छठ, लोक आस्था और प्रकृति पूजा के उत्कृष्ट महापर्व के रूप में पहचान बना चुका है। यह एक ऐसा प्रकृति पर्व है, जिसकी सारी परंपराएं कुदरत को बचाने-बढ़ाने और उनके प्रति कृतज्ञता जताने का संदेश देती है।
सबसे पहले इस पर्व में साफ-सफाई और पवित्रता पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। घरों से लेकर घाटों तक की सफाई होती है। सूर्य को जल और दूध अर्पण करने के अतिरिक्त ऐसी कोई भी चीज विसर्जित नहीं की जाती, जो नदियों में प्रदूषण बढ़ाए। यह दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें ना सिर्फ उगते हुए बल्कि डूबते सूर्य को भी नमन किया जाता है।
कठिन है छठ व्रत
छठ का व्रत बेहद कठिन है क्योंकि इसमें करीब 36 घंटे का निर्जल उपवास रखना होता है। छठ के दूसरे दिन यानी खरना की शाम को व्रती पूजा कर जो प्रसाद ग्रहण करते हैं उसके बाद वह सीधे छठ के चौथे दिन यानी उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाते पीते हैं। साथ ही इस व्रत में शुद्धता और पवित्रता का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। लिहाजा इस व्रत को करने वाले लोगों को ईश्वर स्वरूप माना जाता है।
छठी माई में आस्था
सनातन धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य की पूजा के साथ हम सूर्य की बहन की भी पूजा करते हैं, और यह व्रत कार्तिक के षष्ठी तिथि को होता है इसी वजह से इसे छठी माई का व्रत कहा जाता है। इतना ही नहीं ऐसा माना जाता है कि सूर्य की बहन ही सूर्य की पहली उपासक थीं। और उन्होंने सूर्य की पूजा के लिए तपस्या के साथ साथ निर्जला व्रत रखा था जिसे बाद में धर्म के अनुयायियों ने अपना लिया। इस व्रत को करने वाले महिलाओं और पुरुषों ने वही नीति नियम अपनाए जो सूर्य की बहन ने अपने भाई सूर्य की उपासना के लिए किये थे।
देश-दुनिया में फैला यह लोक आस्था का पर्व
पहले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित रहने वाला यह व्रत अब देश के कोने कोने में फैल गया है। दिल्ली में युमना के घाटों के अलावा मुंबई के जुहू बीच पर यह पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इतना ही नहीं देश के बाहर जाकर बसने वाले इस इलाके के लोगों ने वहां भी यह पर्व प्रचलित कर दिया है। अब यह पर्व लगभग पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है।