उम्मीद और मेहनत बेकार नहीं जाएगी,हिम्मत है तो वज़ूद है।
25 जुलाई को पकिस्तान में होनेवाले आम चुनाव में इस बार एक तीसरा पक्ष भी अपना दमखम दिखाने को तैयार है और कहीं भी दूसरे नेताओं या प्रत्याशियों से कम नहीं दिख रही इनकी तैयारी और प्रचार-अभियान। यूँ तो पाक चुनाव में इस बार एक नया पक्ष आतंकियों की भागीदारी भी है लेकिन ट्रांसजेंडरों की भागीदारी ने यहाँ के चुनाव को कुछ जगहों पर दिलचस्प और कांटे की टक्कर वाला चुनाव बना डाला है। अब चुनावी संग्राम में कितनी सफलता इस वर्ग को मिलती है अभी कयास ही लगाए जा सकते है, परन्तु ये तो तय है कि अपने अधिकार और जनता की सेवा में खुद को शामिल करने में कहीं भी ये वर्ग पीछे नहीं रहना चाहता।
नदीम कशिश एक ट्रांसजेंडर हैं। इस्लामाबाद के बड़ी-इमाम इलाके में चुनाव प्रचार करती है। घर-घर जा कर लोगों से मिल रही हैं,”मैं पहली बार चुनाव में खड़ी हुई हूं और आपका वोट मुझे मेरी पहचान दिलाएगा.”मुझे एक मौका दीजिए”, नदीम कशिश इस्लामाबाद में वोटरों से अपील कर रही हैं। उन्हें पता है कि पकिस्तान में चुनाव जीतना आसान नहीं हैं लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह सत्ता के लिए चुनावों में खड़ी नहीं हुई हैं,बल्कि समाज में स्वीकारे जाने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया है,उसे उम्मीद है इससे उसे समाज और अपने देश सहित बाहर भी पहचान मिलेगी। वह लोगों को इश्तिहार बांट रही हैं। पर्चों पर उनकी तस्वीर छपी है।फोन नंबर भी लिख रखा है पर्ची में।साथ ही दो जुमले छपे हैं:”अगली पीढ़ी के लिए पानी बचा कर रखिए” और “मुझे आपके समर्थन की जरूरत है।” सभी वोटर हैं यहाँ उनके,उसमे कोई भी हो सकता है,महिला हों या पुरुष सभी से गुहार लगा रही है,सबको परचा थमा कर कहती है,मुझे सपोर्ट करें।नदीम सबको अपना इश्तिहार बांटती चल रही हैं। 25 जुलाई को पाकिस्तान में चुनाव होने हैं। इमरान खान जैसे बड़े नाम इन चुनावों के साथ जुड़े है। ऐसे में नदीम के लिए हार-जीत मायने नहीं रखती है। वह कहती है,”हमें सरकार की तरफ से समर्थन मिला है और हम इसका फायदा उठाने के लिए पूरा जोर लगा देंगे।”
कुल 13 ट्रांसजेंडर लोगों ने चुनाव में खड़े होने के लिए अपना नाम दिया था।लेकिन फंड ना होने के कारण इनमें से नौ को नामांकन वापस ले लेना पड़ा। अब बस चार ही बचे हैं और ये पाकिस्तान के रूढ़िवादी समाज में बदलाव लाने की कोशिश में लगे हैं।पाकिस्तान में इन्हें ख्वाजासरा कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में देश में ट्रांसजेंडर लोगों को उनके अधिकार मिलने लगे हैं। साल 2009 में पाकिस्तान दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया जो आधिकारिक तौर पर “थर्ड सेक्स” को मान्यता देते हैं और इसी बदलाव का अंजाम है कि आज थर्ड-सेक्स अपनी उम्मीदवारी जता रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकारी फॉर्म पर महिला और पुरुष के आलावा थर्ड सेक्स का विकल्प भी मौजूद होगा और उनके आईकार्ड पर भी ऐसा लिखा होगा।
इसी साल पाकिस्तान में एक ऐतिहास्तिक बिल भी पास हुआ। इसके अनुसार लोग सरकारी दस्तावेजों में खुद तय कर सकते हैं कि वे अपनी लैंगिक पहचान को कैसे निर्धारित करते हैं। वे चाहें तो महिला और पुरुष दोनों को चुन सकते हैं। इसके अलावा इस साल के चुनावों में खड़ा होने के लिए भी लोगों के लिंग को अहमियत नहीं दी जा रही है। मसलन जो पुरुष खुद को महिला के रूप में देखते हैं, उन्हें जबरन पुरुष उम्मीदवार के रूप में नहीं खड़ा होना होगा। पाकिस्तान चुनाव आयोग के प्रवक्ता अल्ताफ अहमद बताते हैं कि वोटरों के मामले में भी ऐसा ही है,”उनके पास विकल्प होगा कि वे महिलाओं वाले बूथ पर अपना वोट देना चाहते हैं या पुरुषों वाले बूथ पर।”उन्हें प्राथमिकता भी दी जाएगी, ताकि उन्हें वोटिंग बूथ के बाहर लंबी लाइनों में ना लगना पड़े।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में कम से कम पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं।लेकिन ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ट्रांस एक्शन के अनुसार यह संख्या बीस लाख तक हो सकती है।नदीम कशिश का कहना है कि वह लोगों को समझाना चाहती हैं कि ट्रांसजेंडर पाकिस्तान के लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा हैं और देश को आगे ले जाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। एक अन्य ट्रांसजेंडर उम्मीदवार लुबना लाल, जो पंजाब से चुनाव में खड़ी हैं,उनका कहना है कि अभी भी मंजिल बहुत दूर है,”हमारे परिवार हमें स्वीकारते नहीं हैं,समाज भी हमें नहीं स्वीकारता,यही सबसे बड़ी दिक्कत है।”
ऐसे में पहली बार अगर ये तादाद बड़ी नहीं है तो कोई फर्क नहीं पड़ता,फर्क इससे पड़ता है कि पहल तो हुयी। इस बार चार ही सही अगली बार और ज्यादा हो ऐसी उम्मीद की जनि चाहिए। और ये मसला सिर्फ चुनावों में भागीदारी का नहीं है बल्कि ऐसी पहल से पाक सहित दुनिया के दूसरे कोनो में भी कई और क्षेत्र में ट्रांसजेंडरों को अपनी भूमिका और भागीदारी निभाने और आजमाने का हौसला मिलेगा।