राजनीति ‘दलाली’ से ‘ख़ून की दलाली’ तक गिर गई!
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलो के लिए बहुत आसान है कि जो भी उन्हें आईना दिखाए, उन्हें वे भाजपाई घोषित कर दें, लेकिन अपने हृदय पर हाथ रखकर वे देखें कि पिछले एक साल में, ख़ासकर दादरी कांड के समय से उन्होंने कितनी घटिया और जातिवादी-सांप्रदायिक राजनीति की है एवं किस तरह से देश को हिन्दू-मुस्लिम, दलित-ग़ैर दलित में बांटने की कोशिश की है। कई बार तो बिना बात ही उन्होंने बतंगड़ बना डाला।
मेरे मित्र प्रायः सभी दलों में हैं और वे सब भी अंतरंग बातचीत में यह कबूल करते हैं कि मोदी-फोबिया के चलते विपक्ष में गहरी हताशा है और इसीलिए वह निचले दर्जे की सियासत करने में जुटा है। निचले दर्जे, मतलब इतना नीचे कि राष्ट्रहित के मुद्दों पर भी उसे समझ नहीं आता कि कैसे रिएक्ट करें। हर बार मैं उनसे यही कहता हूं कि दूसरों की लकीर छोटी करने में जुटे रहकर आप स्वयं छोटे होते हैं। अपनी लकीर बड़ी कीजिए, तो दूसरे ख़ुद-ब-ख़ुद छोटे हो जाएंगे।
भारत उदारवादी लोगों का देश है। यहां संकीर्ण मानसिकता वाले, नफ़रत करने वाले, भीतर-भीतर कुढ़ते रहने वाले लोगों की दाल नहीं गल सकती। ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी’- यह नहीं चल सकता। ऊरी हमले के बाद विपक्ष ने हाय-तौबा मचानी शुरू की कि एक के बदले दस सिर लाने का वादा कहां गया, छप्पन इंच की छाती कहां गई? और जब सरकार और सेना ने एक्शन ले लिया, तो उसने सबूत मांगना शुरू कर दिया, यह कहना शुरू कर दिया कि वे ‘जवानों के खून की दलाली’ कर रहे हैं! यही घटिया राजनीति है।
उरी हमले में हमारे 19 जवान मारे गए। वे हमारे अपने भाई, अपने ख़ून थे। उनका ख़ून बहा, तो पूरे देश में दुख और पीड़ा महसूस की गई। ऐसे संवेदनशील मामलों में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की सरकार को ताकत देनी चाहिए थी, क्योंकि सरकार सबकी होती है। हिन्दुओं की भी और मुसलमानों की भी। दलितों की भी और गैर-दलितों की भी। लेकिन उसे ताकत देने के बजाय, उसके साथ खड़े होने के बजाय, विपक्ष ने क्या किया? चुनावी बातों को लेकर सरकार का मखौल उड़ाना शुरू किया। यह भी तो जवानों की लाश पर सियासत करना ही था। दिल पर रखकर हाथ, बताइए कि जवानों की लाश पर सियासत किसने शुरू की?
फिर जब सरकार ने इच्छा-शक्ति दिखाई, पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया, आतंकवादियों के कई लांच पैड तबाह कर दिए, रातों-रात 50 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया, तो यह हर भारतीय के ज़ख्म पर मरहम जैसा था। इसकी घोषणा किसी मोदी या अमित शाह ने नहीं, बल्कि भारतीय सेना ने की थी। ऐसे में विपक्ष को सेना की बात पर भरोसा करना चाहिए था, उसके साथ खड़ा होना चाहिए था, उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए था। लेकिन उसने क्या किया? अपनी ही सेना पर शक करना शुरू किया। और सेना पर शक करना इसलिए शुरू किया, क्योंकि उसे तो सरकार को नीचा दिखाना था, मोदी को नीचा दिखाना था! दिल पर रखकर हाथ, बताइए कि जवानों का मनोबल तोड़ने वाली सियासत किसने शुरू की?
और अब, जब विपक्ष के सूरमा बोलें कि ‘जवानों के ख़ून की दलाली’ हो रही है, तो इससे निचले स्तर की बात क्या हो सकती है? मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर उरी हमले के बाद विपक्ष ने सरकार को ताकत दी होती और छप्पन इंच की छाती का मखौल नही उड़ाया होता, तो शायद सर्जिकल स्ट्राइक तो होता, पर उसका एलान नहीं होता। और अगर एलान होता भी, तो सत्तारूढ़ पार्टी भी क्रेडिट लेने में संयम दिखाती।
भई, अगर विपक्ष सियासत करेगा, तो सत्ता में बैठे लोग सियासत क्यों न करें? विपक्ष अगर उन्हें बदनाम करेगा, तो वे अपनी फेस-सेविंग नहीं करेंगे? राजनीति में इनको तो फायदा चाहिए, लेकिन वे बुद्धू बनकर बैठे रहें? और यकीन मानिए, विपक्ष के लोग जितना जलेंगे-भुनेंगे, जितना फ्रस्ट्रेट होंगे, सत्ता पक्ष के लोग भी सर्जिकल स्ट्राइक का उतना ही ढिंढोरा पीटेंगे। यह स्वाभाविक है। और तथ्य भी है कि उरी हमले के बाद उन्होंने सार्क ही नहीं, तकरीबन समूची दुनिया में पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया।
इसलिए, दूसरों से सियासत नहीं करने की अपेक्षा रखने वालों को ख़ुद भी गंदी सियासत करने से बचना चाहिए। जहां देश की सुरक्षा और संप्रभुता का मामला हो, वहां तो काफी परहेज करना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने पिछले साल-दो साल में बार-बार यह गलती की है। उदाहरण के लिए, जब-जब मोदी सरकार ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने की कोशिशें की, तब-तब विपक्ष ने उसे कमज़ोर और ढुलमुल बताया, लेकिन जब भी आतंकवाद के मुद्दे पर सख्ती दिखाई, उसे अमन का दुश्मन करार दिया। सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के पाकिस्तान में दिए बयानों को ज़रा याद कर लें।
इसलिए मुझे लगता है कि विपक्षी दलों को आत्म-मंथन करना चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष की ज़िम्मेदारी यह होती है कि जहां सरकार के कदम लड़खड़ाएं, वहां वह उसे संभाले। लेकिन हमारे देश में होता यह है कि पूरा का पूरा विपक्ष एकजुट हो जाता है इस बात के लिए कि किस तरह से सरकार को अस्थिर और डांवाडोल कर दिया जाए, किस तरह से उसे नीचा दिखाया जाए और किस तरह से उसे काम करने से रोक दिया जाए।
सबको समझना चाहिए कि आप एक व्यक्ति से नफ़रत या ईर्ष्या के चलते देश के साथ धोखा नहीं कर सकते। लोग आते रहेंगे, जाते रहेंगे। सरकारें बनती रहेंगी। गिरती रहेंगी। लेकिन देश हमारा कायम रहना चाहिए। इसकी एकता और अखंडता पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए। इसकी सुरक्षा और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। जय हिन्द। जय हिन्द की सेना।