ये ‘दलाल-दलाल’ के मकड़जाल में कैसे फंस गए संजय निरुपम?
पत्रकारिता से सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले, तेजजर्रार, आक्रामक तेवर के धारक संजय निरुपम को चाहने वाले भी आज यह सवाल पूछ रहे हैं। ‘पत्रकार संजय निरुपम’ कभी भी ऐसी टिप्पणी नहीं करते कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने ‘दलाल’ की भूमिका निभाई है। कोई नौसिखिया पत्रकार भी देवेंद्र फडणवीस पर ऐसे आरोप नहीं लगा सकता। लगता है ‘राजनीतिज्ञ संजय निरुपम’ राजनीति की गंदी चापलूस अपरिहार्य चरित्र की मांग के शिकार बन गए। निर्माता-निर्देशक करण जौहर की फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ में पाकिस्तानी कलाकार फवाद खान की मौजूदगी पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे ने उग्र आपत्ति दर्ज की थी। उनकी धमकी से बेचैन करण जौहर ने मुख्यमंत्री फडणवीस से मदद की गुहार की। कानून-व्यवस्था को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी से अवगत मुख्यमंत्री फडणवीस ने हस्तक्षेप किया और करण जौहर के इस आश्वासन के बाद कि अपनी आगामी फिल्मों में वे किसी भी पाकिस्तानी कलाकार को नहीं लेंगे, मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने फिल्म के प्रदर्शन को रोकने संबंधी अपनी मांग वापस ले ली। बातचीत के दौरान करण जौहर ने सैन्य सहायता कोष में पांच करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी। इस पर स्वयं मुख्मंत्री फडणवीस ने आपत्ति दर्ज करते हुए साफ कर दिया था कि फिल्म के पद्रर्शन को लेकर यह कोई शर्त नहीं होगी। कहीं से भी इसके लिए दबाव नहीं बनाया गया। करण जौहर द्वारा स्वेच्छा से कोष में राशि देने की पेशकश को भारतीय सेना ने अस्वीकार भी कर दिया। फिर इसमें दलाली की बात कहां से आ गई? वह भी मुख्यमंत्री द्वारा दलाली? इस प्रसंग में संजय निरुपम की भूमिका घोर आपत्तिजनक रही। निरुपम का आरोप कि फडणवीस की भूमिका ‘दलाल’ की रही, मात्र आपत्तिजनक ही नहीं आपराधिक भी है। निरुपम को बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए।
सचमुच पत्रकार निरुपम राजनीति के मकड़जाल में उलझ गए हैं। पार्टी के अंदर अपने प्रति बढ़ते असंतोष और विरोध के कारण तो कहीं निरुपम मानसिक विचलन के शिकार नहीं हो गए हैं? राजनीति में मजबूत उपस्थिति के लिए ‘साष्टांग’ की अनिवार्यता ने कहीं उनके मूल चरित्र को डगमगा तो नहीं दिया? व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि निरुपम तो ऐसे नहीं थे। फिर ऐसा आचरण क्यों? साफ है यह ‘दलाल’ शब्द उनके जेहन में राहुल गांधी उवाचित ‘दलाल’ के कारण कौंधा होगा। राहुल ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया था। राष्ट्रीय स्तर पर तब उठे नकारात्मक बवाल के कारण राहुल तो चुप हो गए, किंतु उनके कट्टर समर्थक मेंढक की भांति कूदते रहे। वे भूल गए कि राहुल गांधी वस्तुत: हिन्दी को लेकर अपने अल्पज्ञान के शिकार हुए थे। उनका आशय प्रचलित ‘दलाल’ के अर्थ से न होकर ‘राजनीतिक लाभ’ से था। राहुल अपने भाषायी अल्पज्ञान के कारण विरोधियों के निशाने पर आ गए। किंतु, संजय निरुपम की तो हिन्दी भाषा पर अच्छी ही नहीं, बहुत अच्छी पकड़ है! वे कैसे चूक गए? अगर सिर्फ राहुल को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने फडणवीस के खिलाफ ‘दलाल’ शब्द का इस्तेमाल किया है, तो क्षमा करेंगे निरुपम ने स्वयं को अल्पज्ञानियों की पंक्ति में खड़ा कर लिया है। राजनीति की अपरिहार्य ऐसी शोकांतिका समय – समय पर अनेक ज्ञानियों, समझदारों की बलि लेती रही है। अफसोस संजय निरुपम इसके ताजा नए शिकार बन गए हैं।