अरुणाचल में सत्ता में फिर परिवर्तन होगा, अदालती आदेश के बाद बहाल कांग्रेस की सरकार दो महीने भी ठीक से नहीं चल पाई और इस बीच एक पूर्व मुख्यमंत्री ने आत्महत्या कर ली । आखिर इसका गुनहगार कौन है, अरुणाचल के विधायक, कांग्रेस पार्टी या फिर सुप्रीम कोर्ट। अरुणाचल में सरकार किसी भी दल का हो संवैधानिक होना चािहए, लेकिन आखिर किसका गुनाह था कि एक छोटे से प्रदेश का पदच्युत युवा मुख्यमंत्री आत्महत्या कर लेता है। आज के ताजा हालात के बाद इस पूरे मामले को जरा गौर से समझने की जरुरत है।
अरुणाचल प्रदेश में 10 महीने में कांग्रेस की सरकार दूसरी बार सत्ता से बाहर हुई है। इस बार मुख्यमंत्री पेमा खांडू समेत कांग्रेस के 43 विधायक पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) में शामिल हो गए हैं। इससे पहले दिसंबर में भी वहां विधायकों के एक बड़े समूह ने कांग्रेस से बगावत कर दी थी और कलिखो पुल की लीडरशिप में बीजेपी के सहयोग से सरकार बनाई थी।
जब पहली बार सरकार गिरी थी तब भी कांग्रेस में बगावत हुई थी, इस बार भी हुई है। पहली बार और इस बार में सिर्फ एक अंतर है और वो अंतर इंसानियत को झकझोरने वाला है। पहली बार बगावत करके जब अरुणाचल में सरकार बनी थी तब कलिखो पुल मुख्यमंत्री बने थे। इस बार जब कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी से बगावत की है तब उनके नेता पेमा खांडू हैं और वो बतौर मुख्यमंत्री विद्रोहियों के लीडर हैँ। यानी मौजूदा सीएम ने एक विधायक को छोड़ सभी के साथ पार्टी बदल ली है।
राजनीतिक तौर पर तो महज इतना ही अंतर है लेकिन गौर कीजिए.. इस बार कलिखो पुल नहीं है, उनकी मौत हो चुकी है, उऩकी मौत अगर सामान्य तरीके से हुई होती तब भी हम यहां यह सवाल नहीं उठाते। आपको याद ही होगा कलिखो पुल ने आत्महत्या की थी। भारतीय राजनीति में पहली बार किसी पूर्व मुख्यमंत्री ने आत्महत्या की थी वो भी पद से हटाए जाने के महज एक महीने के भीतर ही। कलिखो पुल ने अपने सरकारी निवास में पंखे से लटककर अपनी जीवनलीला समाप्त की थी। मीडिया में खबर आई और चली गई, न तो नेताओं को सुध लेने की फुरसत थी न ही मीडियो ने तवज्जो दी। लेकिन अब सोचना चाहिए । क्यूं की होगी कलिखो पुल ने आत्महत्या।
कांग्रेस से बगावत करके कलिखो पुल पीपीए में शामिल हुए, बीजेपी के सहयोग से उनकी सरकार बनी। पटल पर बहुमत साबित किया, शपथ ली और सरकार चलाने लगे। जाहिर है कांग्रेस से बड़ी संख्या में विधायकों के टूटने से पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी (अभी प्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र बचे विधायक) को झटका लगा होगा। वो पार्टी का दामन थामे रहे और अदालत चले गए। छ महीने के अंदर अदालत ने कलिखो पुल की सरकार को अवैध करार दिया, राज्यपाल के शासन के फैसले को गलत ठहराया और पूर्व की सरकार बहाल करने के निर्देश दिए। अदालती फैसले के बाद तुकी की पार्टी की सरकार बन गई ,तुकी चार दिन के लिए सीएम बने और फिर पेमा खांडू को कमान मिली। यही पेमा खांडू आज तुकी को छोड़ सभी विधायकों के साथ उसी पीपीए में शरीक हो गए जिसका दामन थाम कलिखो पुल ने ५ महीने अरुणाचल में बेहतर शासन किया और अदालत के फैसले के बाद पद से बेदखल करने का गम सहन नहीं कर पाए ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेआबरू होकर सत्ता से बेदखल करने की तकलीफ शायद कलिखो पुल से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने आत्महत्या कर ली । महज २६ साल की उम्र में पहली बार विधायक बने कलिखो पुल लगातार पांच बार चुनाव जीते, २१ साल विधायक रहे और आखिरी दम तक गरीबों के असली हमदर्द के तौर पर जाने जाते रहे। मुख्यमंत्री बनने के बाद जो सबसे पहला काम कलिखो पुल ने किया वो यह कि उनके घर में मौजूद मुख्यमंत्री दफ्तर को गरीबों और स्वास्थ्य सुविधा के लिए चौबीसों घंटे चालू रखने का आदेश दिया।
ताजा बगावत के बाद कांग्रेस को भी समझना चाहिए कि कहीं न कहीं अरुणाचल प्रदेश में उऩके शासन में समस्या है, उनकी पार्टी में जबरदस्त असंतोष है क्यूंकि १० महीने के अंदर दूसरी बार सत्ता से बाहर होने की आखिर क्या वजह हो सकती है, साथ ही अदालतों को भी इन सब मामलों पर गौर करना चाहिए कि आखिर ऐसे बगावत किन हालात में होते हैं । समय है कांग्रेस और कोर्ट दोनों को आकलन करना होगा अन्यथा फिर कोई कलिखो पुल की घटना दुहराएगा और फिर हम उसके जिम्मेदार को तलाशते रहेंगे।