसको भाजपा हर चुनाव में चुनावी मुद्दा बनाता रहा है। ऐसे में न्यायालय में लंबित फैसले का इंतज़ार कर रहा राम मंदिर भाजपा के लिए संजीवनी या रामबाण साबित हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब इसपर समय पर फैसला आ जाये। भाजपा की कोशिश होगी कि मामले की सुनवायी जल्द ख़त्म हो और फैसला रामलला मंदिर निर्माण के पक्ष में हो। पर अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो फिर भाजपा के लिए राह मुश्किल है।
यूँ तो भाजपा ने कई इस्लामिक संगठनो को अपने और राम मंदिर निर्माण के पक्ष में कर लिया है लेकिन इतने से बात नहीं बनने वाली,क्योंकि विरोध में एक बड़ा वर्ग मोदी और हिंदुत्व की खिलाफत भी कर रहा है। दूसरा खास मुद्दा जुड़ा है इस्लामी महिलाओं के साथ। तीन तलाक के मामले में मोदी ने मुस्लिम महिलाओं का खूब समर्थन पाया और अब एक और मुद्दे,हलाला पर आवाज उठाकर मोदी मुस्लिमो की आधी दुनिया को अपने पक्ष में करने की सोच चुके हैं। अगर हलाला पर सरकार कोई कानून लाती है तो फिर मोदी को बोलने का मौका मिल जाएगा और अगर विपक्ष खिलाफत करता है तो फिर मुस्लिम महिलाओं की नजर में विश्वसनीय नहीं रह जायेंगे,और मोदी और भाजपा की यही चाहत है कि इस्लाम का वोट बटे और हिंदुत्व का ध्रुवीकरण हो.
एक चुनौती मोदी और भाजपा के लिए प्रदेश में और है,वो है अपने सहयोगियों को साधकर रखने और आनेवाले दिनों में छिटकने से बचाने की। अनुप्रिया का अपना दल और राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अपनी ऑंखें तिरछी कर तेवर भी दिखाने लगती है। ऐसे में उत्तरप्रदेश में जहाँ भाजपा को पूरे विपक्ष से लड़ना है तो दूसरी तरफ अपने घर की दीवारों की ईंट भी बचाकर रखनी होगी।
अब देखना है कि हर माह अपनी रैली में मोदी उत्तरप्रदेश की जनता को क्या नया सुनाते हैं? वरना हर बार एक ही रटी-रटाई भाषण को जनता समझ चुकी है और अब चार साल बीत जाने के बाद भी जनता के हित में कोई बड़ा फैसला और काम नहीं किया गया तो शायद मंदिर-मस्जिद,काला-धन और विकास के जुमलों पर अब मोटा वोट पाना मुमकिन नहीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन ने प्रदेश में 80 में से 73 लोकसभा सीट जीती थी। सपा को पांच तथा कांग्रेस ने दो सीट जीती थी। बसपा व रालोद का खाता भी नहीं खुला था। लोकसभा उप चुनाव में भाजपा ने तीन सीट गंवा दी है। प्रदेश में अब गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच में भाजपा भी सतर्क होने लगी है। 2019 में मोदी को मात देने के लिए विपक्ष एकजुट होकर मैदान में उतरता है,तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।।