2019 : किसके लिए चुनौती ?
हालफिलहाल कर्नाटक से जो एक तस्वीर मोदी के विरोध में दिखी उससे 2019 में दिखनेवाली तस्वीर की व्याख्या सियासी पंडित और सियासी दलों ने करना शुरू कर दिया और वर्तमान मोदी के पराजय का अग्रिम विजयोत्सव मनाने को विपक्ष निकल पड़ा है। सीटों के गणित में जोड़-घटाव कर वर्तमान एन डी ए के साथियों को भी घटाना आरम्भ कर दिया। महागठबन्धन की सोच रखनेवाले दलों ने अपने संभावित काल्पनिक संरचना को लेकर कबूतर की तरह आँखें मींचे मुग़ालते में रहने की आदत सी डाल ली है। केवल उत्तरप्रदेश में विपक्षी सियासी एकता के क्षणिक सुन्दर अंजाम से ख्याली पुलाव बनाने में व्यस्त इन सियासतदानो को यही नहीं समझ में आ रहा कि इनकी जो रेसिपी है उसमे कई ऐसे तत्व हैं जो नए उत्पाद की उपयोगिता को ही ख़त्म कर डालेगा। ये अलग बात है कि इस एकता अभियान से भाजपा की नींद उड़ चुकी है और बेचैन है। ऐसे में कभी शिव सेना तो कभी नितीश कुमार की गुलाठी देखते ही भावी महागठबंधन और उत्साहित हो जाता है। इसके आलावा एन डी ए के कई ऐसे और दल बिहार और उत्तर प्रदेश में अपनी आँखे तरेरते रहते हैं। इन हालातों में मोदी के खिलाफ बनने वाले मोर्चे की सफलता की तो गारंटी होनी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता।
देश को एक अदद पी एम की जरूरत होती है परन्तु इस पद के दावेदार कई पैदा हो जाते हैं। एन डी ए में भी स्वाभाविक है इच्छा तो कईयों की होगी परन्तु सर्वमान्य और आधिकारिक दावेदार एक ही है,वो हैं नरेंद्र मोदी। यहाँ ये भी कहना लाजिमी ही होगा कि मोदी की सहयोगी पार्टियां भी नेतृत्व के सवाल पर एक जगह खड़ी दिखती है,परन्तु दूसरे गोलपोस्ट की तरफ देखे तो कई गोलकीपर बॉल लपकने को आतुर दिखते हैं ऐसे में आत्मघाती गोल होने की गारंटी सौ फीसदी है।
उत्तरप्रदेश में सियासी केमिस्ट्री में कोंग्रेसी तत्व को अभी से उपेक्षित रखा जाने लगा है, टीपू और बुआ एक होकर भाजपा के दीवार की ईंटे जरूर निकाल लेंगे परन्तु इसमें राहुल की भूमिका भी रखी जाएगी तो रेखाएं तस्वीर को स्पष्ट कर सकेंगी।अखिलेश पी एम बनने का ख्वाब नहीं देखते लेकिन बुआ की कौन गारंटी लेगा? मुलायम कब कुलाचे मार बैठेंगे,कहा नहीं जा सकता?दूसरी तरफ कांग्रेस के एक नेता ने खुद ही एलान कर दिया है कि राहुल बाबा ही पी एम बनेंगे।
दक्षिण में अम्मा और वामपंथियों के साथ सामंजस्य कैसे बैठेगा इसका फार्मूला किसी के पास नहीं,अगर वामपंथी साथ आते हैं तो वाम की खिलाफत वाली पार्टियां कहाँ जाएँगी? अब सबसे बड़ा सवाल एक दीदी का है जिनका जन्म ही हुआ है कांग्रेस की कोख से । तृणमूल, कांग्रेस की खिलाफत की मिटटी से बनी है और इनकी ममता दीदी भी महागठबंधन के नेता के तौर पर किसे देखना चाहेगी कहना मुश्किल है? दीदी के नाम पर वाम और अम्मा -बुआ का क्या रुख होगा ? अभी ही ममता दीदी ने एक स्वर में विपक्षी एकता के कई भावी घटक दलों पर जोर का वार किया है। कांग्रेस, सी पी एम ,भाजपा और माओवादियों को एक मोर्चे के रूप में ममता दिखाना चाहती है और खुलकर प्रहार करती बताती है कि पश्चिम बंगाल में इन चारो के हाथ तृणमूल के खिलाफ मिले हुए हैं और ये समाज के कलंक है।दूसरी तरफ भाजपा भी हाथ पर हाथ रख बैठी नहीं है।अगर राष्ट्रीय और धार्मिक ध्रुवीकरण का एक्का का कार्ड खेल गए तो क्या होगा ? जिसकी संभावना कश्मीर और अयोध्या से दिख रही है। ऐसे में 2019 की तस्वीर विपक्ष से बनने के बजाय बिगड़ने की सम्भावना ज्यादा दिख रही है।
अब सवाल ये भी उठता है कि कितनी और कैसी योग्यता वाला पी एम उम्मीदवार भरोसे का होगा जो बर्तनो को आपस में टकराने से रोक सकेगा ? क्या राहुल पर भरोसा हो सकता है जिनके नेतृत्व में कांग्रेस ने सर्वाधिक पराजय झेला है? ममता को राहुल बाबा स्वीकारेंगे इसपर अभी ही सवाल उठा दिए गए है। ऐसे में क्या फिर कोई और एक देवगौड़ा, गुजराल या मनमोहन खोजे जा सकते हैं जो आगामी काल्पनिक इंजन के लिए जो सत्ता की गाड़ी को आगे बढ़ा सकें ?