पेटीएम ने देश के बड़े आखबरों में एक विज्ञापन दिया है जिसका टैग लाइन है – “ तुम बदलोगे, एक बदलेगा, सब बदलेंगे, देश बदलेगा!” इस विज्ञापन में बहुत से लोगों को कुछ भी गलत नहीं लगा। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा ने इस विज्ञापन में एक बड़ी चूक को रेखांकित करते हुए एक फेसबूक पोस्ट किया जिसे लोगों ने हाथों- हाथ लिया है। कोई भाषा पर सवाल उठा रहा है, कोई आम आदमी पार्टी पर चुटकी ले रहा है तो कोई हिन्दी के बढ़े हुए कद की बात कर रहा है और कुछ लोग इसे मार्केटिंग स्ट्रेटर्जी बता रहे हैं।
ये रहा पोस्ट :-
और ये पोस्ट पर आए कुछ रोचक कमेंट्स:-
आम आदमी पार्टी पर चुटकियां लिने से नहीं चुके लोग
- Bhavesh Nandan Jha – यहाँ तुम के बदले “आप” लिखने का एक सम्भावित खतरा माना गया होगा..
आप वाले इसे अपने पर लेकर बोल सकते थे, मैं क्यों बदलूँ जी, मैं तो राजनीति और देश बदलने आया हूँ जी, खुद को नहीं.. - Anil Sharma Anjal – नहीं, नहीं अब पैसा ज्यादा आ गया है ना इसलिए “आप” गरूर में बदलकर “तुम” हो गया है..
- Markandey Pandey – सर दो बात है, एक तो आप से आपियापा होने का आभास आता वे लोग कहते मोदी जी हमे बदलना चाहते हैं। दुसरा देश के जनमानस से प्रेम का शब्द तुम हो सकता है।
- Anil Kumar – बेचारे ने आप नहीं लिखा, कहीं लोग आम आदमी पार्टी न समझ बैठते…
‘तुम’ ज्यादा अपना लगता है
- Ddevesh V Mukherjee – आप की अपेक्षा तुम में ज्यादा अपनापन… ज्यादा करीब से जु़ड़े होने का अहसास है… जो विज्ञापन के लिहाज़़ से ज्यादा सटीक है…
- Vaishali Chowdhury तुम अपनापन का एहसास ज़्यादा कराती है ….शायद …ऐसा मुझे लगता है
भाषा का ज्ञान नहीं होगा..
- Mritynjoy Chhandogy – आज के अनुवादकों को न तो भाषिक ज्ञान है और न ही मौलिकता…
- Bipin Badal – वामपंथियों साहित्यकारों के बाद एडवर्टाइजिंग एजेंसियों ने सबसे अधिक हिन्दी से खिलवाड़ किया है…
- Pankaj Kumar – हिंदी की तो जान बूझकर दम घोटी जा रही है…
- प्रशांत सौरभ – ये अंग्रेजी की दुविधा है कि बाप और बेटे दोनों ही यू है…
और अंत में
कभी अपने पिता और अपने बॉस को “तुम” कह कर देखिए,
एक घर से और दूसरा दफ्तर से न निकाल दे तब अपनापन समझ में आएगा। – रवि सिंह
आखिरकार ये चूक है किसकी ?
अब ये चूक किसकी है और कितनी चूक हुई है? ये सवाल उठना लाज़मी है। सवाल पूछे जा रहे हैं और उठाए भी।भाषाई चूक के लिए कुछ लोग गूगल ट्रांस्लेट की गलती बता रहे हैं तो कुछ ट्रांस्लेट का उपयोग करने वालों की। दूसरी चूक आर्थिक है, सरकार ने पैसे बनाने का हाथ आया हुआ बेहतरीन मौका से यूं ही जाने दिया।चूक किसी की भी लेकिन लोगों पर इसका क्या फर्क पड़ता है और क्या फर्क पड़ता भी है, सवाल ये भी उठता है। चूक किसकी है, जानने के लिए हमें अपने भीतर भी झांकना होगा लेकिन कैसे? इसका रास्ता हमें और आप सबको खुद ही तलाशना होगा।
जबरदस्त फायदा कमा रहीं हैं कुछ कंपनियां।
नोटबंदी से आम लोगों को भले परेशानी का सामना करना पड़ रहा हो या बैंकों के पसीने छुट रहे हों लेकिन भुगतान करोबार से जुड़े पेटीएम और फ्री चार्ज जैसी कंपनियां जमकर फायदा काट रहीं हैं। एक अध्ययन का उल्लेख करते हुए एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, ‘नोटबंदी के तात्कालिक परिणाम के रूप में भुगतान करोबार से जुड़े पेटीएम और फ्री चार्ज जैसी संस्थाओं को अप्रत्याशित लाभ होगा, क्योंकि ग्राहकों के हस्तान्तरणों के लिए वस्तु और सेवाओं की खुदरा विक्रेताओं की श्रंखला गैर नकदी तरीके अपनाने को बाध्य होंगी।’ भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक, देश में 67 बैंक अपने 12 करोड़ ग्राहकों को चलित सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं।
कितना बढ़ा पेटीएम का कारोबार?
नोटबंदी के बाद से पेटीएम के एप डाउनलोड, पेमेंट और अकाउंट अपडेट करने वाले लोगों की संख्या में 435 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बड़े नोट बंद होने के घंटे भर के अंदर पेटीएम की डाउनलोड संख्या 200 फीसदी तक बढ़ गई। कंपनी ने करीब 15 करोड़ यूजर्स का आंकड़ा अपने विज्ञापन में प्रकाशित किया है, जो पेटीएम यूज कर रहे हैं। आपको बता दें कि मार्च 2016 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में पेटीएम को 1,534 करोड़ यानी 312 फीसदी का नुकसान हुआ था।
फिर सरकार और आरबीआई पीछे क्यों?
जब प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में आरबीआई या सरकार द्वारा पेटीएम जैसे किसी पेमेंट पोर्टल को शुरू करने की इच्छा जाहीर की थी। फिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां सामने आ गयी कि नोटबंदी जैसे बड़े फैसले से पहले प्रधानमंत्री की इच्छा को पूरा कर के देश के सामने नहीं रखा गया। ये सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या इन कंपनियों से सरकार की कोई सांठ-गांठ तो नहीं? चूक कहां हुई? इसका जवाब सरकार को आज नहीं तो कल देना होगा।
अब बात ये है कि किसके बदलने से देश बदलेगा, ‘आपके’ या ‘तुम्हारे’। ये फैसला आपको करना होगा।