जब बच्चे कोई ऐसा काम करते हैं जो बड़ों के दांत खट्टे करवा दे तो हम सब का सीना गर्व से फूल जाता है। आजकल एक बच्ची एक असंभव से काम को लेकर काफी चर्चा में है। १२ साल की बच्ची श्रद्धा बनारस के कानपुर ५७० किलोमीटर गंगा तैरकर पार कर रही है। मीडिया औऱ देश की नजर है और हम सब उसकी सफलता की कामना कर रहे हैं । लेकिन यह क्या कहानी में एक नया मोड़ आ गया है। वरिष्ठ टेलीिवजन पत्रकार और नेशनल अवार्ड विजेता फिल्ममेकर विनोद कापड़ी ने श्रद्धा और उसके परिवार के दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कापड़ी का कहना है कि वो श्रद्धा के सफर को फिल्माना चाहते थे और उसे दुनिया की नजर में लाने की कोशिश कर रहे थे। बनारस से शुरु हुए श्रद्धा के सफर को फिल्माने के लिए वे खुद गंगा की लहरों पर सवार हुए लेकिन उन्हें हकीकत जानकर काफी दुख हुआ। उन्होंने देखा कि जलपरी श्रद्धा हर रोज २-३ किलोमीटर ही तैरती है और बाकी सफर वो नाव में तय करती है, तैरते हुए वो अपने पिता के इशारों का पालन करती है और उसके पिता कभी मगरमच्छ, कभी गंदगी तो कभी किसी और बहाने से नाव पर बुला लेते हैं। विनोद कापड़ी का कहना है कि श्रद्धा के हर रोज ८०- १०० किलोमीटर तैरने का दावा बिल्कुल गलत है।
इस दौरान कई और बातें फिल्ममेकर विनोद कापड़ी ने नोटिस की मसलन, भीड़ देख कर पानी में उतर जाना, किसी भी घाट आऩे के आधे किलोमीटर पहले पानी में उतर जाना । दरअसल इस पूरे मामले के लिए विनोद कापड़ी की नजर में श्रद्धा के िपता ललित शुक्ला जिम्मेदार हैँ। पहले खबर आई थी कि श्रद्धा २०१४ में भी कुछ-कुछ ऐसा ही कारनामा कर चुकी है। इस मामले में श्रद्धा, उसके पिता ललित शुक्ला और मीडिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं । इस मसले पर मीडिया सरकार ने विनोद कापड़ी से बात की – विनोद कापड़ी ने बताया कि वे अपनी पूरी टीम के साथ चौबीसों घंटे तीन दिनों तक श्रद्धा के साथ रहे, इस दौरान सच को जानकर हैरान और दुखी हुए । जैसा कि हम सब महसूस करते हैं समाज और फिल्में एक दूसरे को प्रभावित करती हैं इस मामले में भी कुछ-कुछ ऐसा ही होता दिखता है।
आपको मैराथन दौड़ता हुआ चार साल का बच्चा बुधिया तो याद होगा ही, अभी हाल ही में उस बच्चे पर बनी फिल्म बुधिया देश भर में प्रदर्शित हुई । जब बुधिया दौड़ा था तब भी सवाल उठे थे और आज भी वो सवाल मौजूं है कि क्या बच्चों पर इस तरह का दवाब अत्याचार की श्रेणी में नहीं आता। जब श्रद्धा ने बनारस के कानपुर गंगा तैरकर पार करने का ऐलान किया तो मीडिया ने उसके दावे को सच मानते हुए महज खानापूर्ति की । किसी भी अखबार या न्यूज चैनल का कोई नुमाइंदा यह जानने का प्रयास करता हुआ नहीं मिला कि श्रद्धा कैसे इस सफर को पूरा करेगी। सबने सफर की शुरुआत पर अपने रिपोर्टर तैनात किए और फिर दूसरे पड़ाव पर दूसरा शख्स । वो तो भला हो विनोद कापड़ी का जिन्होंने फिल्म बनाने का प्रयास किया और एक दूसरा ही पहलू सामने आया।
गौर से सोचिए फिल्में हमारे समाज को कितना प्रभावित करती हैँ। नेशनल अवार्ड विनर फिल्ममेकर विनोद कापड़ी के जेहन में भी बुधिया पर बनी हालिया फिल्म थी। ऐसा लगता है कि श्रद्धा के पिता पर फिल्म का असर कुछ ज्यादा ही रहा होगा, वो भी अपनी बेटी को रातों रात मशहूर करने के ख्याल में ऐसी अमानवीय हरकत कर बैठे । अब जरा गौर से सोचिए कि उस बच्ची के जेहन पर इस सच और मीडिया में अब आनेवाली खबर से क्या असर पड़ेगा। १२ साल की बच्ची में दुनियादारी समझने की शक्ति नहीं होने के बावजूद इतनी तो समझ जरुर होगी कि वो इस घटना का उसके दिलो-दिमाग पर असर पड़ेगा। हमें अपने बच्चों को बुधिया बनाने की ज़िद और नीयत से गुरेज करना चाहिए।
इस मामले से एक बात साफ हो गई है हम सबकुछ जल्दी में चाहते हैं, हमेशा जीवन में शार्टकट अपनाने में व्यस्त रहते हैं और यह तरीका हमारे लिए, समाज के लिए और हमारे बच्चों के भविष्य के लिए नुकसानदेह है। ऐसी हरकतें हमारे बच्चों का बचपना छीन लेती हैं। यहां भी मासूम श्रद्धा का कोई दोष नहीं दिखता वो तो महज अपने पिता के इशारों पर तैरती नजर आती है। हमें ऐसी सोच को बदलना होगा क्यूंकि देश तो बदल ही रहा है ।