हमारे देश में सरकारें सारे कार्य वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही करती रही हैं। कभी वो विकास में तब्दील हो जाता है तो कभी जुमला साबित हो जाता है। लेकिन इन सबके बीच जो सबसे बड़ा नुकसान होता है वो है देश में सामाजिक सौहार्द का। आजादी के बाद से लेकर अब तक पहले ही आरक्षण के नाम पर जाति संघर्ष होते रहे हैं और अब सवर्णों को आर्थिक आधार पर जिस आरक्षण की बात की जा रही है वो दरअसल मृगमरीचिका साबित होने वाली है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर कमजोर तबके को 10 फीसदी आरक्षण देने के केंद्रीय कैबिनेट के फैसले को कानूनी जानकार संदेह की नजर से देखते हैं। कानूनी जानकारों का मानना है कि उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा तय कर रखी है और अगर रिजर्वेशन का आंकड़ा 50 फीसदी से उपर गया तो निश्चित तौर पर मामला जूडिशल स्क्रूटनी के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आएगा । ऐसे में स्क्रूटनी में ये फैसले नहीं टिकेंगे ।
1992 का फैसला है आधार
सुप्रीम कोर्ट के वकील एम. एल लाहोटी ने 1992 के सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी क्रॉस नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी जजमेंट जिसे मंडल जजमेंट कहा जाता है उसमें साफ तौर पर कहा है कि सरकार किसी भी सूरत में पचास फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-16 (4) से स्पष्ट है कि पिछड़ेपन का मतलब सामाजिक पिछड़ेपन से है। शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन, सामाजिक पिछड़ेपन के कारण हो सकते हैं लेकिन अनुच्छेद-16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन एक विषय है।
पहले भी 50 फीसदी की लिमिट क्रॉस होने पर मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया
एम.एल. लाहोटी का कहना है कि पहले भी कई बार राज्य सरकारों ने रिजर्वेशन के मसले पर 50 फीसदी की सीमा को पार किया था। राजस्थान सरकार ने भी स्पेशल बैकवर्क क्लास को रिजर्वेशन देते हुए 50 फीसदी की सीमा को पार किया था। तब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था और सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्वेशन को खारिज कर दिया था। वहीं दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था जिसमें हाई कोर्ट ने मराठाओं को नौकरी और शैक्षणिक संस्थाओं में 16 फीसदी रिजर्वेशन देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी। रिजर्वेशन कोटे को 73 फीसदी कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक रिजर्वेशन कुल सीट में से 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता।
संविधान संशोधन में बेसिक स्ट्रक्चर के साथ छेड़छाड़ संभव नहीं
वहीं संवैधानिक मामलों के जानकार व लोकसभा के रिटायर सेक्रेटरी जनरल पी.डी.टी. अचारी बताते हैं कि संविधान में अनुच्छेद-16 के तहत समानता की बात करते हुए सबको समान अवसर देने की बात है। यह संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। अगर 50 फीसदी सीमा पार करते हुए रिजर्वेशन दिया जाता है और इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाता है या फिर मामले को 9वीं अनुसूची में रखा जाता है कि उसे जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे से बाहर किया जाए तो भी मामला जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा। दरअसल 9वीं अनुसूची में रखकर ऐसा कोई कानूनी या कानूनी संशोधन नहीं किया जा सकता जो संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को डैमेज करता हो।
केशवानंद भारती से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर के साथ छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता। अगर 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन दिया जाता है तो जाहिर तौर पर संविधान के अनुच्छेद में दी गई व्यवस्था के विपरीत होगा क्योंकि इसमें प्रावधान है कि समान अवसर दिए जाएं और इस तरह से देखा जाए तो मौलिक अधिकार के प्रावधान प्रभावित होंगे और वह बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। तामिलनाडु सरकार ने 69 फीसदी आरक्षण दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।