नैतिकता ताक पर,गन्दी राजनीती चरम पर
यूँ तो बिहार हर पल किसी न किसी स्तर पर युद्ध का मैदान बना रहता है,और युद्ध में भी कही न कहीं गरिमा और सीमा रेखा निर्धारित रहती है। खासकर अगर लड़ाई सियासत और पावर की हो तो ये और ज्यादा दिलचस्प हो जाता है। इनदिनों बिहार में ये लड़ाई कुछ और भी रंग लेने लगी है। कुर्सी की भूख ने सारी मर्यादाओ को ताक पर रख दिया है। इससे भी अहम् बात तो ये है युद्ध के खिलाडी सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। काफी गरिमा भरे पदों को सँभालने का अनुभव है इन खिलाडियों को।
अबतक विकास,अपराध,भ्रष्टाचार,स्वास्थ्य,शिक्षा जैसे मुद्दों पर होनेवाली लड़ाई इनसे दूर किसी ऐसे मुद्दे पर आकर टिक गयी है जो इनके और सूबे की साख पर बट्टा लगाती है।
आज हम बात कर रहे हैं बिहार के एक पूर्व उप-मुख्यमंत्री और एक वर्तमान उप-मुख्यमंत्री की। एक तरफ लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी तो दूसरी तरफ कई बार इस पद पर काविज होने वाले भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी की। जी इनदिनों इनकी लड़ाई अख़बारों को सुर्खिया खूब देती है। यूँ तो दोनों की लड़ाई काफी पुरानी है लेकिन नितीश कुमार के भाजपा से गले मिलने और तेजस्वी से पद छिन जाने के बाद से यह लड़ाई चरम पर चली गयी है।आरोप-प्रत्यारोप के दौर में दोनों ने एक दूसरे पर काफी संगीन आरोप भी लगाए। कभी तेजस्वी और लालू पर बड़े बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो कभी लालू परिवार पर गुंडागर्दी और तानाशाही के भी आरोप लगे। दूसरी तरफ तेजस्वी समेत मोदी विरोधियों ने भी सुशील मोदी पर आरोप लगाए,मसलन सृजन घोटाला,आदि आदि।
अगर ये लड़ाई यहीं तक रुक जाती और लड़ाई अपनी मर्यादा में रहती तो इसमें किसी की बहन को नहीं लपेटा जाता। लेकिन ऐसा नहीं हो सका,अब लड़ाई बहनो के मुद्दों पर आ पहुंची है। यहाँ तक भी सही है कि रिश्तेदारों को घोटालों-भ्रष्टाचाओं में शामिल किया जाता है परन्तु जब बात सीधे व्यक्तिगत नामो को लेकर होती है तो लगता है ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। अफ़सोस ऐसा ही हो रहा है। तेजस्वी यादव ने सृजन घोटाले पर खूब वार किये और इसमें सुशील मोदी की संलिप्तता की बात कही लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। सुशील मोदी पर आरोप लगाया जा रहा है कि इस सृजन घोटाले में सुशील मोदी की बहन(–मोदी )और भांजी (–मोदी ) भी सहभागी रही है। आये दिन इस तरह के बयानों से मीडिया में सुर्खियां बनती रही,मीडिया ने भी खूब तेल-मसाले की छौंक से पाठकों-दर्शकों को गरम रखा। आखिर जबाब भी तो आना था,आया। पहले तो इसका विरोध सामान्य भाषा में किया गया लेकिन बार बार नाम उछाले जाने के बाद जो जबाब दिया गया, यह देखकर लगा कि दोनों ओर की मानसिकता कमोबेश एक सी है। जब तेजस्वी ने सुशील मोदी पर बहनो का नाम लेकर वार किया तो सुशील मोदी ने जबाब दिया,उनकी सारी चहेरी -ममेरी बहने है,वो सगी नहीं। तेजस्वी की बहनो का नाम लेकर भी कहा गया उनलोगो की तरह सगी बहन नहीं। आखिर इस तरह के सवालों और जबाबों का सामाजिक और राजनितिक जीवन में कहाँ जगह बनती है?
बहरहाल लड़ाई जारी है, मौका है दस्तूर तो नहीं,चुनावी मैदान सजता जा रहा है और निर्णायक लड़ाई में अंजाम आने तक तो ये सिलसिला जारी ही रहना है।