ट्रेन में साथ वाली सीट पर हैं सोहराय महतो। 76 वर्ष के हैं। रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। अरसा हो गया उन्हें रिटायर हुए। वर्ष में तीन बार उच्च श्रेणी का टिकट मिलता है रेलवे से, और इसका इस्तेमाल बेटों के पास जाकर कर लेते हैं। सुखी और संतुष्ट इंसान। अभी बस्तर से आ रहे हैं। वहां सीआरपीएफ में बेटा हैं। जगदलपुर से 8 कोस दूर करणपुर नामक जगह पर। बेटे-बहु का गुण गाते नही थक रहे। 15 दिन थे दोनों बेकती वहां। रोज़े जंगली मुर्गा खरीद कर ला देता था बेटा। आने वक़्त में 2 हज़ार रुपया दे रहा था, इन्होंने लिए नही।
फिर पूछ बैठता हूं मैं। ऐसी खतरनाक जगह पर काम कर रहे हैं पुत्र आपके। डर नही लगता आपको? सीधे अकड़ कर बैठ जाते हैं महतो जी। बिलकुल नही। मरने का का क्या है। बस से भी ठोकर लग के मर जाता है आदमी। दारू पी कर मर जाता है। बेमारी से मर जाता है। कोई भरोसा है इस जान का? जबकि मेरा बेटा तो देश का काम कर रहा है। कोई डर नही। खूब सुंदर ऑफिसर जइसन क्वार्टर है उसका। खूब घूमाया। बड्ड मोन लगा इस बार तो। अगले सार फेर जाएंगे, कहते हुए बम बम लगने लगते हैं महतो जी।
जानते हैं बाबू, 22 हज़ार 685 रुपया पेंशन मिलता है मुझे। 25 लाख 87 हज़ार जब रिटायर किये थे न तब मिला था। कितना खाएंगे? बस बुढ़बा-बुढबी ही तो हैं। बेटा-दामाद सब नौकरी करता है। तीन जगह घर बना लिए हैं। फिर भी 10 लाख मेरे नाम से और 5 लाख बुढ़िया के नाम से जमा है। ऊपर से देखिये रहे हैं, फ्री में एसी में चढ़े हुए हैं। पैसा में बच्चे सबको लेकिन नॉमिनी नही किया है। कोनो एक दिन ही तो दुन्नु नै न मर जाएंगे, सो हम दोनों आपस में एक दुसरे को नॉमिनी कर दिए हैं। न बेटों को देते हैं न लेते हैं। सब बढ़िया काम कर रहा है। 2 हज़ार रुपया दिया आने काल में तो मुझे वो दिया मैंने पोते को दे दिया, पोता फेर दादी को दे दिया। खी खी खी।
दुन्नु आदमी का सेहत ठीक रहता है न? पूछने पर महतो जी कहते हैं, मुझे कुच्छो नहीं होता है। 76 साल का हूं लेकिन आज भी टेम्पू वाले को किराया नहीं देता। 7-8 किलोमीटर पैदल चल लेता हूं। बस बुढ़िया बेराम रहती है। सूगर है इसे। लेकिन जानते है सर? एक थाक दवा लिख देता था डाक्टर। लेकिन एक दिन टीवी पर रामदेव बाबा को देखा। तीन बोतल दबाई खरीदते हैं उनका। रुकिए अभी दिखाता हूं आपको, कहते हुए आवला करेले सबके जूस का बोतल निकाल लिया उन्होंने। ओ सेहत के दो घूंट वाला देखे थे? हां हां, वही देखा था। अब कोई दवा नहीं खिलाते है। बस यही पीती है। हर महीना जांच कराती है। सूगर बस 110 और 115 से बेसी होबे नहीं करता है। डाक्टर समझता है कि उसके लिखे दवाई से ठीक हुई है जबकि वो खेबे नहीं करती है ये। झूठ कह देते हैं डाग्डर को कि आपे के दवा से ठीक हुई है। खी खी खी खी। अब तो जोग भी करने लगी है ये टीवी देख कर।
जानते हैं बाबू, 70 रुपया महीने से नौकरी शुरू किया था। 3 रुपया तब घूस दिए थे मेडिकल के लिए। बस। नौकरी त उस टाइम पाछे पाछे चलता था। अब मुश्किल हो गया है। लेकिन इतना पैसा मिल गया मुझे, एतना न पेंशने मिलता है कि क्या कहें। कहां खर्च करेंगे एतना? फिक्स वाले पैसे में सूद पर इनकम टेक्स लग जाता है हर साल। कहते हैं लगने दो। कोई परवाह नहीं। केतना रुपया खाएंगे? सब बेटा दामाद नौकरी करता है। घरो बना लिया हैं धनबाद में भी और गांव में भी। बहुत बढ़िया है बाबू…
सोहराय जी का किस्सा जारी है। रांची आ गया है। देह सोझ करने प्लेटफॉर्म पर जाता हूं। आ कर नीचे वाला अपना बर्थ महतो दंपत्ति को दे दिया है। एक ही टिकट कन्फर्म हुआ है उनका। उसी में एडजस्टा गए हैं दुन्नु गोटे वे। मैं ऊपर आ गया…. सोहराय जी की महतो कहानी जारी है। राम राम बाबू
पंकज कुमार झा के फेसबुक वॉल से साभार, लेखक पत्रकार, चिंतक और राजनीतिक विश्लेषक हैं