जल्दबाजी और सनसनी पैदा करने की होड़ में इनदिनों मीडिया में आपस में ही जंग छिड़ी हुयी है। इस जंग का परिणाम काफी बुरा होता है। खबर का त्वरित असर तथाकथित खबरनवीस चाहते हैं और सनसनी पैदा करने में सफल भी हो जाते हैं।साथ ही खुद पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर जाते हैं। मिसाल के तौर पर इनदिनों काफी ख़बरें ऐसी ही रही जिसपर मीडिया ने कई तरह के मिर्च -मसालों का भी प्रयोग किया, अपने मकसद में कामयाब भी रहे। मीडिया की भूमिका सनसनी फैलानेवाली ख़बरों में कई बार मिनटों में एंगल भी बदल देनेबाली साबित हुयी। एक ही खबर में कई विरोधाभास उभर आते हैं,पर इस तरह जल्दबाजी और पहले मै की होड़ में पीड़ित एक नहीं कई बन जाते हैं। पुलिसिया अनुसन्धान के पहले मीडिया कुछ ही पलों में पूरे माजरे को समझा कर फैसला सुना डालती है। ये अलग बात है कि पुलिसिया जाँच के लिए भी प्रेशर बनाने का जिम्मा इन्ही मिडिया वालों के हाथ निहित होता है।
पर ये भी सोचना होगा जब इस तरह की खबरों को बुना जाता है तो कहाँ कहाँ अन्याय होता है ? अभी कुछ समय पहले मामला कठुआ दुष्कर्म का हो या उन्नाव का, इसे किस किस रंग की ख़बरों से तैयार कर परोसा गया सबके सामने है। अब जरा एक ताज़ा मामले को लेते हैं जिसने एक पासपोर्ट अधिकारी को भरपूर प्रताड़ित किया और अभी भी उसे इससे निजात नहीं मिली है। वजह स्पष्ट है, मामला सांप्रदायिक रंग से रंगा है जिसे कुछ तथाकथित स्वयंभू समाज सुधारक मीडिया घरानो ने सारा भार अपने कंधे पर ले न्याय दिलाने का झूठा ठेका ले लिया। अंजाम , एक अधकारी बलि का बकरा बन बैठा।
पासपोर्ट मामले में खबरनबीसों ने गर्म लोहा देखा और बस एक चोट दे मारा। तुरंत बात नीचे से ऊपर आला कमान तक पहुंची, ट्वीट और दूसरे सोशल मीडिया के माध्यम से लखनऊ से कई सौ मील दूर तक खबर ने खलबली मचा दी, ऐसे में और एक बड़ा मुद्दा सरकार और विभाग के गले की राजनितिक फांस ना बन जाये इसलिए आनन फानन में बिना हक़ीक़त जाने महकमे ने भी त्वरित कार्रवाई द्विस्तरीय मुहीम के तौर पर कर डाला।पहला तो कुछ ही घंटे में आवेदिका को पासपोर्ट हासिल करा दिया गया, दूसरा आरोपी अधिकारी पर तुरंत करवाई कर दी गयी।
अब आईये,जरा मामले को संक्षेप में जाने। पासपोर्ट बनवाने को इच्छुक दम्पति ने सालो पहले अंतरधर्म विवाह किया,पत्नी ने निकाहनामे में अपना नाम बदल लिया। पासपोर्ट बनाने के नियम के अनुसार कई मुद्दों पर जाँच की जाती है , मसलन आवेदक का कोई और नाम,आवेदक के निवास का प्रमाण, आदि,आदि। आवेदक काफी लम्बे समय से लखनऊ की जगह नॉएडा में रहती है ऐसे में लखनऊ के पते का उपयोग अवैध है। इसके अलावा शादी से पहले का जो नाम महिला का था उसे वह अब प्रयोग में लाना चाहती थी। इनदोनो ही मुद्दों पर आवेदिका गलत थी ,इसलिए अधिकारी ने पूरे फाइल को ही अपने से ऊपर के अधिकारी के पास भेज दिया। इसमें खामखाह अधिकारी पर आरोप लगे कि धर्म बदलने और नाम बदलने को लेकर आवेदिका से चर्चा कर प्रताड़ित किया।अब सवाल उठता है कि एक मुस्लिम से निकाह कर जब नाम बदलने में गुरेज नहीं रहा तो फिर उसी नए नाम से पासपोर्ट बनवाने में क्या डर? अपने धर्म को छोड़ नए धर्म को स्वीकार लेने के बाद किस बात की शंका या कौन सा भय नए नाम से सत्ता रहा था जो अपने पुराने नाम से ही पासपोर्ट बनवाना चाही?
अब मीडिया ने गरम खबर तो बना डाला पर उस उबाल का आगामी समय में क्या असर होता, इसपर कभी अंतरात्मा की आवाज को वो मीडिया सुनेगा क्या? क्या मीडिया उस पीड़ित अधिकारी के दर्द का हिस्सेदार बनेगा ?क्या मीडिया अब जाकर ये पूछने की हिम्मत करेगा कि वो महिला पुराने नाम से पासपोर्ट क्यों बनवाना चाही ? पासपोर्ट महकमा और मंत्रालय से पूछने की हिम्मत करेगा कि आनन फानन बिना जांचे आवेदिका को इतनी जल्दी सारे नियमो को ताक पर रखकर कैसे पासपोर्ट जारी करवा दिया ? और आखिर में एक बड़ा सवाल मीडिया से , इन सारे सवालो को खड़ा करने की जिम्मेवारी लेकर भविष्य में ऐसे कुकृत्य न करने की सीख लेगा क्या ?
जबाब का इंतजार है,हमें,पीड़ित को और खबरों में रूचि रखने वालों को।