नई दिल्ली। अपने दस मस्तकों से दस दिशाओं में राज करने वाला रावण भले ही अपने अहंकार के चलते बुराई का प्रतीक बन गया हो, लेकिन उसकी बुद्धि और ज्ञान का कोई अंत नहीं। परम वि़द्वान शिव-भक्त रावण जब उनसे वरदान हासिल कर सर्वशक्तिमान बन गया, तो उसे अहंकार ने घेर लिया। फिर उसने माता सीता का अपहरण करने से लेकर कई बुरे काम किए। जिस वजह से ज्ञान और शक्ति के बावजूद उसे बुराई का प्रतीक माना गया और हर साल नवरात्र ख़त्म होने के अगले दिन उसके पुतले का दहन कर दशहरा मनाया जाता है।
अब जानिए क्या है दशहरा का महत्व?
दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, ईर्ष्या, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। इस दिन महिषासुर का वध किया गया था। इसे मनाने कई कारण है। माँ दुर्गा ने महिषासुर से लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही उसका वध किया था। इसलिए इसे विजयादशमी के नाम से मनाया जाता है।
वहीं भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
शस्त्र पूजा
दशहरा के दिन शस्त्र पूजन का भी विधान है। इस दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं। जबकि ब्राह्ण इसी दिन शास्त्र पूजा करते हैं। प्राचीन काल में राजा महाराजा जब किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करना चाहते थे तो वे आक्रमण के लिए विजयादशमी के दिन का चुनाव करते थे, जबकि ब्राह्मण विद्या अर्जन हेतु प्रस्थान करने के लिए इस दिन का चुनाव करते थे।
नए काम की शुरुआत
हिंदू धर्म के मुताबिक, दशहरा के दिन जो भी काम किया जाता है, उसमें विजय और सफलता प्राप्त होती है और इसी मान्यता के कारण व्यापारी इस दिन अपने नए व्यापार या प्रतिष्ठान का उद्धाटन करते हैं। लोग नए घरों में गृहप्रवेश करते हैं। इसका महत्व वैसा ही है जैसा दीपावली से पहले धनतेरस के दिन को दिया जाता है।