बीजिंग। डोकलाम में चीन को आंख दिखाने वाला भारत क्या चीन के दबाव में आ रहा है? ये सवाल इसलिए क्योंकि भारत की सरकारी विमानन कंपनी एयरइंडिया पर चीन का दबदबा दिखने लगा है। चीन के दवाब में आकर एयरइंडिया भी उन विमान कंपनियों में में शामिल हो गई हैं, जिन्होंने ताइवान का नाम बदलकर ‘चाइनीज ताइपे’ कर दिया है। चीन दुनिया में सबसे ताकतवर देश बनता जा रहा है , भारत सहित और भी देश चीन से अपने संबंध सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं । चीन के दबाव में आकर सिंगापुर एयर लांइस , जापान एयरलांइस और एयर कनाडा समेत कई विमानन कंपनियों ने अपनी वेबसाइट पर ताइवान का नाम बदल दिया । इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक 25 अप्रैल 2018 को एयर इंडिया के शंघाई ऑफिस में चीनी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण की ओर से पत्र भेजा गया था जिसमें उन्होंने 25 जुलाई तक सभी एयरलाइंस को ताइवान का नाम बदलकर चीनी ताइपे करने को कहा था। एयर इंडिया ने पहले इंतजार किया तो चीन ने तीखी प्रतिक्रिया शुरू कर दी। चीन ने अपनी नाराजगी जताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी और साइबर स्पेस प्रशासन को आदेश दिया कि एयरलाइंस वेबसाइट से एयर इंडिया की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया जाए।
क्या है पूरा मामला
हांगकांग, मकाऊ, तिब्बत, शिनजियांग की तरह ताइवान भी चीन की सबसे बड़ी दुखती रग है। इन सभी जगहों पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ बगावत के सुर उभरते रहते हैं। ताइवान खुद को अलग राष्ट्र मानता है, लेकिन चीन उसे अपना हिस्सा बताता है। चीन की इस जबरदस्ती को अब एयरइंडिया का साथ मिल गया है। हालांकि एयर इंडिया के इस कदम से उस पर सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल एयर इंडिया के जरिए भारत सरकार से हैं।
चीन की नाराजगी का असर
चीन ने अपनी नाराजगी जताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी और साइबर स्पेस प्रशासन को निर्देश जारी कर एयरइंडिया को ब्लॉक करने कर दिया जाए। चीन की सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादतीय में ने भारत को चेतावनी दी है कि चीन पर अपने विचार नहीं रखें और न ही किसी भी नियम को तोड़े ,लोंग झींगचुन ने कहा है कि अगर कोई भी कंपनियां चीन में बिजनेस करना चाहती है तो उन्हें यहाॅ का कानून का पालन करना होगा। चीन के साथ व्यापार करने के लिए सभी देशों को उसके नियमों को मानना ही होगा और ये सभी देशों पर लागू होगा । चीन ताइवान को स्वतंत्र देश नहीं मानकर अपना प्रांत मानता है , उसके अनुसार जब तक सीमावर्ती इलाकों में अपनी मान्यता नहीं मिल जाती तब तक भारत को चीन के हिसाब से चलना होगा । ऐसा अनुमान है कि चीन के द्वारा उठाये गये कदम से भारतीय कपंनियों पर राजनीतिक दबाव भी पड सकता है ।
एयर इंडिया के फैसले से उठे सवाल
पहला स वाल ये कि क्या दबाव में आ गई भारत सरकार? एयर इंडिया के इस कदम ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या केंद्र सरकार दवाब में आ गई है। मोदी सरकार जो अब तक चीन सके दो टुक बातचीत कर रही थी क्या वो अब चीनी प्रेशर में आ गई है। क्या एअयरइंडिया ने ये फैसला भारतीय विदेश मंत्रालय से बातचीत के बाद लिया है।
दूसरा सवाल
ताइवान का नाम बदलकर चीनी ताइपे करने के फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार से पूछे बिना एयर इंडिया की ओर से ये कदम उठाया गया? अगर हां तो क्या भारत-चीन के बीच कोई नई रणनीतिक सहमति बनी है और अगर नहीं तो तीसरा सवाल सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार ने चीन के दबाव में एयर इंडिया को नाम बदलने पर मजबूर किया?
क्या है पूरा विवाद?
चीन और ताइवान के बीच विवाद 1642 से चलता आ रहा है। चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को अलग राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर रहा है। 1642 में जब यहां पर नीदरलैंड्स का राज था। इसके बाद चीन के चिंग राजवंश ने 1895 तक ताइवान पर राज किया। समय ने एक बार फिर करवट ली और ताइवान जापान के हाथों में चला गया। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ताइवान को चीन के मिलिट्री कमांडर चैंग काई के हवाले कर दिया गया। लेकिन चैंग काई की सेना को कम्युनिस्ट सेना से मिली हार के बाद चैंग और उनके सहयोगी चीन से भागकर ताइवान चले आए और वहीं ताइवान की बागडोर संभाली। यहीं से चीन और ताइवान की टकरार शुरू हो गई। 1980 में चीन ने गेम खेलते हुए ताइवान के सामने वन कंट्री टू सिस्टम का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत ताइवान को चीन का हिस्सा घोषित करना पड़ा, बदले में चीन ताइवान को स्वायत्ता प्रदान कर देगा, लेकिन ताइवान ने इसे ठुकरा दिया था। तब से ये विवाद चलता आ रहा है।
एयर इंडिया का हाल
सरकारी विमान कंप नी एय र इंडिया आर्थिक तंगी से जूझ रही है। एयरइंडिया ल गातार घाटे में चल रही है। सरकार ने एयरइंडिया को निजी हाथों में सौंपने तक की कोशिश की, लेकिन सरकार को इसमें भी कामयाबी नहीं मिल रही है। सरकार एयरइंडिया का 51 फीसदी हिस्सा निजी कंपनियों को बेचना चाहती है, ताकि एयरइंडिया की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके, लेकिन काफी कोशिशो ंके बावजूद भी सरकार को इसमें अब तक कामियाबी नहीं मिली है। न तो किसी विदेशी कंपनी ने इसमें रुचि दिखाई है और न किसी किसी देशी कंपनी ने। ऐसे में सरकार के सामने एयरइंडिया को घाटे से उबारने की बड़ी च ुनौती है।