पहले शहाबुद्दीन, फिर राजबल्लभ यादव, अब रॉकी यादव- आख़िर बिहार में संगीन अपराधों के आरोपियों को इतनी आसानी से ज़मानत मिल कैसे जाती है? क्या बिहार में कोई ज़मानत उद्योग चल रहा है? अगर हां, तो कौन-कौन हैं इस उद्योग के किरदार? कौन दे रहा है इस उद्योग को संरक्षण? सरकार और जांच एजेंसियों की कितनी मिलीभगत है इसमें? न्याय-व्यवस्था में कहां रह जा रही है चूक? क्या एक आम आदमी को बिहार में नही मिल सकता है न्याय?
जानने के लिए देखिए अनुरंजन v/s अभिरंजन। एक विचारोत्तेजक बहस।