नई दिल्ली। अपने अभिनय के दम पर आलोचकों की प्रशंसा हासिल करने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मुराद इस बार अधूरी रह जाएगी। नवाजुद्दीन इस बार मारीच नहीं बन पाएंगे। दरअसल हिंदू संगठनों के विरोध के कारण नवाजुद्दीन सिद्दीकी को रामलीला में भाग लेने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।
आपको बता दें कि नवाजुद्दीन हर साल अपने गांव में होने वाले रामलीला में मारीच का किरदार निभाते हैं। उनके गांव बुढ़ाना (मुजफ्फर नगर) में इस साल भी रामलीला होगी, लेकिन मारीच नवाज नहीं होंगे। शिवसेना के विरोध के कारण उन्होंने अपना ये फैसला रद्द कर दिया। आपको याद दिला दें कि मारीच रामायण का वह किरदार है जिसके कारण ही सीता का अपहरण हुआ।
अब बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या कलाकार किसी धर्म के ढांचे में बंधकर रह सकता है? क्या किसी कलाकार को अब ये सोच कर किरदार चुनना होगा कि वह हिंदू है या मुस्लिम? आइए हम आपको ऐसे उदाहरण देते हैं, जहां मुस्लिम रामलीला का मंचन भी करते हैं, आयोजक भी हैं और कलाकार भी हैं।
उत्तराखंड का शांतिपुरी
उत्तराखंड के शांतिपुरी के तुर्कागौरी गांव में सालों से रामलीला होती आ रही है। इस गांव में होने वाली रामलीला मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। राम हो या रावण, सीता हो या फिर मंदोदरी, हर किरदार मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाला होता है। पिछले 13 सालों से यहां के मुस्लिम परिवार मिलकर रामलीला का आयोजन करते हैं।
मुस्लिम परिवार में जन्मीं सीता
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की फरहाना खान पिछले चार साल से ग्रेटर नोएडा की रामलीला में सीता का किरदार निभाती हैं। फरहाना संस्कृत में श्लोक का पाठ भी करती हैं और फर्राटे से रामलीला के कठिन डायलॉग भी बोलती हैं। ऐसे में मीडिया सरकार अपने पाठकों से सवाल करता है कि क्या कला को धर्म के ढ़ांचे में बांधना उचित है? आप अपने जवाब कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।