एक जंगल की आग की तरह पूरे देश में खबर फैली, जब हमारी सेना ने एक सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा आतंकी देश पाकिस्तान में खलबली मचा दी । देश का बच्चा बच्चा ख़ुशी से झूम उठा। सच मानिये उन्नीस सौ इकहत्तर के बाद जितने भी लोग जन्मे उन्हें पहली बार ये लगा कि वो खुद सीमा पर दुश्मनो के दांत खट्टे करके आये हों। यकीन मानिये मैं भी इस जीत को अपने लिहाज से सेलिब्रेट करने लगा। लाजिमी है मेरी ही तरह हर देशभक्त का कलेजा हमारी सेना , अधिकारी और दूसरे जांबाजों के लिए फख्र से 56 इंच से भी ज्यादा चौड़ा हो गया। दूसरी तरफ खौफ के साये में पूरा पाकिस्तान और पाक -परस्त नापाक देशों और लोगों का जीना दूभर सा हो गया। उनकी बेचैनी बढ़ गयी , इस डर से कि हिंदुस्तान का अगला कदम क्या होगा ? हम भी बड़े गर्व से अब सोचने लगे, क्या खूब गहरी चोट लगायी पाक को , अब अगली चोट में तो उसे नेस्तनाबूद कर डालेंगे। पर एक बेचेनी इधर भी देखने को मिली, बेचैनी क्रेडिट नहीं मिलने की आशंका पालनेवालों में।
कुछ ही समय में हमारी ख़ुशी पर ग्रहण लगने लगा। इस लिए नहीं कि हमें इसका कुछ बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा बल्कि इसलिए कि हमारी ख़ुशी पर सवाल खड़े करनेवाले कुछ लोग हमारे ही बीच खड़े हो गए। दुनिया ग्लैमर को सलाम करती है ये सब जानते है परंतु दुनिया ये भी देखती है कि ये ग्लैमर में जीनेवाले कुछ लोग मनी और माफिया के डर से या कुछ ज्यादा सुर्खियां बटोरने के चक्कर में अनाप- शनाप बकने लगते हैं। ऐसा ही अभी हमारे आसपास हो रहा है। सबसे पहले मायानगरी के लोगों ने कुछ ऐसे सवाल उठाये जिसकी कोई प्रासंगिकता अभी नहीं थी। एक आतंकी के फांसी के नाम पर सलमान खान के पुराने सवाल को कोई भूल कैसे सकते हैं? ये अलग बात है, उस समय सलीम खान ने माफ़ी मांगकर मामले को रफा – दफा कराया था। पर इस बार तो बाप भी बेटे ने भी बेटे का साथ दिया, अपने अंदाज में । सिनेमा के लिए डायलॉग लिखना, पर्दे पर डायलॉग बोलना और जीवन में उसकी अहमियत समझना बिल्कुल अलग अलग बात है। अब इनको कैसे समझाए कि अतिथि भी मेजबान के घर की आग बुझाने की कोशिश करता है , न कि घर को किसी और के भरोसे छोड़कर भाग जाते है। हालांकि अदनान अब भारतीय हो चुके हैं पर उसकी बातों से कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वो पाकिस्तानी रह चुका है। अभी एक ठंढा नहीं हुआ कि दूसरे का माथा गरम हो गया। एक भारतीय चैनल पर हमारे देश के नामचीन अदाकार ओमपुरी की जुबान पर आये शब्दों की चर्चा भी नहीं कर सकते। अगर हमारी सेना की काबिलियत और सच्चाई पर कोई संदेह करता है तो ये भी सवाल बनता है कि वो खुद कितना बड़ा देशभक्त है। ओमपुरी के अनुसार उनके पिता फौजी थे अब वो क्या सोचते हैं यह कहने की जरुरत नहीं । क्या ऐसा मान लें कि ओमपुरी या तो नशे में थे या फिर बड़े उम्र की बीमारी के शिकार। पर वहीँ हम 75 पार के अन्ना के दिमाग को तो स्वस्थ पाते हैं जो अभी भी सीमा पर जाकर जंग जीत लेने का जज्बा दिखाते हैं। हम वैसे मासूम बच्चों के साहसिक दावो को भी देखते हैं जिनके पांव चलने में तो डगमगाते हैं पर पाक को नाप लेने का दम रखते हैं।
भारत की सामरिक शक्ति पर सवाल दागनेवाले नेताओं ने इतनी लंबी दूरी तय की है भारतीय परिवेश में , खूब सियासत और जंग भी देखी है , जबसे तकनीक का विकास हुआ, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की सुविधा हुयी सेना ने हरेक कार्रवाई को फिल्माया है। दिग्विजय बाबू , चिदंबरम बाबू जरा ये तो बताईये कितनी बार भारतीय सरकार या सेना ने इस तरह के गुप्त मिशनों का फिल्म आपको या लोगों को दिखाया ? क्यों नहीं इसके पहले सेना की कार्रवाईयों को मल्टीप्लेक्स या सिनेमाघरों में दिखाया गया ? , अजी इससे तो वाहवाही ही मिलती , अरे सेना की नहीं , कमसे कम आप जिस दल से आते हैं उसका माइलेज भी बढ़ जाता , आनेवाले चुनाव में आपकी जोरदार जीत तो होती? हमें शर्म आती है इस तरह की बातों को जेहन में लाने से पहले कि हम कैसे शहीदों की मौत पर अविश्वास करे ? क्या उनकी मौत का भी सबूत चाहिए आप सरीखे लोगों को ? अगर सबूत चाहिए तो जरा शहीद विधवा की सूनी मांग को देखकर आईये , देखकर आईये उन बाप के कन्धों को जिसपर नितिन यादव सरीखे बेटे का जनाजा निकला, और क्या क्या कहूँ आपके ईमान को जगाने को, आपके दिल में नया जज्बा भरने को, जिससे जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करना छोड़ दें आपलोग? इससे ज्यादा अगर कुछ कहूंगा तो शायद अपनी हद से बाहर निकल कर ऐसा न कह दूँ कि आप क्या खुद मैं भी शर्मिंदा हो जाऊं। बस अंत में इतना ही कहकर अपनी बात ख़त्म करूँगा, केजरीवाल उड़ते पंजाब में उड़ने का ख्वाब न देखे और संजय निरुपम, “आप देश ही नहीं इस बिहार की मिट्टी से जुड़े होने की वजह से बिहार के कलंक है वरना कहीं और के होते तो इतना ज्यादा अफसोस नहीं होता कि कोई बिहारी कलंक बनकर देश की धरती पर ही धब्बा लगा रहा है। “.